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Amaltas tree full of amazing medicinal properties!
जानिए अमलतास के औषधीय गुणों के बारे में
भारतीय उपमहाद्वीप में अप्रैल से लेकर मई-जून तक की झुलसा देने वाली गर्मी से त्रस्त यहां के लोग इस प्राकृतिक आपदा से मुक्ति और राहत के लिए प्राचीन काल से ही सड़कों पर जगह-जगह घने छायादार वृक्षों, मिट्टी के घड़ों में भरे शीतल, स्निग्ध पेयजल, अमिया द्वारा बनाए गए पन्ने, जौ और चने के सत्तू, तरह-तरह के फलों से बने शरबत, छाछ, दही, लस्सी आदि प्रकृतिप्रदत्त उपलब्ध साधनों से कुछ चैन-सुकून पाने का यथासंभव प्रयास करते रहते रहे हैं, गर्मी में प्रकृति द्वारा भीषण गर्मी से मानव और अन्य पशु-पक्षियों के अमूल्य जीवन के बचाव के लिए तमाम तरह के रसीले फलों यथा चेरी, सालसा, ककड़ी, खीरा, तरबूज और खरबूज आदि भरपूर मात्रा में उपलब्ध कराए गए हैं।
चारों तरफ भीषण गर्मी की मृगतृष्णा से मानव सहित इस जैवमंडल के सभी जीवों की आंखों की तृप्ति और सुकून के लिए उसके चारों तरफ अमलतास सरीखे कोमल पीले पुष्प वाले पेड़ों का अविष्कार किया है ताकि गर्मी की मृगतृष्णा से त्रस्त हुए ये सभी उक्त वर्णित सभी जीव उन पीत पुष्पों की स्निग्ध कोमलता की शीतलता से अपने मनमस्तिष्क को कुछ क्षणों के लिए ही सही शीतलता का अहसास कर सकें।
आयुर्वेद में स्वर्ण वृक्ष किसे कहते हैं (What is the golden tree called in ayurveda)
इस बहुऔषधीय पेड़ अमलतासको आयुर्वेद में स्वर्ण वृक्ष, संस्कृत में व्याधिघात, नृप्रद्रुम, आरग्वध,मराठी भाषा में बहावा, कर्णिकार गुजराती में गरमाष्ठो,बँगला में सोनालू, अंग्रेजी भाषा में इसे गोल्डन शॉवर ट्री (Golden shower tree in Hindi), लैटिन भाषा में इसे कैसिया फ़िस्चुला (Cassia fistula) कहते हैं।
'अमलतास' शब्द संस्कृत में अम्ल मतलब खट्टा से निकला है।
अमलतास के फूल अप्रैल, मई और जून माह में खिलते हैं, जो आंखों को सरसों के फूल सदृश्य कोमल पीत पुष्प के रंग के झालरदार ढंग से, अत्यंत कलात्मक तरीके से अपने पेड़ों पर लटके हुए होते हैं। कोई-कोई अमलतास का पेड़ तो बिल्कुल पत्तीविहीन होकर पूरा पेड़ पीत पुष्पों से आच्छादित होकर अद्भुत अद्वितीय अतुलनीय और अवर्णनातीत सौंदर्य प्रस्तुत करता है।
यह पुष्पीय पौधा केवल आंखों को ही शीतलता नहीं प्रदान करता, अपितु इसका हर भाग मसलन तना, पत्ता, पुष्प और फल आदि सभी कुछ औषधीय गुणों से युक्त होता है। इसमें फूल खिलने के सिर्फ 45दिन के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में घनघोर बारिश होती है। इस कारण इसे गोल्डन शॉवर ट्री और इंडियन रेन इंडिकेटर ट्री भी कहा जाता हैं।
अमलतास की फलियाँ
शीतकाल में इसमें लगने वाली लगभग एक-डेढ़ फुट की काली या भूरी, बेलनाकार फलियाँ लटकी रहतीं है। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। उसी के बीच इनके छोटे-छोटे बीज होते हैं, यह काला, रसदार पदार्थ भी स्त्रियों के लिए प्रसवोपरांत बहुत ही लाभदायक पोषक तत्व से भरपूर होता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त,पीले रंग का उड़नशील औषधीय गुणों से भरपूर तेल मिलता है।
आयुर्वेद में इस वृक्ष के सभी भाग भारतीय औषधीय पौधा सहजन के समकक्ष औषधि के काम में आते हैं। अमलतास के पत्ते (Amaltas leaves) अमरूद और पपीते की तरह रेचक का काम करते हैं।
अमलतास के फूल (flowers of amaltas) कफ और पित्त को नष्ट करते हैं। अमलतास के फूल त्वचा को कोमल और कमनीय बनाते हैं। इनके फूलों को पीसकर इसका पेस्ट चेहरे पर लगाने से उस पर मौजूद दाग-धब्बे और टैनिंग दूर होती है।
फली और उसमें स्थित उसका गूदा पित्तनिवारक, कफनाशक, वातनाशक तथा आमाशय में मृदु प्रभावकारक हैं, इसलिए यह दुर्बल मनुष्यों तथा गर्भवती स्त्रियों को भी विरेचक औषधि के रूप में लाभदायक है। यह एक पेड़ है जिसकी पत्तियां, फूल, फल, तना और जड़ अपने आप में महत्वपूर्ण औषधीय गुणों से परिपूर्ण है।
बुखार के लिए अमलतास उपयोगी है तो अमलतास की छाल (bark of amaltas) की सहायता से मधुमेह जैसी आम बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है। इसकी छाल में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के भी गुणों की जानकारी मिली है।
फोड़ा, फुंसी, खाज और खुजली के लिए तो आयुर्वेद में इसे रामबाण औषधि माना गया है। अमलतास पत्तियों के नियमित सेवन से गैस,कब्ज और गठिया जैसी बीमारी भी दूर की जा सकतीं हैं।
आयुर्वेद में इसे "सर्वरोग प्रशमणि" के रूप में पहचाना गया है, जिसका अर्थ है कि यह सभी प्रकार के रोग ठीक करता है और शरीर को माइक्रोबियल संक्रमण से बचाता है। इसमें रेचक, कार्मिनेटिव एंटी-प्रुरिटिक और एंटी इन्फ्लेमेटरी या Carminative Anti-pruritic and Anti-Inflammatory जैसे गुण होते हैं।
अमलतास इम्यूनिटी को बूस्ट करने में भी काफी अच्छी भूमिका निभाता है, अमलतास की छाल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर या Rich in anti-oxidant properties होती है।
अमलतास के सेवन से इम्यून सिस्टम बेहतर होता है जिससे इम्यूनिटी स्ट्रांग बनती है और सीजनल बीमारियों का खतरा कम होता है।
इसकी पत्तियों का नियमित सेवन करने से जोड़ों में दर्द में गठिया आदि की समस्या भी कम होती है । डायबिटीज को कंट्रोल करने में अमलतास की छाल काफी सहायक है, इसके लिए अमलतास के पेड़ की छाल का अर्क बनाकर इसका सेवन कर सकते हैं। कहा जाता है किये अर्क इंसुलिन को कंट्रोल करता है जिससे शुगर लेवल भी कंट्रोल में रहता है।
आयुर्वेद के अनुसार अमलतास की मदद से त्वचा के रोग,दिल से जुड़ी बीमारियों,टीबी आदि रोग दूर कर सकते हैं। बवासीर की समस्या से निजात पाने के लिए भी अमलतास का इस्तेमाल किया जाता है।
बताया जाता है कि रूमेटोइड अर्थराइटिस यानी जोड़ों में दर्द, सूजन और जकड़न की समस्या में अमलतास का सेवन बहुत ही लाभदायक रहता है। इसके लिए 1 से 2 चम्मच अमलतास के फल का पल्प लें और उसे दो कप उबलते पानी में डाल दें, जब पानी आधा रह जाए तो काढ़ा बन जाएगा। भोजन करने के पश्चात इसे एक चम्मच लेना होता है। कहा जाता है कि अमलतास के इस्तेमाल से रूमेटाइड की समस्या में बहुत शीघ्रता से आराम मिलता है।
आजकल बाजार में आयुर्वेदिक दुकानों पर अमलतास की कैप्सूल भी मिलती है लेकिन अमलतास के ज्यादा इस्तेमाल करने से खांसी या सर्दी हो सकती है क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है इसलिए संतुलित मात्रा में ही इसका प्रयोग करना स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है।
केरल का राजकीय फूल
अमलतास के औषधीय गुणों के खुलासे के बाद केरल राज्य ने इसे अपने राज्य के राजकीय फूल के रूप में सम्मिलित किया हुआ है। यही वजह है कि भारत के अन्य सभी राज्यों से केरल में ही अमलतास के पेड़ों की संख्या सर्वाधिक है। वहां अमलतास के पेड़ों के लैंडस्केप एक बहुत बड़े हिस्से भी नजर आने लगे हैं और वहां पौधरोपण में भी इसे सबसे ज्यादा वरीयता और स्वीकार्यता मिल रही है।
लेकिन आज के आधुनिक युग में मानव कृत प्रदूषण से यथा करोड़ों की संख्या में वातानूकुलित यंत्रों तथा कार सरीखे वाहनों से निकलने वाली अत्यंत जहरीली और गर्म गैसों के प्रभाव से इस धरती पर हर साल आनेवाली ग्रीष्म ऋतु अब इस धरती के समस्त जैवमण्डल के लिए ही अब बहुत खूंख्वार और भयावहतम् हो चली है। उदाहरणार्थ जहां कुछ वर्षों पूर्व तक दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में गर्मियों में जहां अधिकतम् तापमान 44से 45डिग्री सेल्सियस तक ही पहुंच पाता था, वहां इस वर्ष 2022 में इन स्थानों का तापमान 47से 49 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज किया गया है। इस भीषण त्रासद समय में प्रकृतिप्रदत्त तमाम तरह के रसीले फलों यथा चेरी, फालसा, ककड़ी, खीरा, तरबूज और खरबूज आदि के भरपूर मात्रा में उपलब्धता के लिए उनके उत्पाद के लिए गहन कृषि किए जाने तथा अमलतास सरीखे शीतलता प्रदान करने वाले वृक्षों को वृक्षारोपण में वरीयता प्रदान करने की अत्यंत आवश्यकता हो गई है।
-निर्मल कुमार शर्मा