लखनऊ, 19 जुलाई 2020, बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 51 साल पूरे(51 years of nationalization of banks) होने पर बैंकों के कर्मचारियों की यूनियन द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बकायेदारों की सूची जारी करने का स्वागत करते हुए ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी ने मोदी सरकार से मांग की है कि उसे तत्काल इन बकायेदारों से कर्ज की वसूली करनी चाहिए और इसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वापस करना चाहिए साथ ही उसे बैंकों के निजीकरण पर रोक लगानी चाहिए.
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उन्होंने प्रेस को जारी अपने बयान में कहा कि इस सूची के जारी होने के बाद अब यह साफ हो गया है की अपने कारपोरेट मित्रों की मदद के लिए तमाम सरकारों ने नियम कानूनों को ताक पर रखकर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के जरिए कर्ज बांटा और जनता के धन के लूट को अंजाम दिया. सरकारों ने जानबूझकर कर्ज न लौटाने वाले इन कारपोरेट घरानों के कर्जों को माफ कर दिया और वसूली नहीं की, जिसने बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और देश की अर्थव्यवस्था को खोखला करने का काम किया है.
उन्होंने कहा कि आज जो आर्थिक संकट देश झेल रहा है उसके पीछे मोदी सरकार समेत तमाम सरकारों द्वारा अपने कारपोरेट मित्रों को कर्ज बांटने और उसकी वसूली न करने की नीति भी बड़े पैमाने पर जिम्मेदार हैं. इसी के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बर्बाद हुए. इस नीति पर पुनर्विचार करने की जगह सरकारें बैंकों को बंद करने, उनका विलय करने और पुनर्गठन करने में लगी रही. एक तरफ सरकार किसानों, बुनकरों व छोटे मझोले व्यपारियों का कर्ज आज भी माफ करने को तैयार नहीं है. वही सक्षम कारपोरेट घरानों का लाखों करोड़ों कर्ज माफ कर दिया.
उन्होंने कहा कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में किसानों को सुलभ, सुरक्षित व सस्ता कर्ज देने व आम आदमी तक बैकिंग पहुंचाने व सूदखोरी से मुक्ति के लिए किया गया था. जिसे निजीकरण के जरिये बर्बाद किया जा रहा है.
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उन्होंने कहा बैंक के कर्ज में हुई लूट की वजह से मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट तक में इन बकायेदारों की सूची सार्वजनिक करने से बच रही थी क्योंकि इससे उसका चेहरा बेनकाब हो जाता.
श्री दारापुरी ने कहा कि कोविड-19 की इस वैश्विक आपदा और आर्थिक संकट के दौर में यह आवश्यक व राष्ट्र हित में होगा कि बैंकों में जमा जनता के धन की कारपोरेट मित्रों को कर्जा बांटकर जो लूट की गई है उसे सरकार ठीक करे और जानबूझकर कर्ज न देने वाले कारपोरेट घरानों से वसूली की जाए. इसके लिए यदि आवश्यक हो तो सरकार को अध्यादेश या कानून भी लाना चाहिए ताकि देश की आर्थिक स्थिति सुधर सके.