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फिलिस्तीन पर इजराइली का हमला : साम्राज्यवादी मंसूबे

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hastakshep
24 May 2021
बंधुत्व को बढ़ावा : अदालतें आगे आईं, सुदर्शन टीवी पर नफरत फैलाने वाले कार्यक्रम पर रोक

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved in human rights activities for the last three decades. He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD

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Hindi Article- Israel's attack on Palestine | Israeli–Palestinian conflict (इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष)

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बीते 6 मई 2021 से जहाँ एक ओर हमास नामक एक उग्रवादी फिलिस्तीनी समूह, अल अक्सा मस्जिद से जुड़े विवाद (Controversy related to Al Aqsa Mosque) को लेकर इजराइल पर मिसाइलें दाग रहा है वहीं इजराइल, फिलिस्तीनियों पर बड़े पैमाने पर हमले कर रहा है. इस टकराव में फिलिस्तीनी पक्ष को जानोमाल का अधिक नुकसान उठाना पड़ा है. फिलिस्तीन में 60 बच्चों सहित 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं जबकि इजराइल में 10 लोगों, जिनमें एक बच्चा शामिल है, की मौत हुई है.

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इजराइल ने उस इमारत को भी नष्ट कर दिया है जिसमें दुनिया भर के मीडिया हाउसों के दफ्तर थे. यह सब अत्यंत गंभीर और त्रासद है.

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वर्तमान तनाव के लिए अल अक्सा मस्जिद विवाद ज़िम्मेदार !

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इन घटनाओं के लिए ज़माने से चले आ रहे है अल अक्सा मस्जिद विवाद को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है. परन्तु इस सन्दर्भ में दुनिया के तेल उत्पादक क्षेत्र के नज़दीक अमरीकी चौकी के रूप में इजराइल के निर्माण और वहां की सत्ता यहूदीवादियों के हाथों में सौंपा जाने के घटनाक्रम को समझा जाना ज़रूरी है.

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फिलिस्तीन की धरती पर इजराइल का निर्माण क्यों किया गया ?

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दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमरीका और ब्रिटेन ने फिलिस्तीन की धरती पर इजराइल का निर्माण इस बहाने से किया कि दुनिया भर में सताए गए यहूदियों को उनके अपने देश की ज़रुरत है. इजराइल अधिवासी औपनिवेशवाद, सैनिक कब्ज़े और ज़मीन की चोरी का उदाहरण है.

फिलिस्तीन एक लम्बे समय से अलग देश रहा है. ऐसा नहीं है कि इस देश के नागरिक केवल मुसलमान हों. अरबी मुसलमानों के अलावा ईसाई और यहूदी भी फिलिस्तीन के नागरिक हैं. इस इलाके में यहूदियों का देश बनाने के पीछे तर्क यह दिया गया था कि यहूदी धर्म की जड़ें वहां हैं. जेरुसलेम (येरुशलम) तीन इब्राहीमी धर्मों - यहूदी, इस्लाम और ईसाई की श्रद्धा का केंद्र रहा है.

पहली ज़ायोनी कांग्रेस | World Zionist Congress

यहूदीवादियों के नेतृत्व में यहूदियों का पहला वैश्विक जमावड़ा 1897 में जर्मनी में हुआ था. इसमें उन्होंने यहूदियों के लिए अलग देश की मांग की थी. इस मसले को समझने के लिए सबसे पहले हमें यहूदीवाद (जायोनिज्म) और यहूदी धर्म (जूडाइज़्म) के बीच अंतर (Difference between Judaism and Zionism) को समझना होगा. यहूदी एक धर्म है जबकि यहूदीवाद से आशय है यहूदी धर्म के नाम पर राजनीति - इस्लाम और इस्लामिक कट्टरतावाद (जैसे तालिबान) या हिन्दू धर्म और हिंदुत्व की तरह.

इस बैठक में यहूदियों के लिए एक अलग देश की मांग करने वाले प्रस्ताव का पूरी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रह रहे यहूदियों ने कड़ा विरोध किया. उनका तर्क था कि इस तरह की मांग से उन्हें अन्य देशों में भेदभाव का सामना करना पड़ेगा और यहूदी व्यापरियों और पेशेवरों को नुकसान होगा.

World War strengthened the demand for a separate Jewish state.

विश्व युद्ध ने अलग यहूदी राज्य की मांग को मजबूती दी. इसका कारण था जर्मनी में यहूदियों का कत्लेआम. परन्तु इसके बाद भी जर्मनी के ही कई यहूदी इस मांग के विरोध में थे क्योंकि उन्हें यह अहसास था कि एकल धार्मिक पहचान पर आधारित राज्य, अन्य पहचानों के प्रति उतना ही क्रूर और दमनकारी हो जायेगा जितना कि नाजीवादी जर्मनी था.

इजराइल के निर्माण के लिए फिलिस्तीन का एक बड़ा भूभाग उससे छीन लिया गया. लाखों फिलिस्तीनियों को अपना घरबार छोड़ना पड़ा. इस नए देश को हथियारों से लैस कर दिया गया, विशेषकर अमरीका द्वारा.

यह साफ़ था कि पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियां, पश्चिम एशिया में सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में अपना एक अड्डा बनाना चाहतीं थीं. जब कच्चे तेल के संसाधनों को लेकर राजनीति शुरू हुई तब इन शक्तियों ने तर्क दिया कि तेल इतना कीमती है कि उसे अरबों के हाथों में नहीं छोड़ा जा सकता.

अमरीका और ब्रिटेन ने इजराइल को ताकतवर बनाने के लिए सब कुछ किया.

यह महत्वपूर्ण है कि दुनिया भर में धनी यहूदी व्यापारी काफी शक्तिशाली हैं और सत्ता के केन्द्रों पर उनका नियंत्रण है, विशेषकर अमरीका में.

इजराइल ने 1967 में फिलिस्तीन के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया. इसके कारण लाखों फिलिस्तीनी आसपास के देशों में शरणार्थी के रूप में जीने के लिए मजबूर हो गए. इजराइल की निर्दयता और उसके आक्रामक व्यवहार की संयुक्त राष्ट्र संघ ने निंदा की.

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित अनेक प्रस्तावों में फिलिस्तीनियों के साथ न्याय की मांग करते हुए इजराइल से उन इलाकों से पीछे हटने के लिए कहा गया जिन पर उसका अवैध कब्ज़ा है. परन्तु इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों की कोई परवाह नहीं की. अमरीका के पूर्ण समर्थन के कारण ही इजराइल अन्तर्राष्ट्रीय और नैतिक मानदंडों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करता आया है.

Religion has no role in the Israeli Palestine dispute.

इस पूरे मामले में धर्म की कोई भूमिका नहीं है. असली मुद्दा है तेल के संसाधनों पर नियंत्रण और दुनिया के इस क्षेत्र पर सैन्य-राजनैतिक वर्चस्व. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् दोनों पक्षों से युद्द विराम की अपील करते हुए एक प्रस्ताव पारित करना चाहती थी परन्तु अमरीका ने अपने वीटो का प्रयोग करते हुए इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया और इजराइल के रक्षामंत्री ने कहा कि यह युद्ध तब तक जारी रहेगा जब तक इजराइल अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर लेता.

इस समय पूरी दुनिया में इजराइल के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं और यह मांग की जा रही है कि इजराइल हमले बंद करे. हमास द्वारा इजराइल पर मिसाइलें दागने का कोई औचित्य नहीं हैं परन्तु जबरदस्त दमन और प्रताड़ना के शिकार किसी भी समुदाय में अतिवादी समूहों का उभरना स्वाभाविक है. किसी समुदाय के साथ अत्यधिक अन्याय इस तरह के समूहों को बढ़ावा देता है.

भारत शुरुआत से ही फिलस्तीनियों का पक्ष लेता आ रहा है.

महात्मा गाँधी ने लिखा था,

"यहूदियों के प्रति मेरी सहानुभूति, न्याय की ज़रुरत के प्रति मुझे अंधा नहीं बनाती. यहूदियों को अरबों पर थोपना गलत और अमानवीय है."

अटल बिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज भी फिलिस्तीन के साथ और उस देश की ज़मीन पर इजराइल के कब्ज़े के खिलाफ थे. हाल के कुछ वर्षों में देश में सांप्रदायिक राष्ट्रवाद के उदय की साथ, भारत सरकार इजराइल की तरफ झुक रही है और फिलिस्तीनियों के साथ न्याय की मांग को अपेक्षित महत्व नहीं दिया जा रहा है.

दुनिया का यह क्षेत्र दशकों से हॉटस्पॉट रहा है. अब समय आ गया है कि सभी वैश्विक ताकतें संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों का पालन करें और यह सुनिश्चित करें कि फिलिस्तीनियों के साथ न्याय हो और उन्हें उनके अधिकार और उनकी भूमि वापस मिलें. इसके साथ ही, हम एक देश के रूप में इजराइल के उदय को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते. अब तो यही किया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करे और दोनों इस सीमा का सम्मान करें. फिलिस्तीनियों के मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन, शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण के पक्षधरों के लिए चिंता का विषय है. अमरीकी साम्राज्यवादियों को तेल के संसाधनों पर कब्ज़ा करने की अपनी लिप्सा को नियंत्रित करना चाहिए और मध्यपूर्व के सभी निवासियों के लिए न्याय की बात सोचनी चाहिए.

राम पुनियानी

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

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