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अडानी भी इंडिया नहीं तो कौन?

दिल्ली दंगा : एक पूर्व-घोषित नरसंहार का रोजनामचा, गुजरात-2002 की पुनरावृत्ति

Rajendra Sharma राजेंद्र शर्मा, लेखक वरिष्ठ पत्रकार व हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं। वह लोकलहर के संपादक हैं।

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भागवत जी ने तो पहले ही चेताया था। नेगेटेविटी हटाओ, पॉजिटिविटी लाओ। पर बेचारे भागवत जी की सुनता ही कौन है। उल्टे एंटी-नेशनलों ने देश में मार-तमाम दुनिया भर की नेगेटिविटी फैला दी। वर्ना कम से कम यह नहीं दिन नहीं देखना पड़ता कि हमारे अडानी जी पर हमला हो गया, विदेशी हमला हो गया, वह भी जबर्दस्त टाइप का और अडानी जी को बचाने की फिक्र करने के बजाए, इस देश में जिसे देखो वही इसकी शिकायत करता मिल जाएगा कि अडानी ने खुद को इंडिया कैसे बता दिया! यह कोई नहीं पूछ रहा कि हिंडनबर्ग को अडानी जी के खातों में फालतू में ताका-झांकी करने की क्या जरूरत थी? उल्टे सब अडानी जी को ही सिखा रहे हैं कि उन्हें तिरंगे की ओट लेकर ठगी-वगी के इल्जामों से बचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी। आत्मरक्षा तो हरेक इंसान का नैसर्गिग अधिकार है, तिरंगा काम आए तो और धर्म काम आए तो। फिर अडानी जी के आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने पर, ये आपत्ति कैसे सुनी जा रही है। और अमरीकी कंपनी किस मुंह से अडानी जी को ठगी के लिए तिरंगे की ओट लेने का ताना मार सकती है, जबकि उनके यहां तो आत्मरक्षा के लिए गोली तक मारने की इजाजत है।

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हद्द तो यह है कि मोदी जी के विरोधियों ने, इसमें भी मोदी जी के विरोध का मौका निकाल ही लिया। अडानी ने खुद को इंडिया कैसे बता दिया, इसका जवाब भी विरोधियों को मोदी जी से चाहिए। जैसे मोदी जी ने अमृत काल के पहले गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कारों की ताजा कड़ी में, अगले को अडानी इज इंडिया पुरस्कार दिया हो!

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नहीं-नहीं, कोई यह नहीं कह रहा है कि मोदी जी ने अडानी को कुछ नहीं दिया है। दिया है, मोदी जी ने बहुत कुछ दिया है। मोदी जी उदार प्रकृति के दानी हैं, तो उन्होंने हमेशा मांगने वाले से बढ़कर दिया है और तब तक दिया है जब तब कि हाथ खाली ही नहीं हो गया। पोर्ट दिये, एअर पोर्ट दिये। बिजली दी, कोयला खदानें दी। फल-सब्जी के भंडार दिए, अनाज के भंडार दिए। रेल दिया, तेल दिया। सब दिया और सब के ऊपर से अब तो एनडीटीवी भी दिया। पर अडानी इज इंडिया का तमगा आठ साल में एक बार भी नहीं दिया। फिर कैसे विरोधी मोदी जी से जवाब मांग रहे हैं, जबकि आरोप लगाए हैं किसी हिंडनबर्ग ने और आरोप लगे हैं गौतम अडानी पर।

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पीएम बनने से पहले मोदी जी दोस्ती यारी-दोस्ती में अडानी के हवाई जहाजों में सवारी कर लिया करते थे, तो क्या अडानी पर लगे इल्जामों के छींटे उनके झक्क सफेद कुर्ते तक आएंगे, जो उन्हें जवाब देना पड़े! वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करने वाले इस देश के पीएम के उदारता से लेने पर तो फिर भी सवाल उठ सकते हैं, पर उदारता से देना तो गुनाह हर्गिज नहीं हो सकता है। फिर विपक्ष वाले संसद कैसे ठप्प किए हुए हैं और वह भी इसकी जिद कर के कि पीएम के मुंह से ही जवाब सुनेंगे। निर्मला जी ने बता तो दिया कि किसी एक कंपनी के उठने-गिरने का, इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था की सेहत पर असर नहीं पड़ता! विपक्ष वालों को और क्या सुनना है? अरबपति राष्ट्रवाद पर संघ की ट्रोल सेना का व्हाट्सएप्प प्रवचन, वह भी सीधे ब्रह्मा जी के मुख से! भूल जाइए!

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खैर! पक्ष-विपक्ष की खींच-तान को अगर हम भूल भी जाएं तब भी, पॉजिटिविटी का तकाजा भी तो कोई चीज है, उसे कैसे भूल जाएं! चलिए, बहस के लिए हम भी मान भी लेते हैं कि अडानी इज इंडिया नहीं हैं। तो फिर इंडिया कौन है? विरोधियों के पास कोई सकारात्मक विकल्प भी है या सिर्फ नेगेटिविटी ही फैलाएंगे? हां! तो बताएं, अडानी भी इंडिया नहीं, तो इंडिया कौन? अब प्लीज, एक सौ पैंतीस-सैंतीस करोड़ भारतवासी या आसेतु हिमालय टाइप के घिसे-पिटे जवाब मत दीजिएगा! ऐसे रटे-रटाए जवाब हिंदी के कक्षा दस तक के लेखों में ही ठीक लगते हैं।

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और हां! रामलला, राम मंदिर वगैरह, देश में वोट के लिए तो ठीक हैं, पर वर्ल्ड लेवल पर उन्हें इंडिया बनाइएगा, तो इंडिया की हंसी ही उड़वाइएगा। न्यूक्लिअर टाइम में धनुष-बाण ले हाथ! और हां नेहरू-गांधी टाइप, पुराने भारत वाले नाम तो खैर आउट ऑफ कोर्स ही मानकर चलिए। अशोक-अकबर टाइप भी। तो फिर है कोई और! कोई भी! इंडिया इज फलाना का दावा करने के लिए! ईमानदारी से कहिएगा, कोई और है क्या? जाहिर है कि नहीं। रही बात मोदी जी की तो उन्होंने तो पहले ही कह दिया है कि उन्हें इंडिया होने के झंझट से दूर ही रखा जाए। मोदी इज गुजरात हुए थे, उसकी तो अब तक बीबीसी वाले डॉक्यूमेंटरियां बनाए जा रहे हैं, इंडिया हो जाते तो भाई लोगों ने न जाने क्या-क्या बना दिया होता!

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वैसे भी इंडिया सेंत-मेंत में तो किसी के नाम हो नहीं जाएगा। इंडिया अपने नाम कराने के लिए बंदे को कुछ बड़ा कर के दिखाना पड़ता है, मामूली बड़ा नहीं, वाकई बड़ा। बड़ा, जैसे विश्व धनपतियों में अडानी का तीसरा नंबर। होने को टाटा-बिड़ला भी बड़े हुए, अम्बानी भी काफी बड़े हुए, पर उनमें से कोई कभी विश्व धनपतियों में तीसरे नंबर तक पहुंचा क्या? नहीं। पर अडानी जी पहुंचे और वह भी कोविड की महामारी के फौरन बाद, 2022 में! तीसरा नंबर बोले तो पदक विजेता। कांस्य हुआ तो क्या हुआ, पदक तो है। झंडा लेकर, पुरस्कार मंच पर चढ़ने का मौका तो है। राष्ट्र का गौरव बढ़ाया, पहली बार जिसने पुरस्कार मंच पर चढ़ने का मौका दिलाया, तो जो राष्ट्र के गौरव से करते हैं प्यार, अडानी जी को बचाने से कैसे करेंगे इंकार!

सिंपल टैस्ट है--जो राष्ट्र गौरव अडानी को बचाने से करें इंकार, एंटी-नेशनल हैं! राष्ट्रभक्त वही, जो अडानी को बचावे। गांठ की सारी लगानी पड़े तो हिचके नहीं, पर अडानी के डूबते शेयर को बाजार में तैरावे। दुनिया लाख ठगी के इल्जाम लगाए, उसे शुद्ध-पवित्र बतावे। जांच का ज्यादा ही शोर मचे तो अडानी यानी इंडिया के खिलाफ षड़यंत्र की जांच का जवाबी शोच मचावे। ‘अडानी भी नहीं तो इंडिया कौन’ के जवाबी सवाल से, सवाल करने वालों के मुंह बंद करावे।            

राजेंद्र शर्मा

अडानी मामला: मोदी सरकार की नींद उड़ चुकी है. संसद में राहुल गांधी | बीजेपी | बजट | hastakshep

If Adani is not India then who?

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