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मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा, कल्लूरी पर करें कार्यवाही

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hastakshep
12 Sep 2020
बस्तर प्रकरण में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को राज्य सरकार ने दिया छह लाख रुपये मुआवजा

Human rights activists wrote a letter to the Chief Minister and said, take action on Kalluri

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रायपुर, 12 सितंबर 2020. हत्या के फर्जी मुकदमे से बरी होने और मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर राज्य शासन से मुआवजा पाने वाले सभी छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उम्मीद जाहिर की है कि उनकी तरह ही प्रताड़ित आदिवासियों और ऐसे सभी नागरिकों को, जो झूठे आरोपों में फंसाकर जेलों में डाले गए हैं, को शीघ्र इंसाफ मिलेगा।

उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को एक पत्र लिखकर तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी के खिलाफ कार्यवाही (Proceedings against IG SRP Kalluri) की भी मांग की है।

मुख्यमंत्री को लिखे पत्र को मीडिया के लिए आज यहां माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने जारी किया गया है।

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पत्र में मुआवजा राशि की प्राप्ति की सूचना देते हुए मुख्यमंत्री बघेल को सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग के निर्देशों का अनुपालन करने के लिए धन्यवाद दिया गया है और आशा जाहिर की गई है कि मानवाधिकार हनन से प्रताड़ित हजारों आदिवासियों और नागरिकों को भी न्याय मिलेगा।

अपने पत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रो. अर्चना प्रसाद, माकपा के छग राज्य सचिव संजय पराते व प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े साहित्यकार-बुद्धिजीवी विनीत तिवारी ने संयुक्त रूप से कहा है कि उन्हें शामलाल बघेल की हत्या के मामले में फंसाने की साजिश में तत्कालीन आईजी कल्लूरी की भूमिका रही है, इसलिए उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जांच करवाई जाए। इन

कार्यकर्ताओं ने अपने पत्र में जोर देकर कहा है कि अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।

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"हम यह भी आशा करते हैं कि इस तरह के झूठे आरोप लगाकर हमें परेशान करने वाले पुलिस अधिकारियों की गहराई से जांच और कार्यवाही होगी। यह मामला पूरी तरह से झूठी और विद्वेष की भावना से की गई एफआईआर का था, जिससे हमें तकलीफ पहुंचाई जा सके और इस पूरी साज़िश की पृष्ठभूमि में तत्कालीन पुलिस आईजी एसआरपी कल्लूरी की अहम भूमिका रही है। हमारा अनुरोध है कि उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जाँच करवाई जाए। अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।"

कार्यकर्ताओं ने बताया है कि अप्रैल 2016 में नंदिनी सुंदर के नेतृत्व में 6 सदस्यीय शोध दल ने बस्तर के अंदरूनी आदिवासी इलाकों का दौरा किया था और भाजपा प्रायोजित सलवा जुडूम में आदिवासियों पर हो रहे दमन और उनके मानवाधिकारों के हनन की सच्चाई को सामने लाया था। जैसे ही तत्कालीन भाजपा सरकार को इस शोध दल के दौरे का पता चला, बस्तर पुलिस द्वारा उनके पुतले जलाए गए थे और तत्कालीन आईजी एसआरपी कल्लूरी द्वारा "अबकी बार बस्तर में घुसने पर पत्थरों से मारे जाने" की धमकी दी गई थी। 5 नवम्बर 2016 को सुकमा जिले के नामा गांव के शामनाथ बघेल नामक किसी व्यक्ति की हत्या के आरोप में इस शोध दल के सभी छह सदस्यों के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं, आर्म्स एक्ट और यूएपीए के तहत फर्जी मुकदमा गढ़ा गया था। तब सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण से ही इस दल के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लग पाई थी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही वर्ष 2019 में एक एसआईटी जांच में इन्हें निर्दोष पाया गया था और मुकदमा वापस लिया गया था।
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उल्लेखनीय है कि मानवाधिकार हनन के इस मामले में राष्ट्रीय आयोग द्वारा समन किये जाने के बावजूद कल्लूरी आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए थे। पिछले माह ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को इस प्रकरण में पीड़ितों को हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए एक-एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश जारी किया था।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते सहित इन सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने मुआवजे के रूप में राज्य शासन से प्राप्त इस राशि का उपयोग आदिवासी क्षेत्रों में जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे लोगों और आंदोलनों की मदद के लिए करने का फैसला किया है।

मुख्यमंत्री को लिखा गया पत्र इस प्रकार है :
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प्रति,

श्री भूपेश बघेल,

मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़

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रायपुर।

विषय : धन्यवाद एवं अनुरोध।

प्रिय भूपेश बघेल जी,

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हम आपको यह पत्र धन्यवाद देने के लिए लिख रहे हैं कि हमारे प्रकरण में न्याय सुनिश्चित किया जा सका। जैसा कि आप जानते हैं कि शामनाथ बघेल की हत्या के प्रकरण में हमारे नाम पुलिस ने प्राथमिकी में दर्ज कर लिए थे और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों से हुई जांच के बाद हमारे नाम चार्जशीट में से हटा लिए गए थे।

हम पर ऐसे झूठे और विद्वेषपूर्ण आरोप लगाए जाने से हमें राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार हमें हुई मानसिक प्रताड़ना के लिए, हमारी मानहानि के लिए और हमारे मानव अधिकारों की अवहेलना के लिए मुआवजे के तौर पर  ₹100000 (रुपये एक लाख ) हममें से प्रत्येक को प्राप्त हो चुके हैं। इसके लिए हम आपके नेतृत्व की छत्तीसगढ़ सरकार के आभारी हैं कि आपने सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के इन निर्देशों का अनुपालन किया। हम उम्मीद करते हैं कि हजारों निर्दोष आदिवासी और ऐसे सभी नागरिक जो झूठे आरोपों में फंसा कर जेलों में डाले गए हैं, उन्हें भी शीघ्र इंसाफ मिलेगा।

हम यह भी आशा करते हैं कि इस तरह के झूठे आरोप लगाकर हमें परेशान करने वाले पुलिस अधिकारियों की गहराई से जांच और कार्यवाही होगी। यह मामला पूरी तरह से झूठी और विद्वेष की भावना से की गई एफआईआर का था जिससे हमें तकलीफ पहुंचाई जा सके और इस पूरी साज़िश की पृष्ठभूमि में तत्कालीन पुलिस आईजी एसआरपी कल्लूरी की अहम भूमिका रही है।

हमारा अनुरोध है कि उनके कार्यकाल में बस्तर में हुई मुठभेड़ों और गिरफ्तारियों आदि की सघन जाँच करवाई जाए। अपने पद का दुरुपयोग करने वाले ऐसे अधिकारियों को पूर्ववत सामान्य तरह से काम जारी रखने नहीं दिया जाना चाहिए।

पुनः धन्यवाद।

नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, मंजू कोवासी, विनीत तिवारी, संजय पराते, मंगला राम कर्मा

 

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