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राहुल ग़ांधी की राजनीतिक असफलता को सफलता में बदल देंगे प्रशांत किशोर?
इसे भारतीय राजनीति में नेताओं में संघर्ष का अभाव कहें या फिर राजनीतिज्ञों पर मैनेजरों के मैनेजमेंट का हावी होना कि प्रशांत किशोर देश की राजनीति में ऐसा नाम बनकर उभरा है कि हर कोई पार्टी इसे राजनीति का चाणक्य मानने लगी है। कभी भाजपा तो कभी जदयू, कभी आप तो कभी टीएमसी और अब 2024 को फतह करने के लिए कांग्रेस का प्रशांत किशोर को अपने साथ मिलाना।
तो क्या यह मान लिया जाए कि प्रशांत किशोर का दिमाग देश के राजनीतिज्ञों के रणनीतिक कौशल को मात दे रहा है? क्या पीके के बल पर कांग्रस मात्र दो साल में कमजोर कांग्रेस में जान फूंककर भाजपा के तिलिस्म को खत्म कर देगी ? राहुल ग़ांधी की राजनीतिक असफलता को प्रशांत किशोर सफलता में बदल देंगे? उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में करारी हार का स्वाद चखने वाली प्रियंका गांधी को पीके उत्तर प्रदेश की स्टार बना देंगे?
कांग्रेस अपने प्रति जनता की धारणा को समझे
2024 को फतह करने की रणनीति बना रहे कांग्रेस और पीके दोनों को समझ लेना चाहिए कि देश में वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ बने माहौल ने गांधी परिवार के नेतृत्व को नाकारा साबित कर दिया है।
दरअसल गत दिनों पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कांग्रेस ने मुंह की खायी है, उससे ही कांग्रेस को अपने प्रति जनता की धारणा को समझ लेना चाहिए।
कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह समझना होगा कि एक रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी परिवार के साथ ही वंशवाद और परिवारवाद के खिलाफ देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि जब तक ग़ांधी परिवार से अलग हटकर कांग्रेस का नेतृत्व किसी और नेता को नहीं सौंपा जाता तब तक कांग्रेस पर जनता का विश्वास कराना मुश्किल लग रहा है।
वैसे भी यह वही प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने गत साल गोवा में कांग्रेस को भाजपा और नरेंद्र मोदी की ताकत को समझने की नसीहत देते हुए कहा था कि इनकी ताकत को पहचाने बिना इनसे जीता नहीं जा सकता हैं।
इन्हीं पीके ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर उंगली उठाते हुए कहा था कि ये भाजपा की ताकत को समझे बिना उसे उखाड़ फेंकने की रणनीति बनाने लगते हैं। अब गांधी परिवार में ऐसा कैसा नेतृत्व उभर आया कि प्रशांत किशोर इन भाई बहन और मां के बलबूते 2024 के चुनाव में कांग्रेस को 400 सीटें जिताने का दंभ भरने लगे हैं?
दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के घर, 10 जनपथ पर हुई कांग्रेस के दिग्गजों की पीके के साथ बैठक में ये सब बातें निकल कर सामने आई हैं। इस बैठक में पीके ने कांग्रेस को मीडिया रणनीति में बदलाव करने के साथ ही संगठन को मजबूत करने की बात कही है। भाजपा से सीधे मुकाबले वाले राज्यों में पीके ने कांग्रेस को ज्यादा ध्यान देने को कहा है।
जदयू की तरह ही अब पीके के कांग्रेस में शामिल होने की बात भी सामने आ रही है। ऐसी जानकारी मिल रही है कि पीके के प्लान को लागू करने के लिए कांग्रेस नेताओं की एक टीम बनाई जाएगी जो एक हफ्ते के भीतर सोनिया गांधी को रिपोर्ट देगी।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि जहां कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व में कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आज़ाद, मनीष तिवारी खुलकर गांधी परिवार पर उंगली उठा रहे हैं। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलेट, मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ का विवाद है। पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को पार्टी से बाहर करने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू का विवाद आज भी है। ऐसे में पीके क्या करिश्मा करेंगे। यह समझ से बाहर है ?
कांग्रेस की बड़ी समस्या क्या है?
कांग्रेस की यह भी बड़ी समस्या है कि राहुल गांधी के इस्तीफा देने के बाद से उसके पास पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है। उनकी मां सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष बनकर पार्टी चला रही हैं। यह भी कांग्रेस की विडंबना ही है कि गांधी परिवार ही इसका नेतृत्व है और यह परिवार ही नेतृत्व निर्धारित करता है। पार्टी में आंतरिक कलह बंद कमरों से निकल कर सड़कों और मीडिया में आ गया है। गांधी परिवार G-23 गुट को निष्क्रिय करने में लगा है तो जी-23 लगातार गांधी परिवार के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है। इसे कांग्रेस नेतृत्व की कमजोरी ही कहा जायेगा कि गत पांच साल में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा नेता खोये हैं। इनमें अधिकतर युवा और वरिष्ठ चेहरों थे। राहुल गांधी की कोर टीम भी बिखर चुकी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह भाजपा के साथ हो लिए हैं।
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसके हाथ से राज्यों की सत्ता भी छिनती जा रही है। राष्ट्रीय स्तर के साथ ही प्रदेशों में भी उसके संगठन की हालत भी बहुत ख़राब है। उत्तर भारत के साथ ही कांग्रेस ने पूर्वोत्तर में भी लगातर पराजय का सामना किया है। किसी समय पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में से सात पर शासन करने वाली कांग्रेस का हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में भी सूपड़ा साफ हो गया। अगले साल चार पूर्वोत्तर राज्यों- त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मतलब कांग्रेस पर भाजपा के हावी होने की संभावना ज्यादा है।
गुजरात में तो इसी साल चुनाव हो रहे हैं। वहां पर भी नेतृत्व में मतभेद हैं। पटेल आरक्षण से निकले गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और युवा नेता हार्दिक पटेल ने प्रदेश नेतृत्व पर सहयोग न करने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं उन्होंने तो पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर भी निराशा जाहिर कर दी थी।
बिहार में भी कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है। बिहार इकाई पर मदन मोहन झा के इस्तीफे के बाद वहां असमंजस की स्थिति है। यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटों पर क्यों सिमट गई? झारखंड, जम्मू और महाराष्ट्र में भी असंतोष बढ़ रहा है।
कांग्रेस के सामने यह भी चुनौती है कि जहाँ वह मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने की रणनीति बना रही है वहीं कांग्रेस से अलग हटकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव भाजपा और कांग्रेस से अलग तीसरे मोर्चे के लिए ममता बनर्जी, शरद पवार, केजरीवाल से मिल चुके हैं।
चरण सिंह राजपूत
लेकक वरिष्ठ पत्रकार व स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।