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Governments moving towards dictatorship under the cover of Corona crisis
लखनऊ 9 मई, 2020: ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता और अवकाशप्राप्त आईपीएस एस आर दारापुरी (National spokesperson of All India People's Front and retired IPS SR Darapuri) ने कहा है कि सरकारें कोरोना संकट की आड़ में तानाशाही की ओर बढ़ रही हैं।
आज यहां जारी बयान में कही है. उन्होंने कहा कि यह सही है कि कोरोना से लड़ने के लिए सरकारों को कुछ विशेष व्यवस्थाएं एवं नियम कानून लागू करने पड़ते हैं ताकि इस में किसी प्रकार की अनावश्यक बाधा उत्पन्न न हो, परन्तु इसकी आड़ में सरकारें कड़े कानून बना कर तानाशाही को ओर बढ़ रही हैं. हमारे देश में महामारी से लड़ने हेतु एक कानून अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है जिसे “द एपिडेमिक डिज़ीज़ज़ एक्ट- 1897’ अर्थात ‘महामारी रोग अधिनियम 1897’ (Epidemic Diseases Act, 1897 (साथरोग अधिनियम, १८९७)) के नाम से जाना जाता है. इस एक्ट के अंतर्गत पारित आदेशों का उलंघन धारा 188 आईपीसी में दंडनीय है जिसमें 1 महीने की साधारण जेल और 200 रुo जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
श्री दारापुरी ने आगे कहा है कि हाल में केन्द्रीय सरकार ने महामारी रोग अधिनियम 1897 में संशोधन करके इसे अति कठोर बना दिया है. इसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा करता है और उसे साधारण चोट पहुंचाता है तो दोषी पाए जाने वाले को 3 महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50,000 से 2 लाख रुपये तक का जुर्माना और गंभीर चोट पहुंचाने पर 6 महीने से लेकर 7 साल तक की जेल की सजा और1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी लगेगा. इस सजा के अतिरिक्त उसे किसी भी प्रकार की संपत्ति की क्षति की पूर्ती हेतु क्षति के बाज़ार पर मूल्य का दुगना हर्जाना भी देना होगा
इसी प्रकार दिनांक 6 मई, 2020 को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इसे विस्तार देने के साथ साथ और भी कठोर बना दिया है. यूपी लोक स्वास्थ्य एवं महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश द्वारा के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी को जानबूझकर बीमारी से संक्रमित करता है और उसकी मौत हो जाती है तो आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। अगर कोई व्यक्ति किसी को संक्रामक रोग से जानबूझकर उत्पीड़ित करता है तो उसे 2 से 5 साल तक की जेल और 50 हजार से 2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। अगर जानबूझकर कोई 5 या अधिक व्यक्तियों को संक्रमित कर उत्पीड़ित करता है तो उसे 3 से 10 साल तक जेल हो सकती है। साथ ही 1 लाख से 5 लाख तक जुर्माना भी है। अगर इस उत्पीड़न की वजह से मौत हुई तो तो कम से कम 7 साल की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास तक हो सकता है। वहीं 3 लाख से 5 लाख रुपये जुर्माने की भी सजा तय की गई है। इसमें स्वास्थ्य कर्मियों के अतिरिक्त सफाई कर्मियों, पुलिस कर्मचारियों तथा कोरोना कार्य में लगे अन्य सभी कर्मचारियों को भी शामिल कर दिया गया है.
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अध्यादेश में यह भी शक्ति दी गई है कि सरकार पीड़ित व्यक्तियों के मृत शरीरों के निस्तारण या अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी निर्धारित कर सकती है। अगर किसी व्यक्ति या किसी संगठन के जानबूझकर या उपेक्षापूर्ण आचरण से नुकसान होता है तो उसकी वसूली भी उसी से की जाएगी। अगर इस कृत्य से किसी की मौत हो जाती है तो दोषी से सरकार के दिए गए मुआवजे के बराबर वसूली की जा सकेगी।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि कोरोना संकट की आड़ में सरकारें अति कठोर कानून बना कर अपनी पकड मज़बूत करने में लगी हैं जोकि लोकतंत्र के लिए खतरा है.यह भी सर्वविदित है कि इन कानूनों के पूर्व की भांति दुरूपयोग की भी पूरी सम्भावना रहती है.
अतः आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट सरकारों के इस तानाशाही रवैये की निंदा करता है और सरकारों से अनुरोध करता है कि वे कोरोना संकट की आड़ में कठोर कानून बनाने से परहेज़ करें. इसके साथ ही वह आम जनता को सरकारों के ऐसे प्रयासों के प्रति सतर्क रहने का आवाहन भी करता है.