कुछ बोलिए
संतुलन न बिगड़ जाए
कुछ बोलिए
अंधेरा न बढ़ता रहे
कुछ बोलिए
भविष्य न हो मलिन
कुछ बोलिए
देश की आहुति न हो
कुछ बोलिए
कीट के काटने पर तो चुप थे
सर्पदंश पर तो कुछ बोलिए
जहर, मार दे देह को लकवा
उससे पहले ही कुछ बोलिए
वर्तमान, डरावना भूत न बने
इसलिए कुछ तो बोलिए
भविष्य से आँख भी मिला पाएँ
इसलिए उठिए और बोलिए।
– अनिल सोडानी
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