कांग्रेस को कमजोर कर भाजपा से कैसे लड़ेंगी ममता बनर्जी?
How will Mamata Banerjee fight the BJP by weakening the Congress?
कांग्रेस को कमजोर कर क्या देश में वैकल्पिक सियासत खड़ी हो सकती है?- यह सवाल अचानक महत्वपूर्ण हो गया है। अगर इसका जवाब 'हां' है तो ममता बनर्जी सही दिशा में कदम उठा रही हैं। और, अगर इसका जवाब 'ना' है तो ममता गलत दिशा में जा रही हैं।
How will the opposition get stronger and bigger?
विपक्ष मजबूत और बड़ा कैसे होगा?जब देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के जनाधार में सेंध लगेगी, जब भाजपा से उसके प्रदेश राजनीतिक रूप से छीने जाने लगेंगे। इसके लिए वैचारिक आधार पर और जमीनी स्तर पर एक साथ भाजपा के समांतर सक्रियता बढ़ाने की जरूरत है। आंदोलन खड़ा करना ही रास्ता है।
Movement Creates Choice - Why Movement?
आंदोलन पैदा करता है विकल्प- आंदोलन क्यों? क्योंकि आंदोलन जोड़ता है, तोड़ता नहीं। आंदोलन ही किसी सरकार को विफल साबित करता आया है। जेपी आंदोलन से इंदिरा सरकार हिली थी तो अन्ना आंदोलन से मनमोहन सरकार। एक से गैर कांग्रेसवाद (non congressism) का युग शुरू हुआ था तो दूसरे ने गैरकांग्रेसवाद को स्थापित कर दिखाया। केजरीवाल सरकार गैर कांग्रेसवाद का बाय प्रोडक्ट कही जा सकती है। अब आगे क्या?
गैर भाजपावाद का नारा 2019 में परवान नहीं चढ़ पाया और 2024 तक भी ऐसा हो सकेगा, इसके आसार नजर नहीं आते। गैर भाजपावाद की सोच ही अभी मूर्तरूप नहीं ले पाई है तो इसके परवान चढ़ने का प्रश्न कहां उठता है? प्रशांत किशोर का विश्लेषण (Analysis of Prashant Kishor) बिल्कुल सही है कि अगले कई दशक तक भाजपा कहीं नहीं जा रही है। हालांकि इस विश्लेषण का मतलब उसका सत्ता में बने रहना भी कतई नहीं है। फिर भी इसका मतलब भाजपा का सत्ता से बाहर हो जाना भी नहीं है। यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि विपक्ष की सियासत कैसी रहती है।
non-Congressism won in Bengal
बंगाल में गैर भाजपावाद नहीं गैरकांग्रेसवाद जीता-गैर भाजपावाद की सोच (Non-BJPism Thinking) क्या पश्चिम बंगाल में परवान चढ़ी थी? जो लोग सियासत को समझते हैं वे जानते हैं कि ऐसा नहीं है। बंगाल में किसकी जीत हुई? सच यह है कि जीत गैर कांग्रेसवाद की हुई। भाजपा की ताकत तो वास्तव में बढ़ी है। कांग्रेस और लेफ्ट साफ हो गये, जो कभी गैरकांग्रेसवाद से लड़ाई में अक्सर एक-दूसरे के साथ हुआ करते थे। हालांकि ऐसा दिखता जरूर है कि बंगाल में जो चुनाव नतीजे सामने आए वह भाजपा से लड़ाई के नाम पर ही आए।
हास्यास्पद बात यह रही कि खुद कांग्रेस और लेफ्ट गैर कांग्रेसवाद की सियासत का औजार बन गए।
Understand the meaning of Mamata Banerjee's Delhi visits
अब ममता बनर्जी की दिल्ली यात्राओं के मायने समझें। ममता बनर्जी राष्ट्रीय सियासत में भी उम्मीद कर रही हैं कि कांग्रेस उसी भूमिका में रहे जिस भूमिका में बंगाल में दिखी थी। यानी बकरा बनकर हलाल हो कांग्रेस और उसका मीट भाजपा से 'लड़ने वाले योद्धा' खाएं।
क्या कांग्रेस बंगाल के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भी बकरा बनने के लिए तैयार होगी?
सोनिया गांधी से ममता बनर्जी की मुलाकात (Mamata Banerjee's meeting with Sonia Gandhi) नहीं होने को इसी पृष्ठभूमि में देखे जाने की जरूरत है। ममता ने खीज दिखलाई। फिर भी कांग्रेस ने बुरा नहीं माना तो इसका मतलब यह है कि कांग्रेस के तेवर देश को 'कांग्रेसमुक्त भारत' बनाने की कोशिश और विचार से लड़ने की है।
भाजपा के हाथों सियासी रूप से कत्ल होना कांग्रेस को मंजूर है लेकिन वह अपनी ही पैदाइश तृणमूल कांग्रेस के हाथों जिबह होने के लिए तैयार नहीं है।
Mamta Banerjee can learn from Tejashwi Yadav-Akhilesh Yadav
तेजस्वी यादव -अखिलेश यादव से सीख ले सकती हैं ममता बनर्जी- ममता बनर्जी को तेजस्वी और अखिलेश यादव से सीख लेनी चाहिए। दोनों दलों की सियासत में भाजपा के मुकाबले गैर कांग्रेसवाद कभी हावी नहीं रहा। यूपी में पिछला चुनाव अखिलेश की सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके ही हारा था। उसके बाद भी कांग्रेस से दूरी तो बढ़ी, लेकिन दुश्मनी हुई हो ऐसा नहीं दिखता। बिहार में तेजस्वी यादव ने नुकसान झेलकर भी कांग्रेस के साथ मजबूत तरीके से चुनाव लड़ा। एक सोच है कि अगर ओवैसी फैक्टर नहीं होता तो तेजस्वी बिहार जीत लेते।
क्या ममता बनर्जी राष्ट्रीय स्तर पर गैरकांग्रेसवाद की सियासत में असदुद्दीन ओवैसी होने जा रही हैं जो दक्षिणपंथी सियासत के लिए 'जीवनदान' साबित होंगी? राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना गैर कांग्रेसवाद को बढ़ावा देना है और ऐसा करके राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प खड़ा नहीं किया जा सकता।
आज भी अखिलेश यादव कांग्रेस को बकरा बनाने की नहीं सोचते। तेजस्वी की भावी योजना में गैर कांग्रेसवाद नहीं है। धुर दक्षिणपंथी उद्धव ठाकरे की शिवसेना भी गैर कांग्रेसवाद को खारिज करने वाली सियासत कर रहे हैं। एनसीपी नेता शरद पवार बहुत पहले मान चुके हैं कि कांग्रेस विरोध की सियासत वे भूल चुके हैं और पहले उन्होंने जो कुछ किया वह सही नहीं था।
Why doesn't Mamta give edge to the farmers' movement?
किसान आंदोलन को धार क्यों नहीं देतीं ममता?-ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में सूत्रधार की भूमिका निभा सकती हैं मगर ऐसा कांग्रेस को कमजोर करने की सियासत करते हुए नहीं हो सकता। एक टांग से बंगाल जीतने के बाद दोनों टांगों से देश जीतने की महत्वाकांक्षा सही है। मगर, इस महत्वाकांक्षा को मजबूत करने के लिए ममता को देशव्यापी आंदोलन का नेतृत्व करना होगा। जाहिर है बंगाल से बाहर निकलना होगा।
ममता बनर्जी चाहें तो किसान आंदोलन को धार दे सकती हैं। वह चाहें तो महंगाई पर देश में आंदोलन का नेतृत्व कर सकती हैं। वह चाहें तो पेगासस और केंद्र राज्य संबंध जैसे मुद्दों पर भी देश की सियासत को एक-सूत्र में पिरो सकती हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ आवाज बुलंद करके भी वह नई पहल कर सकती हैं। निजीकरण और मजदूर विरोधी नीतियों पर भी ममता मुखर हो सकती हैं। मगर, इन मोर्चों पर वह सक्रिय नहीं हैं। अगर सियासत आंदोलन न होकर जोड़-तोड़ हो तो भाजपा और भाजपा का विकल्प बनने की कोशिश करने वाली पार्टी में फर्क ही क्या रह जाता है।
सही मायने में देखा जाए तो ममता बनर्जी भाजपा के बजाय कांग्रेस का विकल्प बनने के लिए अधिक छटपटाती दिख रही हैं। इस मकसद में अगर वह सफल होती हैं तो वह निश्चित रूप से भाजपा की मदद कर रही हैं जैसे असदुद्दीन ओवैसी को मिलने वाली सफलता से भाजपा को मदद मिल जाया करती है। न ओवैसी कभी मुसलमानों का नेतृत्व कर पाए हैं और न ही ममता बनर्जी कभी गैर भाजपावाद की सियासत का नेतृत्व कर पाएंगी।
प्रेम कुमार
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