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जाति को नष्ट कैसे करें ?

मुसलमानों को यहां से देखो

Jagadishwar Chaturvedi जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक कोलकाता विश्वविद्यालय के अवकाशप्राप्त प्रोफेसर व जवाहर लाल नेहरूविश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

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How to destroy caste?

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जितने बड़े पैमाने हम जाति-जाति चिल्लाते रहते हैं, उसकी तुलना में यदि आधा समय भी नागरिक चेतना अर्जित करने, जाति से नागरिक के रूप में तब्दील करने पर खर्च किया होता तो भारत का नक्शा ही बदल जाता।

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सामाजिक विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है जाति चेतना

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जाति चेतना सामाजिक विकास में सबसे बड़ा रोड़ा है। दूसरा बड़ा रोड़ा है झूठ। जातिवादी सबसे अधिक झूठ बोलते हैं। क्योंकि जातिप्रथा के सभी तर्क झूठ पर टिके हैं।

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जब तक आप झूठ से बंधे हैं, जाति खत्म नहीं होगी।

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असत्य चेतना और जाति चेतना में गहरा संबंध है, ये दोनों जातिवाद का परिवेश बनाते हैं।

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जाति पर संवाद करने के लिए असत्य चेतना से बाहर निकलकर ही बातें हो सकती हैं, उसमें रहकर जाति पर संवाद संभव नहीं है। यदि आपके पास सरकार है, सत्ता के सभी तंत्र हैं, लेकिन लोकतांत्रिक चेतना का अभाव है, पूंजीवाद से लड़ने या उसे खत्म करने की समझ और संघर्ष योजना नहीं है तो तय मानो दलित होकर समूची सरकार भी यदि आपके कब्जे में है तब भी जाति को नष्ट नहीं कर सकते।

जाति खत्म करने का अर्थ क्या है?

जाति खत्म करने का अर्थ यह नहीं है कि दलीय पदों से लेकर न्यायाधीश के पदों तक दलितों को बिठा दिया जाय, यदि ऐसा करने से जाति खत्म हो जाती तो भारत में कभी की जाति खत्म हो गयी होती।

हम जाति चाहते हैं। जातिचेतना पसंद करते हैं। उससे भी बड़ी बात असत्य बोलना और असत्य आचरण करते हैं। वैसी अवस्था में जाति खत्म होने से रही।

क्या भारत के मार्क्सवादियों ने जाति को समझा?

एक अन्य असत्य समझ यह है कि भारत के मार्क्सवादी जाति को समझ नहीं पाए, जाति के खिलाफ लड़ नहीं पाए, कम्युनिस्ट पार्टियों में दलितों का प्रतिनिधित्व नहीं है।

दल में दलितों के प्रतिनिधित्व का सवाल नहीं है, सवाल नजरिए का है। दक्षिण अफ्रीका में तो अश्वेतों के पास सब कुछ था इसके बावजूद वे रंगभेद, नस्लभेद से समाज को मुक्त नहीं कर पाए। ऐसा क्यों हुआ?

बंगाल-केरल में कम्युनिस्ट दलों में गैर दलितों की लीडरशिप रही है, लेकिन जातिवाद वहां पर नहीं है। इसके विपरीत यूपी आदि में दलों में जाति हावी है और नीचे जाति व्यवस्था हावी है, जबकि ये दोनों ही राज्य भारत के हैं।

कम्युनिस्ट जहां सांगठनिक तौर पर मजबूत हैं वहां पर जाति की समस्या नहीं है, क्योंकि वे सत्य बोलते हैं, सत्य की हिमायत करते हैं। सत्य यह है हम सब मनुष्य हैं और सब समान हैं।

लेकिन यह चीज आचरण से गायब है।

आम्बेडकर ने लिखा -

"मैंने जाति-व्यवस्था समाप्त करने के उपाय और साधनों से संबंधित प्रश्न पर जोर इसलिए दिया है, क्योंकि मेरे लिए आदर्श से अवगत होने के अपेक्षाकृत उचित उपायों और साधनों की जानकारी प्राप्त कर लेना अधिक महत्वपूर्ण है। यदि आपको वास्तविक उपाय और साधनों की जानकारी नहीं है तो आपके सभी प्रयास निष्फल रहेंगे।"

मौजूदा दौर में दलित-दलित, मनु-मनु की गुहार लगाने वाले जाति से मुक्त होने के उपाय और साधन नहीं जानते। वे असत्य के जाल से मुक्त होकर आचरण नहीं कर पाते। फलत: जाति से लड़ने के बावजूद जातिवाद के जाल में फंसे रहते हैं।

जाति का पूरा तंत्र असत्य पर टिका है। इसके अलावा जाति का हिंदू धर्म की गलत समझ के साथ गहरा संबंध है। हिंदू धर्म माने मूर्ति पूजा, उपासना नहीं है।

भीमराव आम्बेडकर ने धर्म के बारे में कहा - "यह कहा जाता है कि धर्म उस समय तक अच्छा होता है, जब वह टकसाल से ताजा-ताजा निकलता है। परंतु हिंदू धर्म तो प्रारंभ से ही खोटा सिक्का जैसा रहा है। समाज के हिन्दू आदर्श ने जैसा कि हिन्दू धर्म द्वारा निर्धारित किया गया है, हिन्दू समाज पर सबसे अधिक भ्रष्ट करने वाले तथा विकृत करने वाले प्रभाव के रूप में काम किया है। उसका स्वरूप और तत्व नीत्शेवादी है।

नीत्शे के जन्म लेने से बहुत पहले ही मनु ने उस सिद्धांत की घोषणा कर दी थी, जिसका प्रचार करने का नीत्शे ने प्रयास किया। यह एक ऐसा धर्म है, जिसका अभीष्ट स्वतंत्रता, समानता और भातृत्व की स्थापना करना नहीं है।"

इसी क्रम में पंडित नेहरू और गांधी के धर्म संबंधी विचार महत्वपूर्ण हैं।

हिंदू धर्म के बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लिखा -"हिंदुस्तानी संस्कृति को हिन्दू संस्कृति कहना एक सरासर ग़लतफ़हमी फैलाने वाली बात है।"

हिन्दू धर्म क्या है ? इसके बारे में हमें गांधीजी की बात पर गौर करना चाहिए। गांधी जी ने हिन्दू धर्म की परिभाषा (definition of hinduism) देते हुए लिखा- "अगर मुझसे हिंदू-मत की परिभाषा देने को कहा जाय,तो मैं सिर्फ़ यही कहूँगा कि यह 'यह सिर्फ अहिंसात्मक साधनों से सत्य की खोज है'। आदमी चाहे ईश्वर में विश्वास न रखे, फिर भी वह अपने को हिंदू कह सकता है। हिंदू-धर्म सत्य की अनथक खोज है... हिंदू धर्म सत्य को मानने वाला धर्म है। सत्य ही ईश्वर है। हम सब इस बात से परिचित हैं कि ईश्वर से इंकार किया गया है, लेकिन हमने सत्य से कभी इन्कार नहीं किया है।"

कहने का आशय यह कि जाति को नष्ट करने के लिए सत्य बोलना और सत्य के साथ खड़ा होना सीखें।

जगदीश्वर चतुर्वेदी

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