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Have sensitivities and legal conscience now died in India?
क्यों सरकार ने 30 फीसदी दिहाड़ी मजदूर कोरोना पॉजिटिव (30 percent daily wage laborers Corona positive) बताया है !
क्या भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश में अब संवेदनाएं और कानूनी विवेकशीलता की मृत्यु हो चुकी है ?
भारत एक कृषि प्रधान देश व सामाजिक कबीलाई गणराज्य है। हम पर किसी विचारधारा, परंपरा, मान्यता या अपनी बात को दूसरों पर जबरन थोपना या इनके समर्थन में कुतर्क करना अतिवाद है। प्राय: ये अतिवादी लोग खुद को ऊंचाई पर रखते हुए अपनी विचारधारा से अलग लोगों की आलोचना तो करते ही हैं, उनको कोसते हैं, हर घटना के लिए उन्हें ही दोष देते ही हैं।
इसी का जीवंत उदाहरण सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पेश किया है, जिसमें आधारहीन तत्थों से शहर छोड़ कर गांव जा रहे 30 फीसदी मजदूरों को कोरोना पॉजिटिव बताया है! इसमें कहाँ तक सच्चाई है ? सरकार जनता को बताए कि उनके इतनी बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूरों में कोरोना पोसिटिव का आधार क्या है ? जबकि वो कभी देश से बाहर नहीं गए और जबकि सरकार के मुताबिक 31 जनवरी 2020 से 25 मार्च 2020 तक विदेशों से करीब 2.5 लाख लोगों ने भारत में आगमन किया था, क्या उनमें से कोई भी कोरोना पॉजिटिव नहीं मिला? जबकि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी का स्रोत तो विदेश से ही है ना कि देश से।
क्या सरकार 2.5 लाख अमीरों को बचाने के चक्कर में सवा करोड़ लोगों को देश में एक शहर से दूसरे शहर में विस्थापित हुए दिहाड़ी मजदूरों के साथ अनजाने में सही, उनके सामाजिक बहिष्कार करने का प्रोहत्साहन कर गई है ?
अपने गाँव की ओर विस्थापन कर रहे दिहाड़ी मजदूरों को रास्ते में सुविधा मुहैया कराने के लिए दाखिल की गयी याचिका पर जब सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने भारत के मुख्य न्यायमूर्ति को मजदूरों को पैसे देने का सुझाव रखा तो ... मुख्य न्यायमूर्ति श्री बोबड़े साहब जी ने कहा कि जब सरकारें मज़दूरों और गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया करवा रही हैं, तो उन्हें नगद पैसा देने की क्या जरूरत है।
माननीय न्यायमूर्ति जी मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप सभी न्यायाधीशों का वेतन तत्काल प्रभाव से रोक दें और उन्हें केवल दो वक़्त भोजन उपलब्ध करवाया जाए। शायद ऐसा करने से विद्वान् न्यायमूर्ति महोदय को समझ आये।
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फिर गरीब दैनिक श्रम मजदूरों को कोरोना वैश्विक महामारी का साधक बनाने का मकसद समझ नहीं आया। कहीं सरकार विदेश से आये जाहिलों को बचाकर सारा का सारा ठीकरा इन मजदूरी करने वालों पर तो नहीं फोड़ रही है?
ऐसे लोग दूसरों का दोषारोपण करते हैं, उन्हें अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और आप कभी उनपर या उनके समर्थकों को ऊंगली से छूभर दीजिए, वे तुरंत बिफर पड़ेंगे। इससे वे अपनी वास्तविकता का पता दे देंगे कि वे कैसे हैं ? उनकी विचारधारा कैसी है ?
सभी अपने भीतर में देखें तो दिख जाएगा कि हम स्वयं ही कहीं न कहीं किसी रूप में भयंकर अतिवाद से ग्रस्त हैं। ऐसे विरले लोग हैं जो साध्य के लिए साधन की शुद्धता को मानते हों। क्या हम-आप मौका मिलने पर गलत का साथ नहीं देते? शायद ही कोई होगा जिसने अपने के नाम पर जानबूझकर मक्खी न निगल ली हो। गलत पर आंखें न फेर ली हों, मौन नहीं धारण न कर लिया हो।
अब तो हद ही होती जा रही है असंवेदनशीलता की ! देश के सर्वोच्च न्यायालय से ऐसी उम्मीद कदापि नहीं की जा सकती थी लेकिन पिछले दो साल से गरीबों और मजदूरों के लिए सामाजिक न्याय की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है...
अमित सिंह शिवभक्त नंदी