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Honorable Country's Rajdulare, this is not a crusade that you are bent on making Mahabharata.
हर समस्या के लिए समय माँगने वाले माननीय देश के राजदुलारे जी इस बार सोच समझ कर निर्णय लीजिएगा नहीं तो प्रकृति के नियम में कोई अपना पराया नहीं होता। अबकी बार तो आपके अपने भी जाएंगे इस वैश्विक महामारी से। ये कभी अपने पराये नहीं देखती बस न्याय करती है।
क्योंकि यह कोई धर्मयुद्ध नहीं है जिसे आप महाभारत का नाम (name of mahabharata) दे रहे हैं, आप जिसे चुटकियों में जीत लेंगे। अगर इसे धर्म युद्ध बनाओगे तो तेज़ी से फैलने वाली एक वैश्विक महामारी (Global epidemic) से लोगों को कैसे बचाओगे? इसमें जागरूकता अभियान की जरूरत है और उससे भी ज्यादा समुचित इलाज़ की दरकार है, ना कि ढोल-नगाड़े, शंख और थाली की।
On March 25, all rules of corona lock down were broken in Ayodhya.
25 मार्च को अयोध्या में जिस तरह से कोरोना लॉक डाउन के सारे नियमों की धज्जियाँ उड़ाई गई उससे क्या प्रतीत होता है कि सारे मर जाएं, लेकिन राम मंदिर जरूर बनेगा वहीं बनेगा और कोरोना के इन्फेक्शन के वक्त बनेगा। वाह रे राजा कभी तो जनता की सोचो। जब कोई जीवित बचेगा तभी तो पूजा कर पाओगे।
राजनेता जिस तरह से धर्म और आस्था के नाम पर पाखंड फैलाने वाले कृत्यों से जनता के बीच अनुपयोगी सिद्ध होते जा रहे हैं उस के लिए उक्त पंक्तियां सटीक हैं।
पाखंडियों का हुआ अवतार, नहीं सुधरे तो मचेगा हाहाकार।
People From Koiripur Mushar Basti Are Hungry For Two Days
अभी तो सिर्फ पांच दिन ही हुए हैं और बनारस जिले के कोईरीपुर मुसहर बस्ती बड़ा गॉव ब्लाक के पास पड़ती है वहां करीब सोलह सत्रह परिवार हैं जिसमें चार परिवार ईट भट्टों पर दैनिक मजदूरी करते हैं और बाकि लोग और उनके बच्चे घास खा कर गुजारा कर रहे हैं। ये मेरे भारत का जिसका जीवंत उदाहरण सबको देखने को मिल रहा है, ऐसी घटनाएं अब पूरे देश से इस तरह की खबरें आई शुरू हो गयी हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने यदि व्यवस्था नहीं की तो भारी पैमाने पर गरीबों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ सकता है। सभी सरकारों को चाहिए कि प्रत्येक जिलाधिकारी की इस संबंध में जिम्मेदारी भी तय कर देनी चाहिए।
बीमारी भी अमीरों की, सरकार भी अमीरों की और सुविधा भी अमीरों को। गरीब तो सड़क पर चलने और मरने के लिए बने हैं।
मोदी जी ने हमें यह तो बता दिया कि किसी का हाथ छूना नहीं है। लेकिन आप यह बताएं कि बीच राह में फंसे "श्रमिकों का साथ" क्यों छोड़ दिए? उनके लिए भी कीजिये जो भूखे पेट पैदल चलने को मजबूर हो गए अपने गाँव जाने के लिए। सभी राज्यीय और राष्ट्रीय राजमार्ग इसके जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
लगभग हर बड़े शहर में काम-धंधे की तलाश में आए प्रवासी मजदूरों पर लॉकडाउन की भयंकर मार पड़ रही है। मोदीजी ने रातों-रात बिना सोचे-समझे शहरों को बंद करवाया है।
मीडिया यह बिल्कुल नहीं दिखा रहा है कि देश के तकरीबन सभी बड़े शहरों में लोग परिवहन के साधनों के बिना किस तरह फंसे हुए हैं। उनके पास भोजन नहीं है, पैसे नहीं हैं। मोदीजी ने उन्हें भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है।
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इस कोरोना वायरस ने सरकार और समाज को बहुत सी नई चुनौती पेश की है। गुजरात को देखें तो वहां महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ने स्थानीय स्तर पर मास्क बनाना शुरू कर दिया है। बाकी जगहों पर एनजीओ मुंह लटकाकर मौत के इंतजार में बैठे हैं। कहाँ है देश के दो लाख एनजीओ जिनको विदेशों और सरकार समाज के नाम पर मोटा पैसा देती है ?
सड़कों पर बेघर, फंसे हुए, भूखे प्रवासी मजदूरों के लिए कम्युनिटी किचन खुल जाना चाहिए। प्रशासन को बड़े स्टेडियम, पार्क को कब्जे में लेकर ऐसे लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करनी चाहिए। लेकिन मोदी ने बोला है तो सब घर पर बैठे मौज काट रहे हैं।
मोदी जी ने बहुत बार राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र निर्माण की बात है। मैंने भी उसमें भूमिका निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बस ऐसे राष्ट्र के निर्माण में हमने कदम आगे बढ़ा दिए हैं कुछ वर्ष पहले। अब तो बलिदान का समय है। गरीबो हिचकना क्यों ? राष्ट्र तो हमेशा से ही बलिदान मांगता रहा है। चलो गरीबों अब आप तैयार हो जाओ बलिदान देने के लिए।
अमित सिंह शिवभक्त नंदी
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