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यहाँ सुख के भी दुःख होते हैं... ये जीवन है …

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Guest writer
26 Jan 2023
यहाँ सुख के भी दुःख होते हैं... ये जीवन है …

nisha nishant

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यही है रंग रूप

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ये जीवन है …

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जो भी मिला है रिश्ता

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उसे शिद्दत से जिओ

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नहीं व्यक्त हो सके उसे

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सरस्वती-सा अन्तर से अन्तर बहो

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अभावों को भी भावों के भाव से भरो

किरकिरी हो जिन आँखों की

उन आँखों में भी ख़ुशी के नीर बन तरो

मन का जिओ जीत कर मन को

हर पल को विजय करो

यही है छाँव धूप

ये जीवन है …

~~निशा निशान्त,27.10.2022

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मसरूफ थे हम तुम ही में

आज यादों को दिखाएँगे धूप

छाया है कुहासा आसमान में

घूम रहा है मन दुनिया जहान में

दृष्टि कहीं और लगी है, और

नज़र ठहरी है किताबों के कारवाँ में

कैमरों पर, टेलीस्कोप पर, दूरबीन पर,

हज़ारों गीत, ग़ज़लों के रिकॉर्ड्स पर,

रिकॉर्ड प्लेयर, छोटे से बड़े, पुराने से लेकर नए, कितने ही रेडियो, घड़ियाँ,

गैजेट्स से लेकर स्वास्थ्य जाँचने के यंत्र

रसोई की सुविधाएँ, साफ़ सफ़ाई की दुविधाएँ…सब कुछ हैं पर

तुम्हारे बिन मेरे भाई इनका क्या करें

ये सुख तुम्ही से थे

अब जीवन में से जी नहीं है

वन ही रह गया है जब से गए हो तुम

इन उजालों में तम ही रह गया है

~~निशा निशान्त,28.10.2022

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आज अपने दामन में

बो लिए हैं खार हमने

और चाहा दूसरों से

प्यार, केवल प्यार हमने …

———निशा निशान्त, 1979

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जगत में सुखी कौन रे बन्धु !

यहाँ सुख के भी दुःख होते हैं ।

——निशा निशान्त,23/11/2022

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रह गई अब शेष मैं

कुछ भी न कहने के लिए

रह गए अवशेष अब

सब कुछ सहने के लिए

बात जो कह दी गई

कब बात वह पूरी कही

यह अधूरेपन की गाथा

जाने कितनों ने सही

जी लिखा आधा-अधूरा

रेत पर जैसे लिखा

पूर्णता को प्राप्त क्या

जग में कभी कोई दिखा

साँसें दे रही संदेश

अब ख़ामोश रहने के लिए

~~निशा निशांत,2.12.2020

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नहीं हैं तल्खियाँ जीवन की

जो तुम मुस्कराए ।

बात बस इतनी- सी है,

कोई हमको नहीं भाया ;

किसी को हम नहीं भाए ।

~~निशा निशान्त

      07.05.2022

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यहाँ भी वही भेड़ियाधसान है

किसके पीछे किसकी मचान है !

झूठ की महफ़िलों में रौनक है

सच के लिए तो  केवल मसान है !

~~~निशा निशान्त,२०.०२.२०२१

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शिकायत नहीं हैं ये

अन्तर तक हैरानी है

कैसे-कैसे खेल हैं ये

जबकि जीवन फ़ानी है

तोड़ा है तो टूटोगे भी

कहावत ये पुरानी है

~~~~

आज नहीं तो कल

ले डूबेगा ये दलदल

चुक जाएँगे बहाने सब

साथ न देगा ये छल-बल

~~~~निशा निशान्त

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तू अकेली है तो क्या...

तू जमीन बन

तू आसमान बन

तू शिखर बन

तू हवा बन बह

नदी के किनारों सी रह

सितारों सी झिलमिला

दीप बन, शिखा बन

आलोक में सूरज

पृथ्वी का धीरज

समुद्र का विस्तार

संसार अपार

तू दिशा हो

दिशाओं का द्वार बन

तू अकेली नहीं

तू जीवन का सार बन

तेरा जीवन तलवार की धार पर है

तू पत्थर बन

झरते हैं झरने

झरने दे

पल-पल आहत होने को

समय का आँवा समझ

चलने दे जिनको चलने हैं कुंठित हो दाँव

अड़िग रख अपने पाँव

तू है धूप,तू छाँव 

तू है अकेली

तो हर अणु अकेला है

बह जाने दे आँसू ख़ुशी या व्यथा के

हँस कि वीरानों में झंकार हो

रेत मिले,अंगार मिले

जीत मिले,हार मिले

जलता है तो जलने दे अन्तर

चरैवेति चरैवेति तेरा मन्तर

यह याद रहे

स्वयं से ही है तेरा संवाद

यह याद रहे

~~निशा निशांत,24.11.2020

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