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Holi with Democracy
कैबिनेट मीटिंग में गहन चर्चा के बाद तय हुआ कि प्रगति बेशक हो रही है, पर रफ्तार काफी धीमी है। सरकार का दूसरा कार्यकाल लग गया, दूसरे कार्यकाल में से भी दो साल निकल गए, पर प्रगति के नाम पर सिर्फ दो सूबों की विधानसभाओं को नाथा जा सका है। उसमें भी एक की विधानसभा फिलहाल तो छू-मंतर हुई रखी है, पर कब तक? इससे पुख्ता इंतजाम तो दिल्ली में हुआ है, चुना हुआ है तो क्या हुआ, सीएम की कुर्सी नीचे, बड्डी सरकार के पसंद किए एलजी की गद्दी ऊपर। पर दो साल में सिर्फ दो। जबकि देश में विधानसभाएं कितनी हैं—अट्ठाईस जमा तीन यानी इकत्तीस। इस रफ्तार से तो महाराज का एकछत्र राज कायम होने में तो दसियों साल लग जाएंगे।
एक वरिष्ठ मंत्री ने दबे सुर में संदेह जताया--वैसे इतना ज्यादा टैम शायद नहीं लगे। इकत्तीस में से कम से कम दर्जन-सवा दर्जन में तो महाराज के वफादार छत्रप पहले से गद्दी पर हैं और दो को सैट किया ही जा चुका है यानी ज्यादा से ज्यादा पंद्रह का जुगाड़ होना बाकी है। हो सकता है, चुनाव के होली के इस चक्र में हमारा एकाध छत्रप और गद्दी पर आ जाए।
पर महाराज ने डपट दिया--एक महान नेता ने कहा था, जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं। लेकिन, इस रफ्तार से तो दस साल भी कम होंगे। ये लटकाना, अटकाना, भटकाना, पहले बहुत हुआ, अब नहीं चलेगा। हमें कुछ और सोचना होगा, कुछ बड़ा करना होगा--धमाकेदार!
जब महाराज ने ही धमाकेदार की मांग कर दी, फिर किस की जुर्रत थी कि धमाकेदार से कम की सोचता।
धमाकेदार तो तय हो गया, पर क्या--सब सोच में पड़ गए। पर महाराज ने कृपा की और जल्दी ही उन्हें सोचने के तनाव से मुक्त कर दिया। महाराज बोले--एक उपाय है, संविधान का सांप भी मर जाएगा और डैमोक्रेसी की लाठी भी नहीं टूटेगी। टैम भी वेस्ट नहीं होगा, फटाफट एकछत्र राज कायम हो जाएगा।
पूरे मंत्रिमंडल ने जय हो, जय हो के नारों से, बड़े जोश से महाराज के विचार का अनुमोदन किया।
अंत में महाराज से संकेत पाकर ही जय हो के नारे बंद हुए और सब सांस रोककर, उपाय की घोषणा की प्रतीक्षा करने लगे। अंत में मानकर महाराज ने मन की बात सुनायी। एक छोटा सा कानून बनाना होगा, जिसमें तीन प्रावधान होंगे-- पूरे देश में एक साथ चुनाव होगा, चुनाव में मतदान करना सब के लिए अनिवार्य होगा, बस वोट हमारी ही पार्टी को मिलेगा!
आह महाराज और वाह महाराज के जयकारों के साथ मंत्रिगण ने आइडिया का जोरदार स्वागत किया। एक बुजुर्ग मंत्री बोलना शुरू हुए तो ऐसे नायाब आइडिया के लिए महाराज की इतनी तारीफ की इतनी तारीफ की कि महाराज को खुद हंसी का सहारा लेकर रोकना पड़ा--पंडिज्जी शिवबूटी ज्यादा चढ़ा गए लगता है। अब मुद्दे की बात पर आएं।
पंडिज्जी तो बैठ गए, पर बैठक में सन्नाटा फैल गया। तारीफ में कहें तो क्या कहें?
एक मंत्री ने बात शुरू की कि महाराज ने तो ऐसा उपाय खोजा है कि एक ही झटके में विपक्षी सरकारों का सारा रोग ही कट जाएगा। एक और ने जोड़ा कि विपक्षी सरकारों का ही क्यों विपक्ष का ही। जब हरेक वोट हमारी पार्टी को ही मिलेगा, तो विपक्ष की तो दूकान ही बंद हो जाएगी। वाह महाराज, वाह!
पर महाराज ने तनिक अधीरता से टोका--इस सुधार को आप लोग पार्टी की नजर से मत देखिए। यह सुधार हम कोई विपक्ष की दूकानें या विपक्षी सरकारें खत्म करने के लिए नहीं करने जा रहे हैं। हमारा सोच शुद्ध सकारात्मक है। यह देश को पक्ष-विपक्ष से आगे, सूबों का पक्ष-विपक्ष की सरकारों से आगे ले जाने का सोच है। यह देश को पूरी तरह से एकजुट करने का सोच है। सरदार प्रथम ने हमें इलाकाई एकता दी। फिर संघ ने हमें सांस्कृतिक-धार्मिक एकता दी। फिर हमने हजार-पांच सौ के नोट बंद करके, एकदम छोटे और एकदम बड़े नोटों की एकता दी। एक देश-एक टैक्स वाली एकता दी। उससे काम नहीं चला तो लॉकडाउन की एकता दी। मजदूरों के महापलायन की एकता दी। अब किसानों के आंदोलन की एकता दे रहे हैं। और तो और देश से म्युनिसिपैलिटी तक, हरेक चुनाव मेरी तस्वीर पर वाली एकता दे रहे हैं। अब हमें और आगे जाना है। एक देश एक चुनाव के साथ, एक चुनाव एक नतीजे की एकता को लाना है। एक देश, एक सरकार बनाना है! आर्यावर्त में फिर से चक्रवर्ती राज लाना है।
मंत्री तो वाह-वाह ही करते रहे, पर राज-विदूषक बिचल गया। सिंहासन पर चढ़कर सिर के बल खड़ा हो गया। महाराज ने पूछा--अबे यह क्या करता है? विदूषक शीर्षासन में ही बोला--जो आप डैमोक्रेसी के साथ करने वाले हैं। मंत्रिगण एक साथ चिल्लाए--यह महाराज की तौहीन है, इसे दंड दिया जाए! महाराज बोले--नहीं, यह नादान है। हम डैमोक्रेसी को हटा नहीं रहे हैं और ज्यादा डैमोक्रेसी ला रहे हैं। न सिर्फ चुनाव होगा, हरेक बंदे के वोट से चुनाव होगा, बस वोट हमें मिलेगा।
मंत्रियों ने जोर से नारा लगाया--ड्योढ़ी डैमोक्रेसी जिंदाबाद। विदूषक शीर्षासन से नीचे गिर गया और मैं चारपाई से। बाहर से आवाजें आ रही थीं--बुरा न मानो...। 0
राजेंद्र शर्मा