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कह रहा है मन चलो आज कोई गीत लिख दूं।
मेरे मन की हार में ही है तुम्हारी जीत लिख दूं।।
यह मुझे स्वीकार है तुम बस गये मेरी नजर में,
बनके हमराही मिले हो जिन्दगी के इक सफर में,
कृष्ण तुम हो मैं निभाऊं राधिका सी प्रीत लिख दूं
मेरे मन की हार में ही है तुम्हारी जीत लिख दूं।
भावनाएं एक सरिता सी कुलाचें भर रही हैं
और अन्तस में उमंगे बनके झरना झर रही हैं
मन विकल कहता है तुमको आज मन का मीत लिख दूं
कह रहा है मन चलो आज कोई गीत लिख दूं
समय का पहिया निरन्तर घूमता ही जा रहा है
मन हुआ उनमुक्त मधुकर झूमता ही जा रहा है
पुष्प अभिलाषी तपस में चाहता है सीत लिख दूं
मेरे मन की हार में ही है तुम्हारी जीत लिख दूं।
हेमा पाण्डेय
लखनऊ