/hastakshep-prod/media/post_banners/vlFtYsNkUpkwaV5pPKzY.jpg)
अहमदाबाद में नवभारत साहित्य मंदिर द्वारा आयोजित 'कलम नो कार्निवल' पुस्तक मेले के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन का मूल पाठ
'कलम नो कार्निवल' के इस भव्य आयोजन के लिए आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें।
नवभारत साहित्य मंदिर' ने हर वर्ष अहमदाबाद में पुस्तक मेले की जो परंपरा शुरू की है, ये समय के साथ और ज्यादा समृद्ध होती जा रही है। इसके जरिए गुजरात के साहित्य और ज्ञान का विस्तार तो हो ही रहा है, साथ ही नए युवा साहित्यकारों, लेखकों को भी एक मंच मिल रहा है।
मैं इस समृद्ध परंपरा के लिए 'नवभारत साहित्य मंदिर' और उससे जुड़े सभी सदस्यों को बधाई देता हूँ। विशेष रूप से महेंद्र भाई, रोनक भाई, उनको भी शुभकामनायें देता हूँ, जिनके प्रयासों से इस पुस्तक मेले का लाभ गुजरात के लोगों को मिल रहा है।
साथियों,
'कलम नो कार्निवल' गुजराती भाषा के साथ-साथ, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा की किताबों का भी एक बड़ा सम्मेलन है। इस आयोजन का जो उद्देश्य आप लोगों ने रखा है, 'वांचे गुजरात, वांचनने वधावे गुजरात', ये भी अपने-आप में बहुत ही प्रासंगिक है।
जब मैं गुजरात में आप सबके बीच काम कर रहा था, तब गुजरात ने भी 'वांचे गुजरात' अभियान शुरू किया था। आज 'कलम नो कार्निवल' जैसे अभियान गुजरात के उस संकल्प को आगे बढ़ा रहे हैं।
साथियों,
पुस्तक और ग्रंथ, ये दोनों हमारी विद्या उपासना के मूल तत्व हैं। गुजरात में पुस्तकालयों की तो बहुत पुरानी परंपरा रही है। हमारे वडोदरा के महाराजा सयाजीराव जी ने अपने क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में प्रमुख स्थानों पर पुस्तकालयों की स्थापना की थी।
मेरा जन्म उस गांव में हुआ था जहां बहुत अच्छी लायब्रेरी रही मेरे गांव वाडनगर में।
गोंडल के महाराजा भगवत सिंह जी ने 'भगवत गोमंडल' जैसा विशाल शब्दकोश दिया। मैं तो कभी-कभी सोचता हूं, कभी लोग मुझे कहते हैं कि भई मैं जब गुजरात में था तो परिवारों में बड़ी चर्चा होती थी बच्चों के नाम को ले करके और फिर वो किताबें ढूंढते थे कि बच्चों के नाम क्या रखें।
तो एक बार मेरे सामने किसी ने विषय रखा, मैंने कहा आप 'भगवत गोमंडल' देख लीजिए, इतने गुजराती शब्द मिलेंगे आपको उसमें से आपके बच्चों के लिए नाम के लिए अनुकूल चीज मिल जाएगी। और वाकई इतने reference, इतने अर्थ, ये समृद्ध परपंरा हमारे पास है।
ठीक उसी तरह वीर कवि नर्मद ने 'नर्म कोष' का संपादन किया। और ये परंपरा हमारे केका शास्त्री जी तक चली।
केका शास्त्री जी, जो 100 साल से भी ज्यादा समय हमारे बीच रहे, उन्होंने भी इस क्षेत्र में बहुत योगदान दिया। पुस्तकों, लेखकों, साहित्य रचना के विषय में गुजरात का इतिहास बहुत समृद्ध रहा है। मैं चाहूँगा कि ऐसे पुस्तक मेले गुजरात के हर कोने में जन-जन तक, हर युवा तक पहुंचे, ताकि उन्हें इस इतिहास का भी पता चले और उन्हें नई प्रेरणा भी मिले।
साथियों,
इस वर्ष ये पुस्तक मेला एक ऐसे समय में आयोजित हो रहा है जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत महोत्सव का एक आयाम ये भी है कि हम हमारी आजादी की लड़ाई के इतिहास को कैसे पुनर्जीवित करें। हमारी भावी पीढ़ी को ये हम कैसे सुपुर्द करें। आजादी के लड़ाई के जो भूले-बिसरे अध्याय हैं, उनके गौरव को हम देश के सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और आप सबके प्रयास से ये संभव भी है।
'कलम नो कार्निवल' जैसे आयोजन देश के इस अभियान को गति दे सकते हैं। पुस्तक मेले में आजादी की लड़ाई से जुड़ी किताबों को विशेष महत्व दिया जा सकता है, ऐसे लेखकों को एक मजबूत मंच दिया जा सकता है। मुझे विश्वास है, ये आयोजन इस दिशा में एक सकारात्मक माध्यम साबित होगा।
साथियों,
हमारे यहाँ कहा शास्त्रों में कहा जाता है-
शास्त्र सुचिन्तित पुनि पुनि देखिअ।
अर्थात्, शास्त्रों को, ग्रन्थों और पुस्तकों का बार-बार अध्ययन करते रहना चाहिए, तभी वो प्रभावी और उपयोगी रहते हैं।
ये बात इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आज इंटरनेट के जमाने में ये सोच हावी होती जा रही है कि जब जरूरत होगी तो इंटरनेट की मदद ले लेंगे। तकनीक हमारे लिए निःसन्देह जानकारी का एक महत्वपूर्ण जरिया है, लेकिन वो किताबों को, किताबों के अध्ययन को रिप्लेस करने का एक तरीका नहीं है। जब जानकारी हमारे दिमाग में होती है, तो दिमाग उस जानकारी को गहराई से process करता है, उससे जुड़े हुए नए आयाम हमारे दिमाग में आते हैं।
अब मैं एक छोटा-सा आपको काम देता हूं।
हम सबने नरसी मेहता के द्वारा रचित 'वैष्णव जन तो तै ने रे कहिए' कितनी ही बार सुना होगा, कितनी ही बार बोला होगा। एक काम कीजिए, आप उसको लिखित रूप में अपने सामने ले करके बैठिए और सोचिए कि इस रचना में वर्तमान के संदर्भ में क्या–क्या है। कौन-सी बातें अनुकूल हैं।
मैं विश्वास से कहता हूं कि जिस वैष्णव जन को आपने हजारों बार सुना है, लिखित रूप में अपने सामने ले करके जब सोचना शुरू करोगे, वर्तमान के संदर्भ में समझने का प्रयास करोगे, उसमें से भी आपको नए सैंकड़ों अर्थ हर बार मिलते जाएंगे। ये ताकत होती है और इसलिए पुस्तक का हमारे पास होना, हमारे साथ होना, हमारे सामने होना, वो नए-नए इनोवेशन के लिए, नए-नए अनुसंधान के लिए सोचने के, तर्क-वितर्क को गहराई तक ले जाने के लिए बहुत बड़ी ताकत देता है।
इसलिए, बदलते समय के साथ किताबों की, किताबों को पढ़ने की हमारी आदत बनी रहे, ये बहुत जरूरी है। फिर किताबें चाहें फ़िज़िकल फॉर्म में हो या डिजिटल फॉर्म में!
मैं मानता हूँ, इस तरह के आयोजन युवाओं में किताबों के लिए जरूरी आकर्षण पैदा करने में, उनकी अहमियत को समझाने में भी बड़ी भूमिका अदा करेंगे।
साथियो,
मैं ये भी कहना चाहूंगा और जब आज गुजरात के लोगों के साथ बैठ कर बात कर रहा हुं तब कभी हमने सोचा है कि हम नया घर बना रहें हो तब आर्किटेक्ट के साथ बहुत सारी चर्चा करते हैं। यहां आप डाईनिंग रूम बनाना, यहां ड्रॉईंग रूम बनाना, कभी कभी कोई ये भी कहता है की यहां पूजा घर बनाएगा, कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ कर कहते हैं कि मेरे कपड़े रखने के लिए व्यवस्था यहां करना, लेकिन मेरी आपसे विनती है कि कभी नया मकान बनाते वक्त, हम क्या हमारे आर्किटेक्ट को ऐसा कहते हैं कि भाई, एक ऐसी जगह बनाना, जहां हमारा पुस्तकों का भंडार रह सके। मैं भी पुस्तकों के भंडारवाली जगह पर जाउं, मेरे बच्चों को ले जाउं, आदत डालुं, मेरे घर का एक कोना ऐसा हो, जो पुस्तकों के लिए विशेष रुप से सजाया गया हो। हम ऐसा नहीं कहते हैं।
आपको पता होगा कि मैं गुजरात में एक आग्रह बहुत करता था, कोई भी कार्यक्रम हो मैं कहता था मंच पर, भाई, बुके नहीं बुक दीजिए, क्योंकि 100-200 रूपए का बुके ले आएं उसका आयुष्य भी बहुत कम होता है।
मैं ऐसा कहता कि बुक ले आईएं, मुझे पता था उसकी वजह से किताबों की बिक्री भी बढ़े,प्रकाशकों, लेखकों को आर्थिक मदद भी चाहिए कि नहीं।
हम कई बार किताब खरीदते ही नहीं है। सही में किताब खरीदना भी एक समाज सेवा है। क्योंकि इस प्रकार के कार्यों के साथ समर्पित जो जीवन है उस जीवनों के लिए हमारा सहयोग स्वाभाविक होना चाहिए।
आज किताब खरीदने की आदत डालनी चाहिए। किताब के रखरखाव की, रखने की आदत डालनी चाहिए और मैंने अनेक लोगों को गुजरात में देखा था वो लोग घर-घर जाकर किताबें देते और विनती करते कि ये किताब पढ़ना और खरीदने जैसा लगे तो खरीदना नहीं तो मुझे वापिस कर देना। ऐसे बहुत सारे लोग हमने देखे हैं।
मुझे याद है हमारे भावनगर में एक सज्जन किताब की परब चलाते थे। इस प्रकार के कार्यों बहुत सारे लोग करते रहे हैं। लेकिन हमारी व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि हम परिवार में, और हमारे यहां तो कहते हैं ना, सरस्वती ये लुप्त है, गुप्त है। विज्ञान से अलग साहित्यिक कार्यक्रमो में मैं अलग तर्क देता हूँ। और ये साहित्य वाली दुनिया का तर्क है। ये सरस्वती तो ज्ञान की देवी है। वह लुप्त है, गुप्त है इसका मतलब ये हुआ कि ये सरस्वती बीता हुआ कल, आज और भविष्य तीनों को लुप्त अवस्था में जोड़ती रहती हैं। ये सरस्वती किताबों के माध्यम से इतिहास को, वर्तमान को और उज्जवल भविष्य को जोड़ने का कार्य करती हैं। इसीलिए किताबों के मेले के महात्म्य को समझें, हमारे परिवार के साथ जाना चाहिए, किताबों के मेले में तो परिवार के साथ जाना चाहिए। और किताब को हाथ लगाकर देखें तो लगेगा कि अच्छा ये भी है यहां, इसके पर भी विचार किया गया है, अनेक चीजें उपलब्ध होती हैं।
इसलिए मेरि अपेक्षा है मेरे सभी गुजरात के भाईओ-बहनों से की बहुत पढ़ें बहुत विचार करें। और बहुत मंथन करें, आने वाली पीढ़ियों को बहुत कुछ दें। और गुजरात के जो मूर्धन्य साहित्यकार हैं, उनके प्रति हमारी एक आदरांजलि भी होगी, शब्द के जो साधक हैं, सरस्वती के जो पुजारी हैं, उन्हें भी इस मेले में हमारी सक्रिय भागीदारी एक प्रकार से आदरांजलि बनेगी।
मेरी आप सब को बहुत बहुत शुभकामनाएं हैं, फिर एक बार विचार को, वाचक को सबको आदरपूर्वक नमन कर के मेरी बात पूर्ण कर रहा हूँ।
इसी भावना के साथ, आप सभी को एक बार फिर बहुत-बहुत शुभकामनायें।
धन्यवाद!
DISCLAIMER: This is the approximate translation of PM’s speech. Original speech was delivered in Hindi and Gujarati (Source: PIB)
Give Books Not bukey: What did PM Modi say at the inauguration ceremony of 'Kalam No Carnival' book fair?