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एक बार भी सपा जनता के सवालों पर सड़क पर नहीं उतरी
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए लगभग नौ महीने बीत चुके हैं, लेकिन इस पूरे समय में समाजवादी पार्टी ने आम जनता के सवालों पर अब तक एक बार भी ढंग से सड़क पर उतर कर सत्ता को विपक्ष के बतौर अपनी उपस्थिति का एहसास नहीं करवाया है.
फिर ट्विटर पर उतरी सपा
इस पूरे दौर में यह देखा गया कि समाजवादी पार्टी विभिन्न सवालों पर खुद को केवल ट्वीट करने तक ही सीमित कर ले रही है. इससे ऊपर जनता के सवालों को लेकर भयानक चुप्पी है.
क्या इस चुप्पी की वजह विधानसभा चुनाव में हार से उपजी निराशा है या इसके पीछे सत्ता का कोई दबाव है? या फिर सपा सुप्रीमो की सत्ता के साथ कोई 'डील' काम कर रही है?
सपा की योगी सरकार से 'डील' पर क्या उठ रहे हैं सवाल?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि रामपुर सीट पर उप चुनाव में सत्ता ने जिस तरह से एक पक्षीय तरीके से निरंकुशता दिखाई उसे भी समाजवादी पार्टी ने सड़क पर आम जनता के बीच कोई मुद्दा नहीं बनाया.
क्या समाजवादी पार्टी के लिए रामपुर विधानसभा उपचुनाव महत्वपूर्ण नहीं थे या फिर यह सब अखिलेश यादव का योगी से किसी 'डील' के तहत हुआ?
यही नहीं, समाजवादी पार्टी को जो वोट विधानसभा चुनाव में मिले हैं वह बरकरार रहे इसके लिए भी पार्टी की तरफ से कोई स्पष्ट दिखने वाली मेहनत नहीं की जा रही है. ऐसा कहीं लगता ही नहीं है कि समाजवादी पार्टी लोकतंत्र में एक रचनात्मक विपक्ष, जो जनता की आवाज बनता है, की भूमिका में आने के लिए बिल्कुल भी इच्छुक है. आखिर इस चुप्पी का क्या मतलब है?
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यह बात बहुत साफ है कि भाजपा जिस आक्रामकता के साथ अपने एजेंडे पर काम कर रही है उसके खिलाफ बोलने या उसे रोकने की कूवत केवल उसी दल या नेता में हो सकती है जिसका अतीत एकदम साफ सुथरा हो, उस पर किसी घपले घोटाले का कोई आरोप नहीं हो. और कम से कम उसकी लोकतंत्र और 'आइडिया ऑफ इंडिया' की बुनियादी लाइन पर समझ एकदम स्पष्ट हो.
सपा का बुनियादी संकट क्या है?
दुर्भाग्य की बात है कि समाजवादी पार्टी के पास इन सब में से कुछ भी नहीं है. सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर सिर्फ और सिर्फ अस्मिताओं को मजबूत करना, जातिगत सांप्रदायिकता को धार देना और जातिगत अस्मिता के सहारे सत्ता की मलाई खाने से ज्यादा समाजवादी पार्टी के पास राजनीतिक स्तर पर कोई समझ नहीं है. अब यह सब भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति में समाहित हो चुका है इसलिए सपा के पास राजनीति करने का कोई 'एजेंडा' ही नहीं रह गया है. यह सपा का बुनियादी संकट बनता जा रहा है.
यही नहीं, योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा जिस तरह से गोमती रिवर फ्रंट की फाइलों को खोल दिया गया है उसे लेकर समूची सपा में एक डर घुस गया है. अखिलेश यादव खुद फाइल खुलने पर अपनी निराशा जाहिर कर चुके हैं. इस तरह से समूची सपा पर योगी सरकार का खौफ देखा जा सकता है.
फिलहाल इस खौफ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है.
हालांकि मुझे संदेह है कि समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से भाजपा को यूपी में स्थापित करने में मदद की है उसका एहसान नकार कर योगी आदित्यनाथ अखिलेश यादव पर कोई कार्यवाही करेंगे. वह पूरी सपा को ऐसे ही डरा कर रखेंगे और यह सब एक 'डील' के तहत होगा.
और इस तरह इस डील में नुकसान आम जनता का होगा. उसकी आवाज नहीं सुनी जाएगी. अखिलेश यादव को विपक्ष में बैठने जो जनादेश मिला है वह उसे निभाने में पूरी तरह से असमर्थ साबित हो चुके हैं.
लेकिन, यह डील सपा को भी 2024 में निपटा देगी. आखिर उत्तर प्रदेश की जनता ने अखिलेश यादव को याद रखने का ठेका थोड़े ले रखा है.
हरे राम मिश्र
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.
Has SP confirmed any 'deal' with the Yogi government?