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मोदी-शाह की शह पर टारगेट किए जा रहे सरकारी शिक्षण संस्थान !

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hastakshep
06 Jan 2020
मोदीशाह घटना बन सकते हैं लेकिन इतिहास नहीं

Government educational institutions being targeted at the instigation of Modi-Shah!

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जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में आंदोलनरत विद्यार्थियों को पुलिस द्वारा पीटने, छात्राओं के टायलेट में घुसने पर भी उनको न बख्शने, बीएचयू में एक मुस्लिम शिक्षक के संस्कृत पढ़ाने का विरोध करने और अब जेएनयू में घुसकर विद्यार्थियों और शिक्षकों को नकाबपोशों द्वारा पीटने की घटना। यह देश में हो क्या रहा है ?

इन तीनों मामलों में जो बातें निकलकर आ रही हैं इसके आधार पर तो यही कहा जा सकता है कि बिगड़े माहौल के पीछे सत्ता और उससे जुड़े संगठनों का हाथ है। हालांकि जेएनयू में मारपीट मामले में गृह मंत्री अमित शाह ने मामले में जल्द रिपोर्ट मांगी है। पुलिस के भी नकाबपोशों को पहचानने कर बात सामने आ रही है। पर क्या केंद्र सरकार ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बने अराजकता के माहौल को शांत करने का प्रयास किया ? न केवल सीएए के विरोध में हो आंदोलन बल्कि विभिन्न शिक्षण संस्थानों में बिगड़े माहौल को शांत करने के बजाय केंद्र सरकार ने अपने एजेंडे के प्रति हठधर्मिता ही दिखाई। प्रधानमनंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से रामलीला मैदान में हुई भाजपा की  रैली में घायल छात्र-छात्राओं के प्रति हमदर्दी न दिखाकर पुलिस को शाबाशी दी उससे तो यही लगा।

जामिया में जिस तरह से आंदोलनरत विद्यार्थियों को टारगेट किया गया उससे तो यही लगा कि जैसा पुलिस ने किसी योजना के तहत ऐसा किया। इसे सरकार का विद्यार्थियों के भविष्य के प्रति उपेक्षित रवैया ही कहा जाएगा कि आंदोलन को समाप्त करने के लिए सरकार की ओर से पहल न होने की वजह से जामिया दिल्ली का दूसरा जंतर-मंतर बन चुका है। बीएचयू में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी इस बात को मुद्दा बना लिया था कि एक मुस्लिम शिक्षक संस्कृत क्यों पढ़ा रहा है। इस मुद्दे को लेकर बीएचयू में लंबे समय तक आंदोलन चला पर सरकार की ओर से कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया।

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जेएनयू में अचानक की गई भारी फीस वृद्धि के विरोध में जब बड़ा आंदोलन हुआ तो सरकार में बैठे लोगों ने इसका यह कहकर विरोध किया कि जेएनयू में सस्ता निवास और सस्ती शिक्षा के लिए वहां छात्र-छात्राएं लबें समय तक टिके रहते हैं।

जेएनयू में भाजपा समर्थकों ने गरीब बच्चों को मिल रही सस्ती शिक्षा का विरोध करना शुरू कर दिया।

जेएनयू की ऐसी छवि बनाने की कोशिश की गई कि जैसे वह अय्याशी का केंद्र बनकर रह गया हो। जेएनयू के साथ ही जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में छात्र-छात्राओं के साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया गया पर केंद्र सरकार की ओर से पुलिस पर कार्रवाई करने के बजाय उनको शाबादी दी गई।

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देश में कुकुरमुत्ते की तरह खुले निजी शिक्षण संस्थानों के चलते वैसे ही शिक्षा का कबाड़ा किया जा चुका है अब जो कुछ बचा-खुचा था वह जेएनयू, जामिया के साथ दूसरे अन्य सरकारी संस्थानों को टारगेट बनाकर कर दिया जा रहा है।

देश में जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को मिलने वाली सहूलियतें और बौद्धिकता के मामले में अव्वल माने जाते रहे हैं। उनमें तर्क-वितर्क करने की शक्ति होती है और केंद्र में बैठे लोग नहीं चाहते कि उनके खिलाफ कोई आवाज उठे। वह तो हर किसी को भेड़ की तरह हांकने पर उतारू हैं। यही वजह है कि दोनों ही संस्थान न केवल पूंजीपतियों बल्कि सरकार के भी निशाने पर हैं। इन सब बातों से तो ही ऐसा लग रहा है कि जैसे  देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा हो कि गरीब बच्चे पढ़-लिखकर आगे न जाने पाएं।

निजी संस्थानों को बढ़ावा देने तथा सरकारी शिक्षण संस्थानों का टारगेट बनाने की सरकार की नीति गरीब बच्चों को न केवल लगातार पीछे धकेल रही है बल्कि सरकारी शिक्षण संस्थानों को भी टारगेट बनाया हुआ है।

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मोदी सरकार के करीबी श्रीश्री रविशंकर ने तो सरकारी स्कूलों से नक्सलियों के तैयार होने की बात तक कह दी थी। वह बात दूसरी है कि उनकी खुद की एक यूनिवर्सिटी है।

वैसे तो हर सरकार सरकारी शिक्षण संस्थानों के उपेक्षा कर निजी शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देती आई हैं पर मोदी सरकार ने तो जैसे सरकारी शब्द ही खत्म करने की मन बना लिया हो। वैसे तो वह हर किसी का निजीकरण करने पर उतारू हैं पर शिक्षण संस्थानों के तो जैसे वह तो वह हाथ धोकर पीछे पड़ गये हों।

दिल्ली यूनिर्विसटी में भी एबीवीपी ने भगत सिंह की प्रतिमा के साथ ही सावरकर की प्रतिमा स्थापित करने की मांग, जिसका दूसरे छात्र संगठनों ने विरोध किया।

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CHARAN SINGH RAJPUT, चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश में चल रही मोदी सरकार में तो शिक्षा को लेकर गजब माहौल बना दिया गया है। जहां देश में सस्ती शिक्षा के लिए आंदोलन होने चाहिए थे वहीं लोग जेएनयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सस्ती शिक्षा का विरोध करने लगे हैं। उनका तर्क है कि जब उनके बच्चे महंगे शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे हैं तो जेएनयू जैसा सस्ता शिक्षण संस्थान क्यों ? एक ओर लोग महंगी शिक्षा को कोसते हुए अपने बच्चों को पढ़ाना मुश्किल कह रहे हैं तो दूसरी ओर सस्ती शिक्षा का विरोध कर रहे हैं। यह सब जातिवाद, धर्मवाद और आर्थिकवाद के वशीभूत होकर किया जा रहा  है।

दरअसल मोदी सरकार में पूंजीवाद और धर्मवाद का बोलबाला जमकर हो रहा है। मोदी सरकार में भी विभिन्न पदों पर बैठे लोग भी इसी मानसिकता के हैं। इस सरकार में सम्पन्न वर्ग को ध्यान में रखकर सारे काम हो रहे हैं। रेलवे के निजीकरण के नाम पर चली पहली ट्रेन 'तेजस' सबसे बड़ा उदाहरण है। एक ओर मोदी सरकार में रोजी-रोटी का बड़ा संकट देश परआ खड़ा हुआ है वहीं दूसरी ओर  यह सरकार सरकारी संस्थानों को संरक्षण देने के बजाय उनको खत्म करने पर उतारू है। मोदी सरकार का यह रवैया शिक्षा नीति का भी कबाड़ा कर दे रहा है।

सी.एस. राजपूत

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