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क्या संघ का हृदय-परिवर्तन हो गया है ? यदि संघ को सचमुच सुमति आ जाये तो इससे भारत का भला होगा।

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hastakshep
27 Apr 2020
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तबलीगी ज़मात की हरकत : मोहन भागवत संकट के संकट स्वयंसेवकों को घृणा का वायरस न फैलाने का आदेश दें

Has the Sangh changed its heart? If the Sangh really gets consent then it will benefit India.

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संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS chief Mohan Bhagwat) ने कहा है कि ‘130 करोड़ लोग भारत माता की संतान हैं' तो इसका क्या मतलब हुआ? क्या संघ ने अपना 96 साल पुराना मुस्लिम विरोधी रवैया छोड़ने का फैसला कर लिया है?

अचानक सभी देशवासियों को एक माता की संतान बताना कहीं यह संघ-परिवार की मुस्लिम विरोधी गतिविधियों के विरुद्ध खाड़ी देशों से आई कठोर प्रतिक्रियाओं के कारण ओढ़ी हुई मौकापरस्त साधुता तो नहीं है?   

कल अक्षय तृतीया के अवसर पर संघ के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को नागपुर से ऑनलाइन संबोधित करते हुए उनके इस संबोधन में अन्य विषय तो संघ तथा उसकी संरक्षित-समर्थित सरकार द्वारा बनाये जा रहे ‘न्यू इंडिया’ से जुड़े रहे लेकिन कथित ‘सेलेक्टिव सेकुलरिज्म’ खेमे से दो-दो हाथ करने के लिए जो दशकों से बड़े परिश्रमपूर्वक एक पूरी स्वम्भू राष्ट्रवादी गाली ब्रिगेड तैयार की गई है और जो सम्पूर्ण हिंदू समाज की ठेकेदार बनकर इसकी वैदिक युग से स्थापित पारंपरिक पहचान को बदलने पर ही आमादा है, उसके लिए क्या इसके मायने अब मुसलमानों से बीती ताहि बिसार दे कहते हुए गले मिलना है?

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अभी चार माह पहले 26 दिसंबर, 2019 को हैदराबाद में तेलंगाना के संघी स्वयंसेवकों के त्रि-दिवसीय ‘विजय संकल्प शिविर' के तहत एक जनसभा में उन्होंने कहा था कि भारत में रहने वाले सब ‘हिंदू’ हैं।

उनके इस जुमले को भला अन्य मतावलंबी कैसे स्वीकार कर सकते हैं। जबकि भारत विभिन्न धार्मिक विश्वासों, संस्कृतियों और जातियों की विविधता वाला देश है।

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क्या मोहन भागवत की समझ में यह आ गया है कि भारत की वैविध्यपूर्ण सामाजिक-धार्मिक संरचना को परे रखकर कोई नया विचार थोपना उचित नहीं है?

मोहन भागवत ने कुछेक अप्रिय घटनाओं के आधार पर एक पूरे समूह को ही कटघरे में खड़ा नहीं करने की नसीहत दी है। हालांकि उन्होंने किसी समुदाय का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा मुसलमानों की तरफ था। जिनके विरुद्ध पिछले 6 सालों में सुनियोजित तरीके से जमकर घृणा पैदा की गई। हालांकि इसके लिए मुस्लिम समाज के कुछ लोगों की हरकतें भी एक हद तक जिम्मेदार रही हैं। इसके बावजूद पूरी मुस्लिम कौम को गलत तो नहीं कहा जा सकता लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि हर छोटी-बड़ी बात पर हिंदू तुष्टिकरण के लिए मुस्लिमों को कठघरे में खड़ा करना वर्तमान सत्ताधारियों का मुख्य एजेंडा रहा है।

यह महज एक संयोग नहीं है कि संघ प्रमुख ने पहली बार 130 करोड़ लोगों को भारत माता की संतान कहा है।

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यहां स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि जब संघ की पाठशाला से निकला सत्ता का एक जिम्मेदार व्यक्ति ‘कपड़ों’ के आधार लोगों की पहचान बताने लगे तो फिर शंका होती है।

लब्बो-लुआब यह कि वर्तमान कोरोना संकट के दौर में सत्ताधारियों द्वारा निजामुद्दीन के तबलीगी समाज तथा अन्य मुसलमानों के खिलाफ किये जा रहे विषवमन, उनकी व्यवसायिक गतिविधियों के बहिष्कार तथा खाड़ी देशों की महिलाओ को लेकर बंगलुरु से भांजपा सांसद तेजस्वी सूर्या के एक पुराने ट्वीट की अभद्र भाषा के विरोध में संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, सऊदी अरब तथा अन्य मुस्लिम देशों से आई तीखी प्रतिक्रिया ही संघ प्रमुख की भाषा में इस बदलाव का कारण हो सकता है। और, शायद इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी कोरोना को धर्म, जाति न देखकर सबको चपेट में लेने वाला संकट कहने को विवश किया हो।

कारण जो भी रहा, यदि संघ को सचमुच सुमति आ जाये तो इससे भारत का भला होगा।

श्यामसिंह रावत

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