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Gujarat's development model is more dangerous than corona virus!
वाराणसी : बहुजन और अल्पसंख्यक समुदाय के अधिवक्ताओं (Bahujan and minority community advocates) ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों में कोलेजियम के माध्यम से की जाने वाली नियुक्तियों की आलोचना (Criticism of appointments made through Collegium in Supreme Court and High Courts) करते हुए मांग की है कि प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से जजों की नियुक्ति की जाए, जिससे न्यायिक सेवाओं के शीर्ष पदों पर ब्राह्मणों का वर्चस्व खत्म हो।
शनिवार को यहाँ पहाड़िया स्थित जानकी वाटिका में "संविधान और संवैधानिक संस्थाओं पर हमला और हमारी भूमिका" (Attack on constitution and constitutional institutions and our role) विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विश्राम यादव ने कहा कि 1920 में प्रिवी काउंसिल ने अपने निर्णय में कहा था कि न्यायिक चरित्र नहीं होता है, जबकि आज की तारीख में देश के कुल 35 ब्राह्मण परिवारों का हाई कोर्टों व सुप्रीम कोर्ट पर कब्जा है।
उन्होंने कहा कि इस वजह से देश में न्याय की जगह निर्णय हो रहे हैं।
एडवोकेट तनवीर अहमद सिद्दीकी ने आरक्षण को बेअसर किए जाने की शासक वर्गों की साजिश का पर्दाफाश करते हुए बहुजन समाज को एकजुट हो जाने के लिए कहा।
उन्होंने सवर्ण आरक्षण की मुखालिफत करते हुए कहा कि आरक्षण का उद्देश्य गरीबी दूर करना नहीं अपितु सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए समाज को मुख्यधारा में लाना है।
The creamy layer is a conspiracy to deprive the backward of jobs
सेल टैक्स के एडवोकेट कमलेश यादव ने कहा कि क्रीमी लेयर पिछड़ों को नौकरी से वंचित करने का षडयंत्र है, जो पिछड़े आरक्षण के लाभ से अपना प्रतिनिधित्व पा सकते हैं, उन्हें साजिश के तहत क्रीमी लेयर के नाम पर नौकरी से बाहर कर दिया जा रहा है। पिछड़े वर्ग का जो व्यक्ति भुखमरी के कगार पर है, उसे आरक्षण का झुनझुना पकड़ाया गया है।
एडवोकेट रामरेणु चंदन ने कहा कि वर्तमान समय में न्यायालय सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में कहा कि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार चाहे सर्वोच्च अंक हासिल कर ले वह आरक्षित वर्ग में ही चयनित किया जाएगा। इससे न्यायालय ने देश की 85 प्रतिशत आबादी के लिए 49.5 प्रतिशत व 15 प्रतिशत आबादी के लिए 50.5 प्रतिशत के आरक्षण का प्रावधान कर दिया, जो कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है।
एडवोकेट सुरेंद्र चरण ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की प्रोन्नति के मामले में याचिका पर निर्णय देते हुए कहा कि आरक्षण सरकार की मर्जी है, यह कहकर सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण को गरीबी उन्मूलन प्रोग्राम बना दिया।
चंदौली बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट एमपी सिंह ने कहा कि सवर्ण आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। क्योंकि जाति के आधार पर भेदभाव करने वाले लोग गरीबी के आधार पर आरक्षण ले रहे हैं जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
बनारस बार एसोसिएशन के अध्यक्ष मोहन सिंह यादव ने कहा कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी देश के भूमिहीनों, वंचितों व बहुजनों को मतदाता व नागरिकता के अधिकार से वंचित कर उन्हें आरक्षण, नौकरी व अधिकारों से वंचित कर दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश है।
उन्होंने कहा कि पहली अप्रैल से शुरू हो रहे एनपीआर के काम का हम विरोध करते हैं और हम सरकार के इस घटिया व नापाक कृत्य का पुरजोर विरोध करेंगे, कोई सूचना नहीं देंगे और अधिवक्ताओं के नेतृत्वल में बनारस ही नहीं पूरे देश में तब तक लड़ेगे जब तक सरकार संविधान-विरोधी इस कानून को वापस नहीं ले लेती।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अनूप श्रमिक ने कहा कि सामाजिक आंदोलन की पक्षधर ताकतों को सीएए, एनपीआर और एनआरसी और आरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर आम जनता के बीच जाना चाहिए और हम लोगों को सरकार के साथ विपक्ष को भी जिम्मेदार मानते हुए उसकी आलोचना कर उसके खिलाफ आंदोलन से उसे जवाबदेह व जिम्मेदार बनाना होगा।
एडवोकेट गुरिंदर सिंह ने कहा कि जातिगत जनगणना न कराना पिछड़ी जाति के लोगों को आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व न देने की साजिश है। सरकार पिछड़ों की जनगणना हिंदू के नाम पर करवाती है। जब हक व अधिकार देना होता है तो शूद्र व पिछड़ा बनाती है, यह दोहरा मानदंड संविधान के अनुच्छेद 341-42 के खिलाफ है।
संगोष्ठी के मुख्य अतिथि प्रो. चौथीराम यादव ने कहा कि हमें न्यायालयों में गीता व रामायण की जगह संविधान की कसम खाकर अदालती प्रक्रिया शुरू करवानी होगी।
उन्होंने कहा कि जातिवाद व गुजरात का विकास मॉडल कोरोना वॉयरस से भी ज्यादा खतरनाक है। जब तक हम काल्पनिक व मनुवादी ग्रंथों से ऊपर उठकर संविधान बचाओ-देश बचाओ का नारा नहीं देंगे, तब तक मानसिक रूप से गुलाम बने रहेंगे।
जौनपुर से आईं सामाजिक कार्यकर्ता पूनम मौर्या ने कहा कि हम मंचों पर भेदभाव के खिलाफ बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन अपने घरों में महिलाओं के साथ खुद भेदभाव-गैरबराबरी व शोषण को अंजाम देते हैं। हम दूसरों से समानता और बराबरी तो चाहते हैं पर खुद भेदभाव को त्यागने के लिए तैयार नहीं हैं।
कार्यक्रम के संयोजक और आयोजक एडवोकेट प्रेम प्रकाश ने कहा कि आप योग्य हैं इसका अर्थ यह हुआ कि आपको अवसर मिला है, बिना अवसर के योग्यता कैसी? अगड़ी जातियों के लोगों ने शुरू से ही तमाम संसाधनों पर कब्जा जमाया हुआ है। स्रोत-संसाधन के नहीं होने पर अकादमिक योग्यताओं का विकास भला कैसे हो सकता है। जहाँ तक कर्म से अर्जित ज्ञान का प्रश्न है, सदियों से इस देश के मूल निवासी व बहुजन मेहनतकश वर्ग का काम करते रहे हैं व अपनी विद्वता से भारत को सोने की चिड़िया बनाया। सिर्फ पोथियाँ लिखना ही सृजन नहीं, अच्छी कुर्सी-मेज बनाना, करीने से बाल काटना, हँसिया-हथौड़ा बनाना भी सृजन है। हमारे अपने देश में ज्ञान और व्यवहार नदी के दो किनारे रहे हैं, जो कर्मरत थे उनके पास सैद्धांतिक ज्ञान पाने का अवसर नहीं था और जिनके पास अवसर था वे कर्म से विरत थे।
आरबीएस के रामलगन सिंह यादव ने कहा कि बहुजन समाज के लोग खुद दूसरी जातियों को नीच मानकर भेदभाव करते हैं, जब तक पूरा बहुजन समाज अपने को शूद्र मानकर एक नहीं होगा, तब तक बहुजनों को उनकी आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व नहीं मिलेगा और उनका शोषण होता रहेगा।
इस मौके पर एडवोकेट वकार अहमद सिद्दीकी, आरसी पटेल, विवेक शर्मा, प्रो. अमरनाथ पासवान, प्रो. आरआर इंडियन, रामराज अशोक, रामदुलार, राजेश कुमार गुप्ता, राजेश यादव, सीता, ब्लॉक प्रमुख लाल प्रताप यादव, प्रेम नारायण शर्मा, अरुण कुमार प्रेमी, बच्चाराम शास्त्री, किशन यादव, हरिशंकर, मुसाफिर प्रसाद, नीरज पहलवान, धर्मराज पटेल, डॉ. ज्ञानदास अंबेडकर, आरबी मौर्या, अजय यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी में एडवोकेट कन्हैया लाल पटेल, डॉ. शिवपूजन यादव, डॉ. पीयूष दत्त सिंह, सुरेंद्र कुमार, इश्तियाक अहमद, सिद्धांत मौर्या, नूर हूदा अंसारी, राजनाथ, रमेंद्र यादव, कृष्ण यादव ने मुख्य रूप से शिरकत की।