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बच्चों में दूध से एलर्जी (Milk Allergy in Hindi) लैक्टोज इनटोलरेंस के कारण होती है. उन्हें लैक्टोज (Lactose) को पचाने में असमर्थता होती है. लैक्टोज दूध और दूध से बने उत्पादों में पाया जाने वाला प्राकृतिक शुगर है. जब किसी को दूध हजम नहीं हो पाता है तो उसे लैक्टोज इनटॉलरेंस की समस्या होती है…. Read more
Why is allergy to cow's milk?
एक वर्ष के एक दुबले-पतले बच्चे को लेकर एक महिला डॉक्टर के पास पहुंची। बच्चे को पांच-छह महीने से कब्ज की शिकायत थी और यह बीमारी ठीक नहीं हो रही थी। पूछताछ के दौरान पता चला कि उस महिला को दूध नहीं आ रहा था इसलिए उसका बच्चा जन्म से ही गाय का दूध पी रहा था।
पूछताछ के दौरान यह भी पता चला कि उस महिला की बड़ी बहन, उसकी मां तथा दादी को गाय के दूध से एलर्जी थी। अब डॉक्टर को उस बच्चे की कब्जियत का कारण पता चल गया। उस बच्चे के इलाज के क्रम में दूध तथा दूध से बनी चीज़ें देने की मनाही कर दी गई और हरी सब्जी, फल, साग आदि खिलाने की हिदायत के साथ-साथ मल को मुलायम करने तथा पेट साफ करने वाली मामूली-सी एक-दो दवाएं दी गईं। दो-तीन दिनों में ही अनुकूल प्रभाव देखने को मिला। कब्ज़ छूमंतर हो गई, मल नियमित रूप से होने लगा।
इसी तरह एक तीन महीने के बच्चे की मां को भी दूध नहीं आता था। उसकी भी शिकायत थी कि उसके बच्चे को गाय का दूध पचता ही नहीं।
दूध पिलाने के बाद उल्टी हो जाती है। डायरिया की शिकायत तो करीब ढाई महीने से है ही। बच्चे का स्वास्थ्य एकदम गिर गया था। पूछताछ के क्रम में मात्र इतना पता चला कि उस बच्चे की मां को भी दूध पीना अच्छा नहीं लगता। इतना ही नहीं, जब वह दूध पी लेती है तो तुरंत उल्टी हो जाती है और सारा दूध बाहर निकल जाता है। बच्चे की जांच के दौरान पाया गया कि उसे एनीमिया (anemia) था और शरीर में पानी कमी (lack of water in the body) थी।
One or two percent of children are very sensitive to cow's milk.
दूध से एलर्जी के लक्षण (Milk Intolerance Symptoms)
एक-दो प्रतिशत बच्चे गाय के दूध के प्रति अति संवेदनशील होते हैं। वे उसकी थोड़ी-सी भी मात्रा को पचा नहीं पाते। या तो उन्हें कब्ज रहने लगती है या फिर उल्टी और दस्त की शिकायत हो जाती है। पेट में दर्द की भी शिकायत कई वजह से होती है। श्वसन तंत्र की कुछ बीमारियां जैसे नाक बहना, खांसी, सर्दी आदि भी हो सकती है। कई मरीजों में त्वचा सम्बंधी विकार भी उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे एक्ज़िमा, फोड़े-फुंसी आदि। पाचन शक्ति ठीक नहीं होने तथा संक्रमण की वजह से एनीमिया हो जाता है। इससे शारीरिक तथा मानसिक विकास या तो धीमा हो जाता है या रुक जाने के लक्षण दिखने लगते हैं। दूध से एलर्जी (Milk Allergy in Hindi) दो साल की अवस्था के बाद स्वत: समाप्त हो जाती है।
दूध से एलर्जी क्यों होती है, क्या कहते हैं रोग विशेषज्ञ? | Why does milk allergy happen, what do the pathologists say?
ऐसा क्यों होता है? इसके सटीक कारणों की जानकारी शिशु रोग विशेषज्ञों को भी नहीं है। फिर भी जितनी जानकारी है उसके आधार पर डॉक्टरों का मत है कि इसके लिए प्रतिरक्षा तंत्र ही मुख्य रूप से दोषी है। इतना ही नहीं गाय के दूध में कुछ ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं जो कई बच्चों की पाचन शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन मुख्यत: कैसीन, लैक्टाल्ब्यूमिन तथा लैक्टोग्लोबुलिन के रूप में पाया जाता है। मनुष्य के दूध की अपेक्षा गाय तथा बकरी के दूध में प्रोटीन तीन गुना अधिक होता है। कैसीन नामक प्रोटीन दूध के कैल्शियम के साथ मिलकर कैल्शियम कैसिनेट के रूप में रहता है। कैसीन तथा एल्ब्यूमिन का अनुपात मनुष्य के दूध में 1:1 तथा जानवर के दूध में 7:1 का होता है। गाय के दूध में पाए जाने वाले प्रोटीन का अणु मनुष्य के दूध की अपेक्षा बड़ा होता है, जिसका सीधा प्रभाव पाचन तंत्र की दीवार पर पड़ता है। इस दौरान बाहरी दूध से अत्यधिक मात्रा में एंटीजन प्रवेश करता है।
नवजात शिशु में पाचन तंत्र पूरी तरह विकसित नहीं होता है। अत: कई तरह से उसकी दीवार को क्षति पहुंचती है। उसकी दीवार की भीतरी सतह नष्ट हो जाती है और पचे भोजन को अवशोषित करने वाली प्रणाली बुरी तरह प्रभावित होती है। इतना ही नहीं, कई तरह के जीवाणुओं का संक्रमण भी हो जाता है, क्योंकि प्रतिरोधी क्षमता भी पूरी तरह विकसित नहीं रहती। नतीजा यह होता है कि बच्चा दूध को पचा पाने में सक्षम नहीं होता और उल्टी, डायरिया, कब्ज आदि कई तरह के लक्षण नज़र आने लगते हैं। इस तरह के मरीज़ में मुख्यत: लैक्टोग्लोबुलिन से ही एलर्जी होती है। इसके अतिरिक्त कैसीन, लैक्टाल्ब्यूमिन, ग्लोबुलिन से भी एलर्जी हो सकती है।
अब यह बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि किसी महिला को कैसे पता चले कि उसके बच्चे को गाय के दूध से एलर्जी है। यहां यह भी कह देना जरूरी है कि इसकी कोई विशेष जांच नहीं होती। इसका पता मात्र दूध छोड़ने तथा कुछ अंतराल के बाद पुन: देने के बाद होने वाले लक्षणों से ही चल सकता है।
एन. डब्लू. क्लाइन नामक चिकित्सक ने 206 बच्चों में दूध से होने वाली एलर्जी का गहन अध्ययन किया और वे इस नतीजे पर पहुंचे कि कब्ज के शिकार 6 प्रतिशत बच्चों को (जिन्हें जुलाब से भी कोई फायदा नहीं हुआ था) खाने में गाय का दूध तथा इससे बने खाद्य पदार्थ न देने पर कब्ज़ियत दूर हो गई।
शिशुओं के लिए गाय के दूध का विकल्प | Cow's milk substitute for babies
सामान्य माताओं को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि गाय के दूध से एलर्जी हो सकती है। यदि नवजात शिशु या कम उम्र के बच्चे को कब्जियत, पेट में दर्द, उल्टी या डायरिया की शिकायत हो तथा किसी कारणवश मां के दूध की जगह उसे गाय का दूध दिया जा रहा हो तो तुरंत गाय का दूध पिलाना बंद कर देना चाहिए। गाय के दूध की जगह पर कोई दूसरा दूध दिया जा सकता है। सोयाबीन का दूध (soybean milk) अच्छा होता है। यह बाज़ार में सूखे पाउडर के रूप में मिलता है। यदि बकरी का दूध (Goat's milk) उपलब्ध हो तो वह देने में कोई हर्ज नहीं है।
बच्चे को गाय का दूध कब दें ?
जब बच्चे की उम्र 9 महीने की हो जाए तो गाय का दूध थोड़ी मात्रा में देना शुरू कर देना चाहिए। शुरू-शुरू में मात्र कुछ बूंदें देकर उसका प्रभाव देखना चाहिए। यदि कोई दिक्कत न हो तो धीरे-धीरे मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए। इसके लिए डॉक्टर की देख-रेख ज़रूरी है। वैसे भी दो वर्ष की अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते छोटी आंत की दूध पचाने की शक्ति बढ़ जाती है और उससे एलर्जी स्वत: समाप्त हो जाती है। कई बार गाय के दूध में पानी तथा चीनी उचित मात्रा में नहीं मिलाने पर भी बच्चे को डायरिया या उल्टी होने लगती है।
गाय का दूध 24 घंटे में 5-6 बार ही पिलाना चाहिए, न कि बार-बार। दूध की कितनी मात्रा दी जाए यह बच्चे के वजन पर निर्भर करता है।
- नरेंद्र देवांगन