अंग्रेजी से नफरत मूर्खता है
हर वर्ष 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ भी हर वर्ष इसी दिन हिंदी दिवस मनाता हैI
जब मैं इलाहाबाद उच्च् न्यायालय का न्यायाधीश था तब मेरे पास अधिवक्ता संघ के सदस्य आते थे और अनुगह करते थे कि मैं भी इस आयोजन में भाग लूँI मैं उनसे कहता था कि मुझे क्षमा करें क्योंकि यदि मैं आऊंगा तो अपने मन की बात कहूंगा और इससे संभवतः विवाद हो जाएI मगर वह अधिवक्तागण बहुत आग्रह करते थे कि मैं आयोजन में शिरकत ज़रूर करूँ, इसलिए मुझे उनकी बात माननी पड़ती थीI
जब मैं कार्यक्रम में पहुँचता था तब तक अधिवक्ताओं की भीड़ जमा होती और बड़े गरमागरम और उग्र भाषण हो रहे होतेI कोई कहता अंग्रेजी हटाओ, कोई कहता अंग्रेजी दासी है, आदि।
जब मेरा नंबर आया तो मैंने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपका लड़का हल चलाये तो अवश्य उसको अंग्रेजी न पढ़ाएंI मगर यदि आप चाहते हैं कि उसका भविष्य उज्जवल हो, और वह अभियंता, डॉक्टर, वैज्ञानिक आदि बने तो अंग्रेजी ज़रूर पढ़ाएं। किसी भी मेडिकल कॉलेज या इंजीनियरिंग कॉलेज जाइये तो आपकों पता चलेगा कि वहाँ जितनी किताबें हैं वह सब अंग्रेजी में हैं। किसी वकील के दफ्तर जाइये तो वहाँ सब क़ानून की किताबें अंग्रेजी में होंगी। विज्ञानं, गणित, इतिहास, चिकित्सा, भूगोल, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, आदि पर ९५% किताबें अंग्रेजी में हैं। तो फिर बग़ैर अंग्रेजी जाने कैसे आपका लड़का जीवन में सफल हो पायेगा ? देश की तरक़्क़ी के लिए अंग्रेजी हटाने के बजाये हमें उसे और फैलाना है। हिंदी मेरी भी मातृ भाषा है मगर इसका यह मतलब नहीं कि मैं बेवक़ूफ़ों जैसे आचरण करूँ। हमें भावुक नहीं तर्कयुक्त और समझदार होना चाहिए।
जब मैं यह बातें कहता था, तो शुरू में हंगामा खड़ा हो जाता थाI हिंदी के कट्टर समर्थक खूब हूँ हल्ला और हुल्लड़ मचाते थेI मगर कार्यक्रम के समाप्त होते-होते कई लोगों को महसूस होता था कि मेरी बात में वज़न है, और वह मेरे पास आकर मुझे कहते थे कि काटजू साहेब आप की बात सही हैI
जस्टिस मार्कंडेय काटजू
लेखक प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन और सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं।
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