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Guru Nanak Jayanti 2020 Date: Guru Nanak Gurpurab (गुरु नानक गुरपुरब) | गुरु नानक जयंती कब है
551वीं गुरु नानक जयंती (30 नवम्बर) पर विशेष
नानक देव की प्रमुख शिक्षाएं
भैरो महला - 5
जगन होम पुन तप पूजा देहि सुखी नित दुख सहे
राम नाम बिन मुकत न पावै मुक्त नाम गुरुमुख लहे
नाम बिना विरथे जग जनमा
बिख खावै बिख बोली बोले, बिन नावै निहफल मर भ्रमना (रहाओ)
गुरुवाणी की इन पंक्तियों द्वारा पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी मानव मन को समझाईश देते हुए फरमा रहे हैं कि इस संसार में सबसे उत्तम वस्तु प्रभु परमात्मा का नाम ही है। जिस जीव पर प्रभु परमात्मा की विशेष कृपा हो जाती है वही प्रभु परमात्मा की सिमरन बंदगी में जुड़कर अपना मानवदेही पाकर इस धरा पर आना सार्थक कर लेता है। अधिकांश प्राणी सांसारिक मोह माया सांसारिक विषय विकारों में फंसकर अपना हीरे जैसा मानव जीवन कौड़ियों के भाव गंवा रहे हैं। याद रहे बिना प्रभु सिमरन के हमारा छुटकारा होने वाला नहीं है -
कहो नानक ऐह तत विचारा, बिन हरि भजन नहीं छुटकारा।
पर हर अधिकांश इंसान सांसारिक भ्रम जाल में उलझकर उस बात को भूल बैठा है और इसी कारण दुख ही दुख पा रहा है-
नानक दुखिया सब संसार सो सुखिया जिस नाम आधार।
संसार में कुछ इंसान ऐसे भी हैं जो प्रभु नाम सिमरन में रमे रहते हैं। इसी कारण उन्हें हर वक्त सुख ही सुख प्राप्त करते हैं। इंसान सुख प्राप्त करने हेतु तरह-तरह के प्रपंच करते रहते हैं (Humans keep doing different kinds of pleasures to get happiness.)। कोई पूजा पाठ करता रहता है, कोई हवन वगैरह में मन रमाता है पर फिर भी उसे सुख प्राप्त हो नहीं पाता।
Guruvani explains to us that rituals are not going to get God
गुरुवाणी द्वारा हमें समझाया गया है कि इन सब के कर्मकांडों से प्रभु परमात्मा की प्राप्ति होने वाली नहीं है। हम दिखावे के लिए भजन पूजन भी करते रहते हैं पर मन में हर वक्त यही लगन लगी रहती है कि कहां से और कैसे धन की प्राप्ति हो। इसके लिए वह झूठ प्रपंच का भी सहारा लेते रहते हैं। इस प्रकार से येन केन प्रकोरण धन संचय करते रहता है और अपने परिवार पर खर्च करता है। ऐशोआराम के साधन एकत्र करता रहता है।
बहु प्रपंच कर पर धन लिआवै, सुतदारा पर आन लुटावै।
मन मेरे भूलेकपट न कीजै, अंत निबेरा तेरे जी पै लीजै।
इस तरह वह जो भी छल प्रपंच कर माया इकट्ठी कर रहा है उसके साथ जाने वाली नहीं है। साथ में जाएगा सिर्फ वही जो उसने प्रभु नाम सिमरन भक्ति कर साचा धन इकट्ठा किया होगा। उस वक्त इस सब का हिसाब धर्मराज की कचहरी में होगा। रिश्ते नाते कोई साथ नहीं देगा।
साथ न चालै बिन भजन, विखिआ सगली छारि।
हरि-हरि नाम कमावना, नानक ऐहो धन सारि।।
अगर मानव जीवन पाकर भी प्रभु सिमरन बंदगी में मन नहीं रमाया तो फिर उसका मानव जीवन पाकर संसार में आना ही व्यर्थ है। गुरुदेव तो यहां तक गुरुवाणी द्वारा समझा रहे हैं कि ऐसी मां को बांझ ही रह जाना चाहिये जिसकी औलाद प्रभु नाम सिमरन में मन नहीं लगाती।
जिन हरि हिरदे नाम न बसिओ तिन मात कीजै हरि बांझ।
तिन सुंजी देह फिरे बिन नावै, उह खप-खप मुऐ करोझा।।
इसीलिए हर इंसान को चाहिये कि वह इस संसार में आकर प्रभु नाम सिमरन में मन रमाए और प्रभु परमात्मा की प्राप्ति कर ले।
इंसान मौन रहकर तपस्या करके वन कंदराओं में बैठकर घास-फूस ओढ़कर प्रभु की प्राप्ति करना चाहता है। कुछ लोग सिर मुड़ा कर मौन रहकर प्रभु प्राप्ति करना चाहते हैं पर मन उनका सांसारिक मोह में ही गलतान रहता है। तब उसे प्रभु प्राप्ति कहां होने वाली है। गुरुदेव फरमाते हैं कि हाथ पांव से कार विहार भी करना है। अपने और अपने परिवार के उदर पोषण हेतु करे पर मन निरंकार से जुड़ा रहना चाहिए-
नामा कहे तिलोचना मुख ते नाम संभाल।
हाथ पांव से काम सब चित निरंजन नालि।।
अगर पानी में खड़े रहकर प्रभु मिल जाते तो फिर सब से पहले मेंढक, मछलियों या और भी जलचर प्राणियों को मिल जाते पर ऐसा नहीं है। अतएव हर इंसान को चाहिये कि वह प्रभु सिमरन में मन रमाकर प्रभु परमात्मा की प्राप्ति कर ले तभी उसका मानव जीवन पाकर धरा पर आना सार्थक समझा जाएगा। तभी उसे प्रभु दरबार में स्थान प्राप्त हो पाएगा।
इंदर सिंह आहुजा
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)
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