जानिए क्या है नई डिजिटल मीडिया आचार संहिता

author-image
hastakshep
25 Feb 2021
जानिए क्या है नई डिजिटल मीडिया आचार संहिता

सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 अधिसूचित किए

Government notifies Information Technology (IntermediaryGuidelines and Digital Media Ethics Code) Rules 2021

Guidelines Related to Social Media to Be Administered by the Ministry of Electronics and IT:

नई दिल्ली, 25 फरवरी 2021. केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 अधिसूचित कर दिए हैं। एक सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा भारत में कारोबार करने का स्वागत है, लेकिन उन्हें भारत के संविधान और कानूनों का पालन करना होगा।

विज्ञप्ति के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल निश्चित तौर पर सवाल पूछने और आलोचना करने के लिए किया जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने आम उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है, लेकिन इसका दुरुपयोग होने और गलत लाभ उठाने पर वे अवश्‍य जवाबदेह होंगे।

विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि नए नियमों ने सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है,  और इनमें उनकी शिकायतों के निवारण व समय पर समाधान के लिए उपयुक्‍त व्‍यवस्‍था है। डिजिटल मीडिया और ओटीटी से जुड़े नियमों में आतंरिक एवं स्व-नियमन प्रणाली पर अधिक फोकस किया गया है जिसमेंपत्रकारिता व रचनात्मक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए एक मजबूत शिकायत निवारण व्‍यवस्‍था की गई है

प्रगतिशील, उदार और समसामयिक है प्रस्तावित रूपरेखा

विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि प्रस्तावित रूपरेखा में रचनात्मकता और अपने विचार व्‍यक्‍त करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के बारे में किसी भी गलतफहमी को दूर करते हुए लोगों की विभिन्न चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है। इंटरनेट पर कोई सामग्री देखने और किसी थिएटर एवं टेलीविजन के दर्शक के बीच अंतर को ध्यान में रखते हुए ही दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं

जानिए क्या हैं सोशल मीडिया के नए नियम – विज्ञप्ति के मुताबिक -

“डिजिटल मीडिया से जुड़ी पारदर्शिता के अभाव, जवाबदेही और उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच आम जनता और हितधारकों के साथ विस्तृत सलाह-मशविरा के बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87(2) के तहत मिले अधिकारों का उपयोग करते हुए और पूर्व सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश) नियम 2011 के स्‍थान पर सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 तैयार किए गए हैं।

इन नियमों को अंतिम रूप देते समयइलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और सूचना व प्रसारण मंत्रालय दोनों ने आपस में विस्तृत विचार-विमर्श किया, ताकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ-साथ डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म, इत्‍यादि के संबंध में एक सामंजस्यपूर्ण एवं अनुकूल निगरानी व्‍यवस्‍था सुनिश्चित की जा सके।

इन नियमों का भाग-II इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगा, जबकि डिजिटल मीडिया के संबंध में आचार संहिता और प्रक्रिया एवं हिफाजत से संबंधित भाग- III को सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा संचा‍लित किया जाएगा।“

डिजिटल मीडिया आचार संहिता नियम 2021 की पृष्ठभूमि : विज्ञप्ति के मुताबिक -

डिजिटल इंडिया कार्यक्रम ने अब एक आंदोलन का रूप ले लिया है जो प्रौद्योगिकी की ताकत के बल पर आम भारतीयों को सशक्त बना रहा है। मोबाइल फोन, इंटरनेट, इत्‍यादि के व्यापक प्रसार ने कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को भी भारत में अपनी पैठ को मजबूत करने में सक्षम कर दिया है। आम लोग भी इन प्लेटफॉर्मों का उपयोग अत्‍यंत महत्वपूर्ण तरीके से कर रहे हैं। कुछ पोर्टल, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के बारे में विश्लेषण प्रकाशित करते हैं और जिनको लेकर कोई विवाद नहीं है, ने भारत में प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के उपयोगकर्ताओं की कुल संख्‍या के बारे में निम्‍नलिखित आंकड़े पेश किए हैं:

व्हाट्सएप के उपयोगकर्ता: 53 करोड़

यूट्यूब के उपयोगकर्ता 44.8 करोड़

फेसबुक के उपयोगकर्ता: 41 करोड़

इंस्टाग्राम के उपयोगकर्ता: 21 करोड़

ट्विटर के उपयोगकर्ता: 1.75 करोड़

इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने आम भारतीयों को अपनी रचनात्मकता दिखाने, सवाल पूछने, विभिन्‍न सूचनाओं से अवगत होने और सरकार एवं उसके अधिकारियों की आलोचना करने सहित अपने-अपने विचारों को खुलकर साझा करने में सक्षम बनाया है। सरकार लोकतंत्र के एक अनिवार्य अंग के रूप में आलोचना करने एवं असहमति व्‍यक्‍त करने से संबंधित प्रत्येक भारतीय के अधिकार को स्वीकार करती है और उसका सम्मान करती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा खुला इंटरनेट समाज है और सरकार सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा भारत में अपना संचालन करने, कारोबार करने और इसके साथ ही मुनाफा कमाने का भी स्वागत करती है। हालांकि, इन कंपनियों को भारत के संविधान और कानूनों के प्रति जवाबदेह होना पड़ेगा।

सोशल मीडिया का प्रसार, एक तरफ नागरिकों को सशक्त बनाता है तो दूसरी तरफ कुछ गंभीर चिंताओं और आशंकाओं को जन्म देता है जो हाल के वर्षों में कई गुना बढ़ गए हैं। इन चिंताओं को समय-समय पर, संसद और इसकी समितियों, न्यायिक आदेशों और देश के विभिन्न हिस्सों में सिविल सोसाइटी द्वारा किए गए विचार-विमर्श समेत विभिन्न मंचों पर उठाया गया है। इस तरह की चिंताओं को दुनिया भर में भी उठाया जाता है और यह एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया है।

हाल में, सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कुछ बहुत परेशान करने वाले घटनाक्रम देखे गए हैं। फर्जी खबरों के लगातार प्रसार ने कई मीडिया प्लेटफार्मों को तथ्य-जांच तंत्र बनाने के लिए मजबूर किया है। महिलाओं की छेड़छाड़ वाली तस्वीरों और बदला लेने वाली पोर्न से संबंधित सामग्री को साझा करने के लिए सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने महिलाओं की गरिमा के लिए खतरा पैदा किया है।

कॉरपोरेट प्रतिद्वंद्विता को अनैतिक तरीके से निपटाने के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग, व्यापार जगत के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है। प्लेटफार्मों के माध्यम से अपमानजनक भाषा, अनर्गल और अश्लील सामग्री तथा धार्मिक भावनाओं के प्रति असम्मानजनक विचारों के इस्तेमाल की घटनाएं बढ़ रहीं हैं।

पिछले कई वर्षों से, अपराधियों और राष्ट्र-विरोधी तत्वों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बढ़ते मामलों ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए नई चुनौतियां पैदा की हैं। इनमें शामिल हैं- आतंकवादियों की भर्ती के लिए लोगों को उकसाना, अश्लील सामग्री का प्रसार, असहिष्णुता फैलाना, वित्तीय धोखाधड़ी, हिंसा भड़काना आदि।

यह पाया गया कि वर्तमान में कोई मजबूत शिकायत तंत्र नहीं है, जिसमें सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफार्मों के सामान्य उपयोगकर्ता अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं और निश्चित समय-सीमा के भीतर इसका समाधान कर सकते हैं। पारदर्शिता की कमी और मजबूत शिकायत समाधान तंत्र की अनुपस्थिति ने उपयोगकर्ताओं को पूरी तरह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के मनमौजीपन पर निर्भर कर दिया है। अक्सर देखा जाता है कि एक उपयोगकर्ता जिसने सोशल मीडिया प्रोफाइल विकसित करने में अपना समय, ऊर्जा और पैसा खर्च किया है, उसकी प्रोफ़ाइल को प्लेटफार्म द्वारा प्रतिबंधित कर दिया जाता है या हटा दिया जाता है। उसे सुनवाई का मौका भी नहीं दिया जाता और ऐसी स्थिति में उपयोगकर्ता के पास कोई उपाय नहीं बचता है।

सोशल मीडिया और अन्य मध्यस्थों का विकास :

यदि हम सोशल मीडिया मध्यस्थों के विकास पर गौर करते हैं, तो पाते हैं कि वे अब केवल मध्यस्थ की भूमिका निभाने तक सीमित नहीं हैं और अक्सर वे प्रकाशक बन जाते हैं। इन नियमों में उदार भावना के साथ स्व-नियामक तंत्र का अच्छा मिश्रण है। यह देश के मौजूदा कानूनों और अधिनियमों के अनुसार काम करता है, जो ऑनलाइन या ऑफलाइन सामग्री पर समान रूप से लागू होते हैं। समाचार और सामयिक घटनाक्रम के संदर्भ में प्रकाशकों से उम्मीद की जाती है कि वे प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पत्रकार आचरण और केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम के तहत कार्यक्रम संहिता का पालन करेंगे, जो पहले से ही प्रिंट और टीवी पर लागू हैं। इसलिए, प्रस्ताव में समानता के आधार को प्रमुखता दी गयी है।

डिजिटल मीडिया आचार संहिता संबंधित नए दिशा-निर्देशों का औचित्य

विज्ञप्ति के मुताबिक – ये नियम, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के आम उपयोगकर्ताओं को उनके अधिकारों के उल्लंघन के मामले में उनकी शिकायतों के समाधान होने और इनकी जवाबदेही तय करने के लिए पर्याप्त रूप से सशक्त बनाते हैं। इस दिशा में, निम्नलिखित घटनाक्रम उल्लेखनीय हैं:

•सर्वोच्च न्यायालय ने रिट याचिका (प्रज्जवल मुकदमा) पर स्वतः संज्ञान लेते हुए 11 दिसम्बर, 2018 के आदेश में कहा था कि भारत सरकार सामग्री उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म और अन्य अनुप्रयोगों में चाइल्ड पोर्नोग्राफी, रेप और गैंगरेप की तस्वीरों, वीडियो तथा साइट को खत्म करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश तैयार कर सकती है।

•सर्वोच्च न्यायालय ने 24 सितम्बर, 2019 के आदेश में नए नियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया को पूरा करने के संबंध में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को समय-सीमा से अवगत कराने का निर्देश दिया था।

सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फर्जी खबरों के प्रसार पर राज्यसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव लाया गया था और मंत्री महोदय ने 26 जुलाई, 2018 को सदन को अवगत कराया था कि सरकार कानूनी ढांचे को मजबूत करने और कानून के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जवाबदेह बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सुधार के उपाय करने के संबंध में संसद सदस्यों की बार-बार मांग के बाद उन्होंने यह जानकारी दी थी।    

•राज्यसभा की तदर्थ समिति ने सोशल मीडिया पर पोर्नोग्राफी के चिंताजनक मुद्दे और बच्चों तथा समाज पर इसके प्रभाव का अध्ययन करने के बाद 03 फरवरी, 2020 को अपनी रिपोर्ट पेश की और ऐसी सामग्री के मूल निर्माता की पहचान को सक्षम बनाने की सिफारिश की थी।

परामर्श:     

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने मसौदा नियम तैयार किए और 24 दिसम्बर, 2018 को लोगों से सुझाव आमंत्रित किये। एमईआईटीवाई को आम लोगों, सिविल सोसाइटी, उद्योग संघ और संगठनों से 171 सुझाव प्राप्त हुए। इन सुझावों पर 80 जवाबी टिप्पणियां भी प्राप्त हुईं। इन सुझावों/टिप्पणियों का विस्तार से विश्लेषण किया गया तथा एक अंतर-मंत्रालयी बैठक भी आयोजित की गई।  तदनुसार, इन नियमों को अंतिम रूप दिया गया।  

डिजिटल मीडिया आचार संहिता की मुख्य विशेषताएं      | Key Features of Digital Media Code of Conduct

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रबंधित किए जाने वाले सोशल मीडिया से संबंधित दिशा-निर्देश :

•मध्यवर्ती इकाइयों द्वारा पालन की जाने वाली जांच-परख :  नियमों में सुझाई गई जांच-परख का सोशल मीडिया मध्यवर्ती इकाइयों सहित मध्यवर्तियों (बिचौलियों) द्वारा पालन किया जाना चाहिए। अगर मध्यवर्ती इकाइयों द्वारा जांच-परख का पालन नहीं किया जाता है तो सेफ हार्बर का प्रावधान उन पर लागू नहीं होगा।

•शिकायत निवारण तंत्र : उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाने से जुड़े नियमों के तहत सोशल मीडिया मध्यवर्ती इकाइयों सहित मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों से मिली शिकायतों के समाधान के लिए एक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना अनिवार्य कर दिया गया है। मध्यस्थों को ऐसी शिकायतों के निस्तारण के लिए एक शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और इस अधिकारी का नाम व संपर्क विवरण साझा करना होगा। शिकायत अधिकारी को शिकायत पर 24 घंटे के भीतर पावती भेजनी होगी और इसके प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर समाधान करना होगा।

•उपयोगकर्ताओं विशेष रूप से महिला उपयोगकर्ताओं की ऑनलाइन सुरक्षा और गरिमा सुनिश्चित करना :मध्यस्थों को कंटेंट की शिकायत मिलने के 24 घंटों के भीतर इसे हटाना होगा या उस तक पहुंच निष्क्रिय करनी होगी, जो किसी व्यक्ति के निजी क्षेत्रों को उजागर करते हों, किसी व्यक्ति को पूर्ण या आंशिक रूप से निर्वस्त्र या यौन क्रिया में दिखाते हों या बदली गई छवियों सहित छद्मरूप में दिखाए गए हों। ऐसी शिकायत या तो किसी व्यक्ति द्वारा या उनकी तरफ से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई जा सकती है।

सोशल मीडिया मध्यस्थों की दो श्रेणियां : नवाचार को प्रोत्साहन देने और छोटे प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित किए बिना नए सोशल मीडिया मध्यस्थों के विकास को सक्षम बनाने के लिए अनुपालन आवश्यकताओं की अहमियत को देखते हुए, नियमों में सोशल मीडिया मध्यस्थों और प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के बीच अंतर स्पष्ट किया गया है। यह विभेदन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं की संख्या के आधार पर है। सरकार को उपयोगकर्ता आधार की सीमा को अधिसूचित करने का अधिकार मिल गया है, जो सोशल मीडिया मध्यस्थों और प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के बीच अंतर करेगा। नियमों के तहत, प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को कुछ अतिरिक्त जांच-परख का पालन करने की जरूरत होगी।

प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा अतिरिक्त जांच-परख का पालन :

•एक मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति, जो अधिनियम और नियमों क साथ अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होगा। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होना चाहिए।

•कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ 24x7 समन्वयन के लिए एक नोडल संपर्क व्यक्ति की नियुक्ति। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होगा।

•एक रेजीडेंट शिकायत अधिकारी की नियुक्ति, जो शिकायत समाधान तंत्र के अंतर्गत उल्लिखित कामकाज करेगा। ऐसा व्यक्ति भारत का निवासी होगा।

•एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी, जिसमें मिलने वाली शिकायतों और शिकायतों पर की गई कार्रवाई के साथ ही प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा तत्परता से हटाए गए कंटेंट के विवरण का उल्लेख करना होगा।

•प्राथमिक रूप से संदेश के रूप में सेवाएं दे रहे प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को पहली बार सूचना जारी करने वाले की पहचान में सक्षम बनाया जाएगा, जो भारत की सम्प्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों, या सार्वजनिक आदेश से संबंधित अपराध या उक्त से संबंधित या बलात्कार, यौन सामग्री या बाल यौन शोषण सामग्री से संबंधित सामग्री, जिसमें कम से कम पांच साल के कारावास की सजा होती है, से जुड़े अपराधों को बढ़ावा देने वालों पर रोकथाम, पता लगाने, जांच, मुकदमे या सजा के प्रस्ताव के लिए जरूरी है।

•प्रमुख सौशल मीडिया मध्यस्थों को अपनी वेबसाइट या मोबाइल ऐप या दोनों पर भारत में अपना भौतिक संपर्क पता प्रकाशित करना होगा।

•स्वैच्छिक उपयोगकर्ता सत्यापन तंत्र : स्वैच्छिक रूप से अपने खातों का सत्यापन कराने के इच्छुक उपयोगकर्ताओं को अपने खातों के सत्यापन के लिए एक उचित तंत्र उपलब्ध कराया जाएगा और सत्यापन का प्रदर्शन योग्य और दृश्य चिह्न उपलब्ध कराया जाएगा।

•उपयोगकर्ताओं को मिलेगा अपना पक्ष रखने का अवसर : उस स्थिति में, जहां प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों ने अपने हिसाब से किसी जानकारी को हटा दिया है या उस तक पहुंच निष्क्रिय कर दी है तो उस जानकारी को साझा करने वाले को इस संबंध में सूचित किया जाएगा जिसमें इस कार्रवाई का आधार और वजह विस्तार से बताई जाएगी। उपयोगकर्ता को मध्यस्थों द्वारा की गई कार्रवाई का विरोध करने के लिए पर्याप्त और वाजिब अवसर दिया जाना चाहिए।

•गैर कानूनी जानकारी को हटाना : अदालत के आदेश के रूप में या अधिकृत अधिकारी के माध्यम से उपयुक्त सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा अधिसूचित की जा रही वास्तविक जानकारी मिलने पर मध्स्थों द्वारा उसे पोषित या ऐसी कोई जानकारी प्रकाशित नहीं करनी चाहिए जो भारत की सम्प्रभुता और अखंडता, सार्वजनिक आदेश, दूसरे देशों के साथ मित्रवत संबंधों आदि के हित के संबंध में किसी कानून के तहत निषेध हो।

•राजपत्र में इनके प्रकाशन की तारीख के साथ ही ये नियम प्रभावी हो जाएंगे, हालांकि प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए अतिरिक्त जांच-परख के नियम इन नियमों के प्रकाशन के 3 महीनों के बाद प्रभावी होंगे।

डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से संबंधित डिजिटल मीडिया आचार संहिता का पालन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा कराया जाएगा :

डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स दोनों पर प्रकाशित डिजिटल कंटेंट से संबंधित मुद्दों को लेकर व्यापक स्तर पर चिंताएं हैं। सिविल सोसाइटी, फिल्म निर्माता, मुख्यमंत्री सहित राजनेता, व्यापारिक संगठन और संघों सभी ने अपनी-अपनी चिंताएं जाहिर की हैं और एक उपयुक्त संस्थागत तंत्र विकसित करने की जरूरत को रेखांकित किया है। सरकार सिविल सोसाइटी और अभिभावकों की तरफ से कई शिकायतें मिली हैं, साथ ही हस्तक्षेप की मांग की गई हैं। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ऐसे कई मामले आए थे, जिनमें अदालतों ने सरकार से उपयुक्त उपाय करने का भी अनुरोध किया था।

चूंकि मामला डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से संबंधित है, इसलिए सावधानी से फैसला लिया गया कि डिजिटल मीडिया और ओटीटी व इंटरनेट पर आने वाले अन्य रचनात्मक कार्यक्रमों की देखरेख सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा की जाएगी, लेकिन यह समग्र व्यवस्था सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अधीन रहेगी जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करता है।

परामर्श :

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने दिल्ली, मुंबई और चेन्नई में बीते डेढ़ साल परामर्श किया, जहां ओटीटी कंपनियों ने “स्व नियामक तंत्र” विकसित करने का अनुरोध किया। सरकार ने भी सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, ईयू और यूके सहित कई अन्य देशों के मॉडलों का अध्ययन किया और पाया कि इनमें से अधिकांश में या तो डिजिटल कंटेंट के नियमन की संस्थागत व्यवस्था है या वे इसकी स्थापना की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।

ये नियम एक उदार स्व नियामकीय व्यवस्था और एक आचार संहिता व समाचार प्रकाशकों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए तीन स्तरीय समाधान तंत्र स्थापित करते हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 87 के अंतर्गत अधिसूचित ये नियम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को नियमों के भाग-3 को लागू करने के लिए सशक्त बनाते हैं, जिसमें निम्नलिखित सुझाव दिए हैं :

ऑनलाइन समाचारों, ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया के लिए आचार संहिता : यह संहिता ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, ऑनलाइन समाचार और डिजिटल मीडिया इकाइयों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश सुझाती है।

•कंटेंट का स्व वर्गीकरण : ओटीटी प्लेटफॉर्म्स, जिन्हें नियमों में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट के प्रकाशक कहा गया है, को पांच उम्र आधारित श्रेणियों- यू (यूनिवर्सल), यू/ए 7+, यू/ए 13+, यू/ए 16+, और ए (वयस्क) के आधार पर कंटेंट का खुद ही वर्गीकरण करना होगा। प्लेटफॉर्म्स को यू/ए 13+ या उससे ऊंची श्रेणी के रूप में वर्गीकृत कंटेंट के लिए अभिभावक लॉक लागू करने की जरूरत होगी और “ए” के रूप में वर्गीकृत कंटेंट के लिए एक विश्वसनीय उम्र सत्यापन तंत्र विकसित करना होगा। ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट के प्रकाशक को हर कंटेंट या कार्यक्रम के साथ कंटेंट विवरणक में प्रमुखता से वर्गीकरण रेटिंग का उल्लेख करते हुए उपयोगकर्ता को कंटेंट की प्रकृति बतानी होगी और हर कार्यक्रम की शुरुआत में दर्शक विवरणक (यदि लागू हो) पर परामर्श देकर कार्यक्रम देखने से पहले सोच समझकर फैसला लेने में सक्षम बनाना होगा।

डिजिटल मीडिया पर समाचार के प्रशासकों को भारतीय प्रेस परिषद के पत्रकारिता आचरण के मानदंड और केबल टेलीविजन नेटवर्क विनियमन अधिनियम के तहत कार्यक्रम संहिता पर नजर रखनी होगी, जिससे ऑफलाइन (प्रिंट, टीवी) और डिजिटल मीडिया को एक समान वातावरण उपलब्ध कराया जा सके।

•नियमों के तहत स्व-विनियमन विभिन्न स्तरों के साथ एक तीन स्तरीय शिकायत समाधान तंत्र स्थापित किया गया है।

स्तर-I : प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन;

स्तर-II : प्रकाशकों की स्व-विनियमित संस्थाओं का स्व-विनियमन;

स्तर-III : निगरानी तंत्र।

प्रकाशकों द्वारा स्व-विनियमन  : प्रकाशक को भारत में एक शिकायत समाधान अधिकारी नियुक्त करना होगा, जो खुद को मिली शिकायतों के समाधान के लिए जवाबदेह होगा। अधिकारी खुद को मिली हर शिकायत पर 15 दिन के भीतर फैसला लेगा।

स्व-विनियमित संस्था : प्रकाशकों की एक या ज्यादा स्व-विनियामकीय संस्थाएं हो सकती हैं। ऐसी संस्था की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या एक स्वतंत्र प्रतिष्ठित व्यक्ति करेगा और इसमें छह से ज्यादा सदस्य हों। इस संस्था को सूचना और प्रसारण मंत्रालय में पंजीकरण कराना होगा। यह संस्था प्रकाशक द्वारा आचार संहिता के पालन की देख-रेख करेगी और उन शिकायतों का समाधान करेगी, जिनका प्रकाशक द्वारा 15 दिन के भीतर समाधान नहीं किया गया है।

निगरानी तंत्र : सूचना और प्रसारण मंत्रालय एक निरीक्षण तंत्र विकसित करेगा। यह आचार संहिताओं सहित स्व-विनियमित संस्थाओं के लिए एक चार्टर का प्रकाशन करेगा। यह शिकायतों की सुनवाई के लिए एक अंतर विभागीय समिति का गठन करेगा।

Subscribe