हिरोशिमा दिवस : पृथ्वी पर जीवन को बचाना है तो परमाणु हथियारों से दूर रहना ही होगा हमें

hastakshep
07 Aug 2022
हिरोशिमा दिवस : पृथ्वी पर जीवन को बचाना है तो परमाणु हथियारों से दूर रहना ही होगा हमें

कब मनाया जाता है हिरोशिमा दिवस?

क्यों मनाया जता है हिरोशिमा दिवस?

Hiroshima marks 77th anniversary of atomic bombing. Hiroshima Day 2022: History, importance and significance of the day

हिरोशिमा दिवस 2022 (Hiroshima Day 2022) हत्याओं की 77वीं वर्षगांठ है। पूरे विश्व में हर साल 6 अगस्त को परमाणु बम के भयावह प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने (Spreading awareness about the horrific effects of the atomic bomb) और शांति की राजनीति (politics of peace) को बढ़ावा देने के लिए हिरोशिमा दिवस मनाया जाता है।

हिरोशिमा दिवस का इतिहास | History of Hiroshima Day in Hindi

इस दिन 1945 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एक जापानी शहर हिरोशिमा पर एक परमाणु बम गिराया था। परमाणु विस्फोट बड़े पैमाने पर हुआ और शहर के 90 प्रतिशत हिस्से को नष्ट कर दिया और हजारों लोग मारे गए। इसने लगभग 20,000 सैनिकों और 90,000 से 125,000 नागरिकों को मार डाला। तीन दिन बाद, 9 अगस्त 1945 को जापान के एक और शहर, नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया, जिसमें 80,000 से अधिक लोग लोग मारे गए।

हिरोशिमा दिवस को हम उन हत्याओं की वर्षगांठ भी कह सकते हैं, जो विश्व युद्ध के लगभग समाप्त होने की कगार पर परमाणु बमों के द्वारा की गईं।

आज परमाणु बमों का इतना जखीरा दुनिया के बड़े और शक्तिशाली से लेकर विकासशील देशों के पास जमा है कि विश्व के प्रत्येक शांतिकामी नागरिक को ये व्याकुलता स्वाभाविक रूप से होती है कि कहीं किसी भी देश का सत्तानशीं, चाहे वह लोकतांत्रिक देश का हो अथवा अधिनायकवादी देश का, सनक में आकर मानवता पर फिर वही वहशी अत्याचार को न कर बैठे, जो द्वितीय विश्वयुद्ध की लगभग समाप्ति पर अमेरिका के 33वें राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमेन ने किया था।

द्वितीय विश्व युद्ध (second World War) के बाद दुनिया के देशों के बीच अनगिनत युद्ध हो चुके हैं और शांतिकामी लोगों के मध्य परमाणु बम के इस्तेमाल को लेकर होने वाली व्याकुलता कभी कम नहीं रही।   

अभी शायद हम बड़े देशों के बीच बढ़ती हुई अदावत और तनाव के मामले में सबसे खतरनाक दौर से गुजर रहे हैं।

अमेरिका और चीन के बीच अब नया मोहरा ताइवान (Taiwan is now the new pawn between America and China)

यह किसी से छिपा नहीं है कि रूस और यूक्रेन के मध्य चल रहे युद्ध में यूक्रेन एक छद्म है और वास्तविक संघर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच है। सबसे ज्यादा त्रासदीपूर्ण बात यह है कि पांच महीने से अधिक के अत्यधिक विनाशकारी युद्ध के बाद भी कोई दिलासा देने वाली शांति प्रक्रिया किसी भी देश के द्वारा शुरू नहीं की गयी है और यह हो भी कैसे जब दो विश्व महाशक्ति युद्ध पर ही आमादा हों तो शान्ति की पहल होगी ही कैसे? रही सही कसर हाल के घटना विकास ने पूरा कर दिया है।

ऐसा लग रहा है मानो संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच अब ताइवान मोहरा बन रहा है। अभी की परिस्थिति में शामिल तीनों देश परमाणु संपन्न हैं| आज परमाणु संपन्न देशों के पास 13000 से अधिक न्यूक्लियर हथियार हैं और इनमें से अधिकाँश की मारक क्षमता हिरोशिमा या नागासाकी पर गिराए गए बमों से कई गुना अधिक है।

जापान हमारे सामने परमाणु बम के विनाश के उदाहरण के रूप में मौजूद है, जहाँ न केवल दो लाख से अधिक लोग फौरी तौर पर मारे गए बल्कि उसके बाद वर्षों तक जलने-झुलसने और विकिरण के फलस्वरूप हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई। यहाँ तक कि उसके बाद के लगभग चार दशकों तक पैदा हुए बच्चे भी परमाणु विकिरण के शिकार रहे।

आज जब फेट मेन और लिटिल ब्वाय, उन परमाणु बमों के नाम जो नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए थे, से ज्यादा शक्तिशाली न्यूक्लियर हथियार परमाणु संपन्न देशों के पास हैं, हम कल्पना कर सकते हैं कि लाखों लोगों को तुरंत मारने के अलावा, परमाणु हथियारों के युद्ध से अभूतपूर्व पर्यावरणीय तबाही भी हो सकती है, जो जापान में मारे गए लोगों से भी बड़ी संख्या में लोगों को मार सकती है। इतना ही नहीं इसका विनाशकारी परिणाम जीव जगत के अन्य जीवन-रूपों को भी भोगना पडेगा और प्रकृति का विनाश होगा।

आज परमाणु हथियारों का प्रयोग अकेले दो देशों के बीच का मामला हो ही नहीं सकता है, इसके दुष्परिणाम बिना किसी विवाद में शामिल हुए पड़ोसी देशों के लोगों को भी भुगतने होंगे।

यह कोरा मुगालता ही है कि सामरिक परमाणु हथियारों के रूप में परमाणु हथियारों की कम विनाशकारी भूमिका हो सकती है। यह किसी युद्धोन्मादी का ही दृष्टिकोण हो सकता है। यदि युद्धरत देशों के पास परमाणु हथियार हैं तो सामरिक हथियारों से शुरू हुआ परमाणु युद्ध आसानी से कभी भी एक पूर्ण परमाणु युद्ध में बदल सकता है। फिर, परमाणु हथियार सामरिक हों तो भी उनका उपयोग बहुत विनाशकारी हो सकता है, यहां तक कि उपयोग करने वाले देश के लिए भी उनका उपयोग विनाशकारी ही होगा!

इसके अलावा, जैसा कि न्यूक्लियर हथियारों के बारे में आम धारणा है कि इनके इस्तेमाल का अधिकार केवल राष्ट्र प्रमुखों के पास ही होता है| पर, यही बात छोटे स्तर के सामरिक न्युक्लियर हथियारों के बारे में नहीं कही जा सकती| क्योंकि, जब सामरिक परमाणु हथियारों को उपयोग के लिए तैयार करना होता है तो उनके नियंत्रण के अधिकार का अनेक लोगों के पास पहुंचना साधारण सी बात ही होगी। इससे यह संभावना बढ़ जाती है कि कट्टर या कट्टरपंथी झुकाव या आतंकवाद फैलाने वाले व्यक्ति या समूह भी इसके नियंत्रण तक पहुँच हासिल कर सकते हैं या उन हथियारों को ही हासिल कर सकते हैं।

इसलिए इस भ्रम में रहना एकदम गलत है कि छोटे स्तर के सामरिक न्युक्लियर हथियार परमाणु हथियारों का कोई सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं। क्योंकि, ऐसा भ्रम लाखों-करोड़ों लोगों के लिए अत्यंत विनाशकारी हो सकता है।

हमारी प्यारी धरती, उस पर बसे जीवन और उस पर्यावरण तथा प्रकृति के लिए सबसे अच्छी बात यही है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कभी नहीं होना चाहिए।

वास्तव में, परमाणु हथियारों का उपयोग तो विनाशकारी है ही, परमाणु हथियारों से संबंधित दुर्घटनाएं भी बहुत विनाशकारी हो सकती हैं। इसलिए यदि हम पृथ्वी पर जीवन की परवाह करते हैं तो अंततः एकमात्र सुरक्षित विकल्प यही है कि हम सभी परमाणु हथियारों और सामूहिक विनाश के सभी हथियारों को हमेशा के लिए छोड़ दें।

दुर्भाग्यवश, एक समय शुरू हुआ निशस्त्रीकरण अभियान अपने उद्देश्य में सफल तो नहीं ही हो पाया, अब उस तरफ प्रयास भी बंद हो गए हैं। बड़े देश जो शस्त्रों के निर्माता हैं, वे न केवल अपने देशों के हथियार निर्माताओं के माफियाओं के चंगुल में फंसे हैं, उनकी अर्थव्यवस्था बहुत कुछ अपने से छोटे देशों को हथियारों को बेचने और उनके बीच के युद्ध पर ही टिकी है।

हिरोशिमा दिवस हमें प्रेरित करता है कि हम इस विषय पर ईमानदारी से विचार करें, हम किसी भी पक्ष के हों, हमारा एकमात्र ईमानदार निष्कर्ष यही होना चाहिए कि यदि पृथ्वी पर जीवन को बचाना है तो हमें परमाणु हथियारों से दूर रहना ही होगा, उन्हें नष्ट करना ही होगा और इसके लिए विश्व की शांतिकामी जमात को एक स्वर में आवाज उठानी ही होगी।

अरुण कान्त शुक्ला

अरुण कान्त शुक्ला
अरुण कान्त शुक्ला, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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