Advertisment

यूपी से लेकर बिहार तक महागठबंधन क्यों फेल हो रहा है? तेजस्वी की हार उनके अपने वोट बैंक से हुई

author-image
hastakshep
02 Dec 2020
गुलामी से मुक्ति : बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे बड़े मुद्दे की अनदेखी!

Advertisment

Why is the grand alliance failing from Uttar Pradesh to Bihar?

Advertisment

उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव परिणाम (Lok Sabha election result) आते ही बसपा प्रमुख मायावती ने समाजवादी पार्टी पर इल्ज़ाम लगाते हुए अखिलेश यादव को नसीहत दे डाली कि आप का वोट बैंक सपा से खिसक गया है और बसपा को वोट ट्रान्सफर नहीं हुआ है। लेकिन अभी तक बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन की पार्टियों ने किसी पर इल्ज़ाम नहीं लगाया कि किसी पार्टी का वोट बैंक हमें नहीं ट्रान्सफर नहीं हुआ, लेकिन खास बात यह है कि वहाँ भी ऐसा ही हुआ है।

Advertisment

राजद का कोर वोट बैंक (यादव) इस बार महागठबंधन में राजद को छोड़ कर और सहयोगी दलों को वोट ना दे कर सीधे तौर पर भाजपा को दिया। और यह सब खास तौर पर उन सीटों, जहाँ महागठबंधन के मुस्लिम प्रत्याशी थे, वहाँ पर अपनी पार्टी को वोट ना दे कर सीधे तौर पर भाजपा को वोट दिया और यही कारण है कि भाजपा बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतने में कामयाब हुई है।

Advertisment

ये सिलसिला 2014 के लोकसभा चुनाव से ही शुरू हो गया था और अभी तक हर हिन्दी भाषी प्रदेशों में ये सिलसिला जारी है, लेकिन इस हक़ीक़त को अभी तक ये सभी क्षेत्रीय पार्टियां कुबूल नहीं कर रही हैं और  हर जगह इस बात को बोलती रहती हैं कि हमारा वोट बैंक हमारे साथ है और पिछले बार से ज्यादा हमें वोट मिलेगा लेकिन हर चुनाव में इसके उलट ही नतीजे आ रहे हैं।

Advertisment

और ये सब इसलिए ये बात बोलते रहते हैं क्यूंकि इन सभी क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी हक़ीक़त पता है कि हमें कौन वोट दे रहा है और कौन नहीं दे रहा है। लेकिन तब भी वह ये कुबूल नहीं करेंगे क्यूंकि उन्हे डार है कि जो इतने वर्षों मुसलमानों को तथाकथित सेक्युलर पार्टियों ने मानसिक गुलाम बना कर रखा है  वो उनसे छिटक जाएगा और वह पहले की तरह या तो वह देश की और अपनी सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में वापस चला जाएगा या फिर किसी नये मुस्लिम नेता को अपना रहनुमा मान कर उसकी पार्टी में चला जाएगा और यदि ऐसा हुआ तो  फिर ये क्षेत्रीय सामाजिक पार्टियां कभी दोबारा सरकार में नहीं आ पाएंगी।

Advertisment

और ऐसा होने में अब बहुत देर नहीं है क्यूँकि अभी हाल ही के दिनों में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में ऐसा ही देखने को मिला है, जहाँ की जनता में सरकार के खिलाफ जबरदस्त मुखालफत थी, लोग नीतीश कुमार से थक चुके थे और लोगों को तेजस्वी यादव में भविष्य दिखता था, लेकिन तेजस्वी यादव की हार उनके अपने वोट बैंक से हुई है।

Advertisment

मैं अपनी इस बात को समझाने के लिए आप को दो सीट का हाल बताता हूँ। सीट का नाम है क्योटी, जहां से राजद के एक बहुत ही वरिष्ठ नेता, जो खुद इस बार चुनाव लड़ रहे थे, उनकी सीट का हाल बताना चाहता हूं।

अब्दुल बारी सिद्दीकी क्यों हारे | Keoti Election 2020

क्योटी जो कि मिथलांचल में आती है, वहां से चुनाव लड़ रहे थे राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी, जिनको हार का सामना करना पड़ा। क्योटी का चुनावी समीकरण बिल्कुल ही राजद के पक्ष में था, लेकिन यहाँ वही हुआ जिस का जिक्र मैं पहले कर चुका हूँ। यहाँ राजद का वोट राजद को नहीं मिला तो आप सोच सकते हैं कि राजद का वोट किसी दूसरी सहयोगी पार्टियों को क्यूँ मिलेगा।

और दूसरी सीट का हाल बता दूँ जो कि क्योटी से लगी हुई थी जिस नाम था 87 जाले विधानसभा क्षेत्र। यहाँ महा गठबंधन के प्रत्याशी थे मशकूर अहमद उस्मानी जो वहां के समीकरण में बिल्कुल फिट बैठते थे, वहाँ मुस्लिम मतदाता 36% था यादव और कम्यूनिस्ट का वोट मिला दे to 52-53% था और वोट मिला 38% जब कि वहां कोई और ऐसा कैंडिडेट नहीं था जो वोट बंटा हो।

ये दो वो सीट हैं जहाँ  मैं खुद गया और फील्ड में रहकर ये सब देखा और समझा है।

यही सब कारण है जिस को असद्दुदीन ओवैसी अपनी पब्लिक रैलियों में बोलते हैं और नौजवानों के साथ आम मुसलमानों में लोकप्रिय हो रहे हैं और इन्हीं सब के चलते सीमांचल में असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 5 सीट जीत ली हालाँकि उनकी पार्टी वहां 5 साल से लगातार मेहनत कर रही थी उसको भी नाकारा नहीं जा सकता है।

अब आने वाले चुनावों में मुस्लिम समाज इन जातिगत पार्टियों को वोट नहीं देने का मन बना रहा है क्यूँ कि मुसलमानों के हर मुद्दे पर ये ख़ामोश हो जाती हैं।

अब जैसे कि उत्तर प्रदेश की बात करें यहां पर मुख्य विपक्षी पार्टी है समाजवादी पार्टी और जिस को मुसलमान हमेशा से वोट करते हुए आ रहा है, लेकिन जब उन्हीं की पार्टी एक सांसद जो कि एक यूनिवर्सिटी का चांसलर भी है, जिनका नाम मोहम्मद आज़म खान है और उसके साथ पार्टी के ही एक विधायक (अब्दुल्ला आज़म खान के बेटे) और डॉ तनजीन फातिमा उनकी पत्नी कई महीनों से जेल में बंद हैं। उन पर फर्जी मुकदमे हुए, लेकिन उनके लिए समाजवादी पार्टी ने ऐसा कुछ नहीं किया जो कि लोगों को बताने लायक हो, बस एक बार मिलने के सिवा।

ये सब बातें आम मुसलमान कहने लगा कि जब समाजवादी पार्टी ने अपने इतने बड़े नेता के लिए कुछ नहीं किया तो वह आम मुसलमान या पार्टी के आम कार्यकर्ता के लिए क्या करेगी।

ये सब बाते हैं जिस को आम मुसलमान भाँप रहा है और वह दूसरे विकल्पों पर ध्यान दे रहा है।  जिस में दो ही चीज़ हो सकती हैं, या तो अपनी मुस्लिम लीडरशिप खड़ी करे या फिर वो अपनी पुरानी पार्टी कांग्रेस की तरफ वापसी करे।

मुस्लिम लीडरशिप खाड़ी होना उत्तर प्रदेश में बहुत मुश्किल है और ना के बराबर है लेकिन दूसरा ऑप्शन तो बचा ही रहेगा।

बाकी आने वाला वक्त तय करेगा कि क्या सही और क्या ग़लत है।

इंजीनियर मोहम्मद हुमायूं खान

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

Engineer Mohammad Humayun Khan

Engineer Mohammad Humayun Khan

Advertisment
सदस्यता लें