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Havoc of corona is the result of the surrender of the mechanisms made for the protection of democracy in front of the Modi government.
आज की तारीख में कोरोना वायरस के चलते देश में जो हाहाकार मचा हुआ है। ऐसे में अपना बचाव करते हुए इस पर मंथन की जरूरत है कि आखिरकार देश में इतने भयावह हालात क्यों हो गये ? क्यों देश में ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी की वजह से लोगों की मौत हो रही है ? क्यों अस्पतालों में बेडों की कमी पड़ गई है ? क्यों मरीजों को दर-दर की भटकना पड़ रहा है ? क्यों आदमी अपने ही सामने अपने परिजनों को मरते देख रहा है।
समय तो नहीं है पर जरूरी है कि किसी सरकार का लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए बना गये तंत्रों पर अंकुश कितना भयावह होता है। किसी सरकार की अंधभक्ति कितनी घातक हो सकती है ? किसी सरकार की भक्ति को देशभक्ति से जोड़ लिया जाए। जमीनी मुद्दों को दरकिनार कर भावनात्मकों को तरजीह दी जाने लगे, वह बेइंतहा तक।
आज लोग वेंटिलेटर, आक्सीजन सिलेंडर, बेड, अस्पतालों, डाक्टरों, अस्पतालों में व्याप्त भ्रष्टाचार, राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता का रोना रो रहे हैं पर क्या किसी ने देश में इन सुविधाओं के पक्ष में आवाज उठाई। लोग हिन्दू-मुस्लिम, ऊंच-नीच, मंदिर-मस्जिद, पाकिस्तान, चीन, भाजपा, कांग्रेस से बाहर निकल ही नहीं पाये।
देश में राम मंदिर निर्माण का फैसला आ गया, धारा 370 हट गई तो लोगों को ऐसा लगने लगा कि अब देश में किसी काम की जरूरत ही नहीं रही।
ऐसा नहीं है कि गत साल कोरोना ने कम कहर बरपाया हो पर लोग सब भूल गए। प्रधानमंत्री ने ताली और थाली बजवाई लोगों ने बजा दी। पिछले साल तो तब्लीगी जमात ने कोरोना फैला दिया था। वह बात दूसरी है कि मोदी सरकार तब्लीगी जमात भारत के मुखिया का कुछ नहीं बिगाड़ पाई। इस बार जनता की लापरवाही ने कोरोना फैला दिया।
लोग कोरोना संक्रमण से मरते रहे और प्रधानमंत्री और गृह मंत्री प. बंगाल में चुनावी प्रचार करते रहे। लाखों लोगों की जिंदगी से खेलते रहे। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के कृत्य की आलोचना करने के बजाय मीडिया इन दोनों के प्रवक्ता बन गया। चुनाव आयोग मोदी सरकार की कठपुतली बन गया। सुप्रीम कोर्ट भी अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए बंगाल का चुनाव प्रचार नहीं रुकवा पाया। हाँ जब बंगाल में कोरोना विकराल रूप लेगा तो ये सब जनता की कमियां निकालना शुरू कर देंगे। मोदी सरकार की मनमानी हर मामले में दिखाई दी।
मोदी सरकार एक-एक कर देश के संसाधनों को बेचती रही। रोजी-रोटी के साथ खिलवाड़ करती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता के पैसों से विदेशी दौरे करते रहे। जब देश आम आदमी दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहा था तो प्रधानमंत्री को अपने एश-ओ-आराम के लिए 8400 करोड़ के विशेष विमानों की जरूरत पड़ गई। देश रोजी-रोट की मांग करता रहा और प्रधानमंत्री राफेल ले आ गये।
जिन किसानों के बल पर गत साल देश को बचाया गया उनको बर्बाद करने के लिए नये किसान कानून लागू कर दिये गये। वह मात्र दो पूंजीपतियों के फायदे के लिए।
जो मजदूर देश के विकास में अहम रोल अदा करता है उसको निजी कंपनियों में बंधुआ बनाने के लिए श्रम कानून में संशोधन कर दिया गया। देश में व्यक्तिगत स्तर पर मोदी सरकार की इस मानमानी का विरोध किया गया पर इसे न तो सत्ता पक्ष ने गंभीरता से लिया और न ही विपक्ष ने। देश में सत्ता हथियाना ही राजनीतक दलों का मकसद बन गया। जनता है कि जाति-धर्म, राजनीतिक दलों में बंट गई। जमीनी मुद्दे न केवल चुनावी सभाओं से गायब हो गये बल्कि चौपालों और लोगों के संवाद से भी गायब हो गये।
किसी जमाने में समाजसेवा के रूप में जाने जाने वाली शिक्षा और चिकित्सा आज की तारीख में कमाई का सबसे बड़ा माध्यम बन गई। देश में कोराना की आड़ में मानव अंगों की तस्करी की बात कई बार उठी पर सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। जब देश में किसान को मक्कार, आतंकवादी, नक्सली बोला जाने लगे तो उस देश में इस तरह के हालात पैदा होने से कौन रोक सकता है। जब देश में मजदूर के हाथ से रोटी छीनने का षड्यंत्र रचा जाने लगे तो उस देश बर्बादी कौन रोकेगा ? जब देश की जिम्मेदारी लिये बैठे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री एक पार्टी विशेष या फिर एक धर्म विशेष के प्रधानमंत्री या गृह मंत्री बन कर रह जायें तो इस तरह के हालात तो पैदा होगे हीं।
जब न्यायपालिका के साथ ही मीडिया सरकार का चाटुकार बन जाए तो फिर इस तरह के भयावह हालात पैदा होने से कौन रोकेगा ?
चिंता की बात यह नहीं है कि देश में हालात बहुत विकराल हैं, चिंता की बात यह है कि जनता आज भी निजी स्वार्थवश प्रभावशाली लोगों के गुलाम बन चुकी है। थोड़ा सा समय सामान्य हुआ कि लोग सब कुछ भूल गये। जैसा कि गत साल भूल गये थे।
सरकार से पूछा जाए कि कहां हैं कोविड-19 सेंटर ? कहां हैं ट्रेनों में बनने वाले कोविड-19 सेंटर ? 10-15 दिन में यदि अस्पतालों का यह हाल है तो महामारी के लंबे खींचने पर क्या होंगे ? जैसा कि गत वर्ष दिसम्बर तक यह महामारी खींची थी। देश में बड़ी विकट स्थिति है कि जो व्यक्ति देश को बर्बादी की कगार पर ले आया। लोगों को उसका विकल्प ही नहीं दिखाई दे रहा है।
आज लोगों की अंधभक्ति और लोकतंत्र के प्रहरी तंत्रों के आत्मसमर्पण के चलते देश में कोरोना महामारी ने विकराल रूप ले लिया है। वर्ल्डोमीटर और कोविड19 इंडिया ओआरजी के आंकड़ों के मुताबिक कल तक तीन लाख से ज्यादा नए मामले सामने आए और 21 सौ से ज्यादा लोगों की जान भी चली गई।
हालात कितने भयावह हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक सप्ताह में ही 18 लाख से ज्यादा संक्रमित बढ़ गए हैं, जबकि उससे पहले के हफ्ते में 10 लाख से ज्यादा मामले बढ़े थे। सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में 568 लोगों की मौत हुई है। इसके अलावा दिल्ली में 349, छत्तीसगढ़ में 193, उत्तर प्रदेश में 187, गुजरात में 125, कर्नाटक में 116, मध्य प्रदेश में 75, पंजाब में 69, बंगाल में 58, बिहार में 56 और तमिलनाडु में 53 और लोगों की मौत हो चुकी है।
चरण सिंह राजपूत
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