शबनमीं क़तरों से सजी अल सुबह
रात की चादर उतार कर ,
जब क्षितिज पर
अलसायें क़दमों से बढ़ती हैं ,
उन्हीं रास्तों पर पड़े इक तारे पर
पाँव रख चाँद

फ़लक से उतर कर
सुबह को चूम लेता है,
नूर से दमकती शफ़क़ तब
बोलती कुछ नहीं ,
चिड़ियों की चहचहाटों में
सिंदूर की डिबिया वाले हाथ को
चुप से पसार देती है ,
और फिर भर – भर कर चुटकियों में
सजाये जाते हैं यह रूप के लम्हे ,
सुबह के इस मौन इश्क़ को पढ़ा है तुमने ?
डॉ. कविता अरोरा