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डिजिटल इंडिया से "गोडसे ज्ञानशाला" क्या यही न्यू इंडिया है?

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hastakshep
15 Jan 2021
डिजिटल इंडिया से "गोडसे ज्ञानशाला" क्या यही न्यू इंडिया है?

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"Godse Gyanashala" from Digital India Is this New India?

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कहां तो बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया था, स्मार्ट सिटी का सपना दिखाया था. न्यू इंडिया, मेकिंग इंडिया, डिजिटल इंडिया, (New India, Making India, Digital India) न जाने कितने इंडिया के प्रोग्राम छाए रहे मीडिया से लेकर सरकार के मुखियाओं के मुंह पर. अच्छे दिन और सबका साथ सबका विकास तो जैसे अमृत बरसा रहा था, लेकिन देखते-देखते अब तस्वीर साफ होने लगी है कि भारतीय जनता पार्टी क्या करने जा रही है. इतिहास गवाह है कि जब-जब धर्म और जाति को राजनीति का अंग बनाकर शासन किया गया है, राष्ट्र कमजोर हुआ है, समाज बिखर गए और देश की अखंडता को खतरा हुआ है. विकास की बात करते-करते थक गए, मगर विकास की जगह गड्ढे ही गड्ढे नजर आने लगे हैं. गड्ढे नफरत के, गड्ढे सांप्रदायिता के, गड्ढे जतिवाद के, गड्ढे बेरोजगारी के, गड्ढे हिन्दू मुस्लिम के, गड्ढे हिंदुस्तान पाकिस्तान के और गड्ढे अंधविश्वास और पाखंड के, गड्ढे हत्या और बलात्कार के, गड्ढे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दफन करने के.

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इस देश की धरती पर जो तार्किक, मानवतावादी, पाखण्ड और अंधविश्वास पर चोट करने वाले, कुप्रथाओं पर चोट करने वाले, हिंदुत्व में व्याप्त जातिव्यवस्था और ऊंच नीच, भेदभाव पर चोट करने वाले व्यक्ति पैदा हुए तो उनको या तो समाज विरोधी और धर्म विरोधी, ईश्वर विरोधी या नास्तिक कह कर प्रचारित किया गया, उनकी विचारधारा को आगे नहीं बढ़ने दिया गया. और शंकराचार्य के रूप में नए-नए अवतार लाकर फिर से भारत को अंधविश्वास और जातिव्यवस्था के दल-दल में धकेल दिया गया.

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जरा सोचो नरेन्द्र मोदी जी जब भी विदेश की धरती पर गए उन्होंने ये नहीं कहा कि मैं श्री राम की धरती से आया हूँ. पीएम हमेशा यही कहते थे कि मैं बुद्ध की धरती से आया हूँ. इस बात से यह साबित हो जाता है कि भारत की पहचान बुद्ध और बौद्ध धर्म से है, न कि हिन्दू और हिन्दू धर्म से. भारत आते ही मोदी फिर 'राम' और हिंदुत्व के मोड में लौट आते हैं.

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ये हिंदुत्ववादी सरकार होने का ही नतीजा है कि-गाँधी को दरकिनार कर गोडसे को पूजा जा रहा है.

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गांधी को 1948 में मारकर गोडसेवादियों का मन नहीं भर रहा तो वे गांधी के पुतले बनाकर उनपर गोलियां बरपा रहे हैं, वे शायद नए जमाने के गोडसे हैं उन्होंने गांधी का बहता खून नहीं देखा होगा, इसलिए गांधी के पुतले में लाल रंग भर भर कर बेचारे बापू के खून की होली मना रहे हैं.,और हम हैं कि आखों में पट्टी बांधकर गाँधी वाद का वध होते चुपचाप देखते जा रहे हैं.

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बात कोई राजनीतिक नहीं है न किसी की बुराई है, एक कहावत है हाथ कंगन को आरसी क्या? मध्यप्रदेश प्रदेश में कांग्रेस की चुनी हुई सरकार को गिराकर भाजपा सत्तासीन हो गयी, और उसका नतीजा देखिये ग्वालियर में हिन्दू महासभा द्वारा गोडसे ज्ञानशाला खोली गई है.

अब इनसे कौन पूछेगा कि गोडसे ज्ञानशाला में कौन सा ज्ञान दिया जाएगा?

इस देश में तुलसीदास को मान्यता दी जाती है महान कवि और रचनाकार की, मनुस्मृति को मान्यता दी जाती है, सावरकर व गोडसे को मान्यता दी जाती है, मगर ई. रामासामी पेरियार को, ज्योतिबाफुले को, डॉ. आंबेडकर को, कबीरदास जी को, वो सम्मान नहीं दिया जाता जो अन्य हिंदूपन की बात करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है.

दो चीजें ध्यान देने वाली हैं, हिंदुत्व में जतिवाद, वर्णव्यवस्था, भेदभाव, असमानता, अंधविश्वास, पाखण्ड का विरोध करने वाले नास्तिक और धर्मविरोधी, समाज विरोधी और परंपरा विरोधी माने गए हैं. और आज की हालत भी कुछ यही बयान करती है- सरकार और मोदी की नीतियों का विरोध करना राष्टद्रोह बन जाता है. रोजगार की बात, न्याय की बात, धर्मनिरपेक्ष देश की बात, संविधान की बात, अधिकारों की बात, समता की बात करने वाले राष्ट्र विरोधी बन गए हैं. लोकतन्त्र है, मगर उस पर धीरे-धीरे आरएसएस का लेप चढ़ना शुरू हो गया है. संविधान भी है मगर उस पर भी धीरे-धीरे आरएसएस द्वारा निर्मित दीमक लगा दिया गया है.

ये बात भी समझना जरूरी है कि नए संसद भवन की इतनी जल्दीबाजी क्या थी?

नए पुल चाहिए थे, नए स्कूल, नए अस्पताल, नए रोजगार, नई सामाजिक क्रांति चाहिए थी, क्या पुराना संसद भवन जीर्ण शीर्ण हो गया था? कहीं किसी साजिश के तहत नए संविधान का तो निर्माण नहीं हो रहा है? क्योंकि जब तक डॉ आंबेडकर का बनाया हुआ संविधान जिंदा है, तब तक हिंदू राष्ट्र की कल्पना साकार नहीं हो सकती इसलिए धीरे-धीरे संसद बदलकर संविधान पर तो चोट करने का इरादा नहीं है?

जब खुलेआम अब गोडसे के नाम पर शिक्षा केन्द्र, जिनको "गोडसे ज्ञानशाला" नाम दिया गया है, खुल सकते हैं तो फिर कुछ भी संभव हो सकता है.

आईपी ह्यूमन

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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