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How to celebrate Eid with simplicity?
ईद निहायत सादगी के साथ लेकिन पुर-वक़ार ढंग से कैसे मनाई जाती है (How is Eid celebrated with great simplicity but in a virtuous manner), यह बात मेरे वालिद हज़रत मौलाना अब्दुस्समद ( रह.) ने बचपन में दो कहानियों के ज़रिया मुझे समझाई थी।
पहली कहानी सुप्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद की मशहूर कहानी “ईदगाह“ है जो हिन्दी/उर्दू के कम-ओ-बेश सभी पाठकों ने पढ़ी होगी. इस कहानी में किस तरह एक ग़रीब अनाथ बच्चा, अपनी बूढ़ी नानी का नवासा ‘हामिद’ बिना किसी हीन-भावना में मुब्तला हुए निहायत पुर-वक़ार ढंग से, आत्मसम्मान के साथ निहायत सादगी से ईद की नमाज़ अदा करने के लिए ईदगाह जाता है और अपने दौलतमंद दोस्तों को अपनी पुर-वक़ार सादगी से मरऊब (प्रभावित) कर देता है।
दूसरी कहानी एक तारीख़ी वाक़ेआ है जिस में यह बताया गया है कि किस तरह बादशाह-ए-वक़्त अमीरुल्मोमिनीन हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाह-अलैह और उनके बच्चे पैवंद लगे हुए पुराने साफ़-सुथरे लिबास पहन कर ईदगाह जा कर ईद की नमाज़ अदा करते हैं।
बचपन में वालिद बुज़ुर्गवार ( पिताश्री) की इस तालीम ने मेरे दिलो-दिमाग़ पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि फिर मेरे नज़दीक ईद के मौक़े पर नए कपड़ों की कोई अहमियत बाक़ी नहीं रही।
दरअसल ईद की सच्ची ख़ुशी (Eid's true happiness) तो इस बात के अहसास में पोशीदा है कि अल्लाह तआला के बंदे ने अल्लाह तआला की रज़ा के लिए अल्लाह तआला की दी हुई तौफ़ीक़ और रूहानी कु़व्वत से रमज़ान का रोज़ा मुकम्मल किया। ईद की नमाज़ (Eid prayer) के ज़रिया बंदा इसी जज़्बे के तहत अल्लाह-रब्बुल-इज़्ज़त का शुक्रिया अदा करता है और उससे उसकी रहमत और मग़्फ़िरत का तलबगार बनता है।
पैग़म्बर-ए-इस्लाम ﷺ ने फ़रमाया कि, “रोज़ादार के लिए दो खुशियाँ हैं – एक जब वह इफ़्तार करता है दूसरी ख़ुशी उसको उस वक़्त मिलेगी जब वह अपने रब से मिलेगा।” और ईद की ख़ुशी इसी की झलक है.
अब जबकि कोरोना वायरस के ख़तरों के बीच रमज़ान (Ramadan amidst the dangers of corona virus) का दूसरा अशरा गुज़र रहा है, विभिन्न इस्लामी विद्वानों एंव संगठनों के द्वारा यह अपील की जा रही है कि COVID-19 महामारी की रोकथाम के पेश-ए-नज़र लॉक-डाउन और सोशल- डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए इस वर्ष ईद निहायत सादगी से मनाई जाये और अगर ईद की ख़रीदारी के लिए लॉक-डॉन में कुछ ढील भी दी जाती है तो हरगिज़-हरगिज़ ईद की ख़रीदारी के नाम पर बाज़ार में निकलने की कोशिश न की जाये। हर समझदार मुसलमान इस अपील का स्वागत करेगा।
जब CORONA COVID-19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए हम अपनी सारी इबादात अपने घरों में ही अदा कर रहे हैं, मस्जिद में नमाज़-बा-जमाअत/तरावीह, जुमे की नमाज़ और ईद की नमाज़ भी हम पर साक़ित हो चुकी है तो फिर ईद भी हम निहायत सादगी के साथ क्यूँ न मनायें ?
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दरअसल इस्लाम एक निहायत ही सादगी पसंद मज़हब और दीन-ए-फ़ितरत है। यहाँ हर क़िस्म की तक़रीबात और ख़ुशी के मौक़े पर भी सादगी बरतने की तालीम दी गयी है। ख़ुद पैग़म्बर-ए-इस्लाम ﷺ हर मामले में सादगी से ही पेश आते और सादगी को ही पसंद फ़रमाते थे, यही हाल तमाम असहाब-ए-रसूल और बुज़ुर्गान-ए-दीन का रहा।
दीगर मज़ाहिब के सूफ़ी-संतों के यहाँ भी सादगी की बड़ी अहमियत रही है। आज अगर किसी भी सतह पर मुसलामानों की एक बड़ी तादाद इस फ़ितरी सादगी से दूर हो रही है और ईद से लेकर शादी ब्याह तक ग़ैर-ज़रूरी नमूद-ओ-नुमाइश का शिकार हो रही है तो इसकी वजह अपने मज़हब से महज़ रस्मी लगाओ और मज़हब की हक़ीक़ी/वास्तविक तालीमात से दूरी है। चलिए कोरोना वायरस ने कम अज़ कम हमारी ज़िंदगी के रुख़ को फ़ित्री सादगी की तरफ़ मोड़ तो दिया।
अतः ईद मनाने के लिए नये कपड़ों की ख़रीदारी और लम्बे-चौड़े मार्केटिंग की ज़रूरत नहीं है। हमारे पास जो भी लिबास मौजूद है उसमें जो मुझे ज़्यादा पसंद है उसी को पहन लें, ईदगाह तो जाना नहीं है क्यूंकि वक़्त-ओ-हालात को मद्देनज़र रखते हुए लॉक-डॉन और सोशल- डिस्टेंसिंग का पालन ज़रूरी है। इसलिए घर में ही शुक्राने की नमाज़ अदा करें और देश-दुनिया में अमन और शान्ति के लिए दुआ करें ! कोरोना वायरस के ख़ातमे और इसके बीमारों की शफ़ायाबी की दुआ मांगें! ज़्यादा से ज़्यादा बेकस, लाचार, ग़रीब और ज़रूरतमंद लोगों तक अपनी मदद पहुँचाने की कोशिश करें ! इसी से ईद की सच्ची ख़ुशी हासिल होगी !
मोहम्मद ख़ुर्शीद अकरम सोज़