Advertisment

कैसे आते हैं बदलाव ? अशिक्षित होना और मूर्ख होना दो अलग बातें

author-image
hastakshep
20 Feb 2020
व्यक्तित्व को उन्नत बनाने के आधारसूत्र

How does change come? Being uneducated and being foolish are two different things

Advertisment

आज हमें परिवर्तन की मानसिक यात्रा से गुज़रने की आवश्यकता है

स्कूल-कॉलेज विधिवत औपचारिक शिक्षा के मंच (Formal education platforms) हैं और व्यक्ति यहां से बहुत कुछ सीखता है। शिक्षित व्यक्ति के समाज में आगे बढ़ने के अवसर अशिक्षित लोगों के मुकाबले कहीं अधिक हैं। एक कहावत है कि विद्वान व्यक्ति गेंद की तरह होता है और मूर्ख मिट्टी के ढेले की तरह, नीचे गिरने पर गेंद तो फिर ऊपर आ जाएगा पर मिट्टी का ढेला नीचे ही रह जाएगा। यानी कठिन समय आने पर या सब कुछ छिन जाने पर भी विद्वान व्यक्ति उन्नति के रास्ते दोबारा निकाल लेगा लेकिन मूर्ख के लिए शायद ऐसा संभव नहीं होता।

मैं साफ कर देना चाहता हूं कि अशिक्षित होना और मूर्ख होना दो अलग बाते हैं। शिक्षित लोगों में से भी बहुत से मूर्ख होते ही हैं और अशिक्षित अथवा अल्प-शिक्षित लोगों में भी बुद्धिमानों और नायकों की कमी नहीं रही है। तो भी सामान्यत: शिक्षित व्यक्ति के ज्यादा बुद्धिमान और ज्यादा सफल होने के आसार अधिक होते हैं। इसके बावजूद क्या हमारी शिक्षा प्रणाली हमें वह दे पा रही है जो इसे असल में देना चाहिए? क्या वह देश को बुद्धिमान नायक और प्रेरणास्रोत बनने योग्य नेता दे पा रही है? ईमानदारी से विश्लेषण करें तो इसका उत्तर “न” में होगा।

Advertisment

जापानी मूल के प्रसिद्ध अमरीकी लेखक राबर्ट टी. कियोसाकी कहते हैं, “स्कूल में मैंने दो चुनौतियों का सामना किया। पहली तो यह कि स्कूल मुझ पर नौकरी पाने की प्रोग्रामिंग करना चाहता था। स्कूल में सिर्फ यह सिखाया जाता है कि पैसे के लिए काम कैसे किया जाता है। वे यह नहीं सिखाते हैं कि पैसे से अपने लिए काम कैसे लिया जाता है। दूसरी चुनौती यह थी कि स्कूल लोगों को गलतियां करने पर सजा देता था। हम गलतियां करके ही सीखते हैं। साइकिल चलाना सीखते समय मैं बार-बार गिरा। मैंने इसी तरह सीखा। अगर मुझे गिरने की सजा दी जाती तो मैं साइकिल चलाना कभी नहीं सीख पाता।”

What are the deficiencies in our education system?

हमारी शिक्षा प्रणाली में कई कमियां हैं। हमारे स्कूल-कालेज हमें भाषा, गणित, विज्ञान या ऐसे ही कुछ विषय सिखाते हैं, लोगों के साथ चलना, लोगों को साथ लेकर चलना तथा कल्पनाशील और स्वप्नदर्शी होना नहीं सिखाते। यह एक तथ्य है कि विशेषज्ञ नेता नहीं बन पाते। यह समझना जरूरी है कि लोगों को साथ लेकर चलने में असफल रहने वाला विशेषज्ञ कभी नेता नहीं बन सकता, वह ज्य़ादा से ज्य़ादा नंबर दो की स्थिति पर पहुंच सकता है, अव्वल नहीं हो सकता, हो भी जाएगा तो टिक नहीं पाएगा। सॉफ्ट स्किल्स के बिना आप बहुत आगे तक नहीं जा सकते। स्कूल-कालेज सीधे तौर पर सॉफ्ट स्किल्स नहीं सिखाते।

Advertisment
The fearful person does not make the right decision

हमारी शिक्षा प्रणाली की दूसरी बड़ी कमी है कि यह हमें प्रयोगधर्मी होने से रोकती है। कोई भी वैज्ञानिक आविष्कार पहली बार के प्रयास का नतीजा नहीं है। अक्सर वैज्ञानिक लोग किसी एक समस्या के समाधान का प्रयास कर रहे होते हैं जबकि उन्हें संयोगवश किसी दूसरी समस्या का समाधान मिल जाता है। वह भी एक आविष्कार होता है। बिजली के बल्ब के आविष्कार से पहले एडिसन को कितनी असफलताएं हाथ लगी थीं? यदि उन असफलताओं के  लिए उन्हें सजा दी जाती तो क्या कभी बल्ब का आविष्कार हो पाता? पर हम अपने व्यावहारिक जीवन में हर रोज़ यही करते हैं। हम गलतियां बर्दाश्त नहीं करते, गलतियां करने वाले को सज़ा देते हैं और उनमें भय की मानसिकता भर देते हैं। भयभीत व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले पाता और उसका मानसिक विकास गड़बड़ा जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली अपनी पूरी पीढ़ी के साथ यही खेल खेल रही है।

Excessive reasoning prevents us from being imaginative
Advertisment

अत्यधिक तर्कशीलता हमें कल्पनाशील होने से रोकती है। वर्तमान से आगे देख पाने के लिए हमारा स्वप्नर्शी और प्रयोगधर्मी होना आवश्यक है। शिक्षा प्रणाली की यही कमी हमें क्लर्क देती है, अफसर देती है पर नेता नहीं देती।

हमारी शिक्षा प्रणाली की तीसरी और सबसे बड़ी कमी है कि यह हमें अपने सभी साधनों का प्रयोग करना नहीं सिखाती। पूंजी एक बहुत बड़ा साधन है पर हमारी शिक्षा हमें पूंजी के उपयोग का तरीका नहीं सिखाती। हमारी शिक्षा हमें पैसे के लिए काम करना सिखाती है, पैसे से काम लेना नहीं सिखाती। हम नौकरी में हों या व्यवसाय में। हम पैसे के लिए काम करते हैं। सवाल यह है कि हम अपने काम पर जाना बंद कर दें, व्यवसाय संभालना बंद कर दें, नौकरी पर जाना बंद कर दें तो क्या तब भी हमारी आय बनी रहेगी? यह सिद्ध हो चुका है कि पूंजी के निवेश का सही तरीका (Right way to invest capital) सीखने पर यह संभव है, लेकिन हमारी शिक्षा प्रणाली इस तथ्य से सर्वदा अनजान है। इसीलिए यह आज भी विद्यार्थियों को पैसे के लिए काम करना सिखा रही है, पैसे से काम लेना नहीं। जब हम सही निवेश की बात करते हैं तो इसका आशय कंपनियों के शेयर खरीदने या म्युचुअल फंडों में निवेश करना नहीं है। वह भी एक तरीका हो सकता है, पर वह पूरी रणनीति का एक बहुत ही छोटा हिस्सा मात्र है। निवेश की रणनीति (Investment strategy) को समझकर गरीबी से अमीरी का सफर तय किया जा सकता है, अमीर बना जा सकता है, बहुत अमीर बना जा सकता है और हमेशा के लिए अमीर बना रहा जा सकता है, वह भी रिटायरमेंट का मज़ा लेते हुए।

Our education system that punishes us for mistakes makes us addicted to living fearfully

Advertisment

“दि हैपीनेस गुरू” के नाम से विख्यात, पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे मीडिया उद्योग पर हिंदी की प्रतिष्ठित वेबसाइट “समाचार4मीडिया” के प्रथम संपादक थे। “दि हैपीनेस गुरू” के नाम से विख्यात, पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। वे मीडिया उद्योग पर हिंदी की प्रतिष्ठित वेबसाइट “समाचार4मीडिया” के प्रथम संपादक थे।

गलतियों के लिए सज़ा देने वाली हमारी शिक्षा प्रणाली हमें डर-डर कर जीने का आदी बना देती है और ज्यादातर लोग रेल का इंजन बनने के बजाए रेल के डिब्बे बनकर रह जाते हैं जो किसी इंजन के पीछे चलने के लिए विवश होते हैं। इंजन बनने वाला व्यक्ति नेतृत्व के गुणों के कारण अपने डर को जीत चुका होता है और पुरस्कारों की फसल काट रहा होता है, जबकि अनुगामी बनकर चलने वाले लोग डर के दायरे में जी रहे होते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली अभी हमें डर के आगे की जीत का स्वाद चखने के लिए तैयार नहीं कर रही है।

हमें यह समझना चाहिए कि परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं, या यूं कहें कि दिमाग में शुरू होते हैं। राबर्ट कियोसाकी ने लिखा है कि जब मैं मोटा हो गया था और मैंने अपना वजन घटाने का निश्चय कर लिया तो मैं जानता था कि मुझे अपने विचार बदलने थे और सेहत के बारे में खुद को दोबारा शिक्षित करना था। आज जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैंने अपना वजन कम कैसे किया (किस तरह की डाइटिंग की, किस तरह के व्यायाम किए), तो मैं यह बताने की कोशिश करता हूं कि मैंने जो किया वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि मैंने अपनी सोच को बदला।

Advertisment

Today we need to go through a mental journey of change

आज हमें परिवर्तन की मानसिक यात्रा से गुज़रने की ज़रूरत है। हम इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं और सत्रहवीं सदी की मानसिकता से हम देश का विकास नहीं कर सकते। नई स्थितियों में नई समस्याएं हैं और उनके समाधान भी पुरातनपंथी नहीं हो सकते। यदि हमें गरीबी, अशिक्षा से पार पाना है और देश का विकास करना है तो हमें इस मानसिक यात्रा में भागीदार होना पड़ेगा जहां हम नये विचारों को आत्मसात कर सकें और ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें। 

पी. के. खुराना

Advertisment
सदस्यता लें