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देश को भ्रमित कर रही मोदी सरकार
Impact on the general public including farmers if the Electricity Amendment Bill-2020 is passed.
विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के मसौदे (Electricity Amendment Bill-2020 Draft) का विरोध किसान संगठनों व विद्युत कार्मिक संगठनों द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। इसी बीच केंद्रीय ऊर्जा मंत्री श्री आर के सिंह जी का यह कथन कि विद्युत सब्सिडी पूर्व की भांति लागू रहेगी, पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है।
ज्ञात हो कि वर्तमान व्यवस्था में औद्योगिक व वाणिज्यिक उपभोक्ताओं से अधिक दरों (क्रॉस सब्सिडी) पर विद्युत मूल्य वसूली कर सब्सिडी की भरपाई की जा रही है। आइये मंत्री जी के बयान पर अपने विचार वर्कर्स फ्रण्ट के साथ साझा करें।
ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि विद्युत कानून-1948 (Electrical Law - 1948) बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा विभिन्न क्षेत्रों सहित देश के समग्र विकास को ध्यान में रखकर बनाया गया था जिसमें विद्युत विभाग को सरकारों द्वारा 3% लाभ सुनिश्चित करने का प्रावधान भी किया गया था। सरकारों द्वारा अपना दायित्व निर्वहन न करने के कारण ही आज विद्युत विभाग हजारों करोड़ के घाटे में चला गया है। 1991 से शुरू किये गये आर्थिक सुधारों के क्रम में विद्युत संशोधन कानून-2003 लागू होने के बाद इस घाटे में बेहद तेजी से बृद्धि हुई है। कॉरपोरेट हित में 2003 की ही नीतियों को आक्रामक तरीके से विद्युत संशोधन विधेयक-2020 के द्वारा लागू करने का प्रयास है जिसके बाद किसानों व आम जनता को मिलने वाली बिजली अत्यधिक मंहगी हो जायेगी। ज्यों-ज्यों दवा की जा रही है बीमारी ठीक होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है, क्योंकि विद्युत सुधार कानून वर्ल्ड बैंक व एशियन डेवलपमेन्ट बैंक के दबाव में निजी निवेशकों के हित में बनाये/लागू किये जा रहे हैं।
आइये विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पारित होने पर किसानों सहित आम जनता पर पड़ने वाले प्रभाव को देखें-
प्राप्त रिपोर्टों केआधार पर विद्युत संशोधन विधेयक-2020 पारित होने पर बिजली की कीमत 10 रुपये प्रति यूनिट हो जायेगी। ऐसी स्थिति में 10 एचपी निजी नलकूप का वर्तमान 1700/- (सत्तरह सौ) रुपये प्रति माह का बिल मात्र 10 घंटे दैनिक उपयोग पर लगभग 24000/- (चौबीस हजार) रुपये प्रति माह हो जायेगा। इसके साथ ही आम उपभोक्ताओं पर भी विद्युत संशोधन विधेयक का दुष्प्रभाव पड़ेगा। बीपीएल कनेक्शन धारक 1 किलोवाट के उपभोक्ता का 100 यूनिट बिजली खर्च पर वर्तमान 367 रुपये का मासिक बिल लगभग 1100 रुपये हो जायेगा वहीं आम शहरी उपभोक्ता के 2 किलोवाट कनेक्शन पर 250 यूनिट बिजली खर्च पर मासिक बिल 1726 रुपये के स्थान पर 2856 रुपये हो जायेगा।
विद्युत उत्पादन क्षेत्र में निजीकरण का ही परिणाम है कि बिजली के लागत मूल्य में गुणात्मक वृद्धि हुई है। साथ ही उच्च दरों पर बिजली बेचने के बावजूद निजी विद्युत उत्पादक बैंकों से लिये ऋण भी वापस नहीं कर रहे हैं। ब्याज तो छोड़िये उनका लाखों करोड़ मूलधन भी बट्टे खाते में डाल दिया गया है। अब विद्युत वितरण क्षेत्र के निजीकरण से किसान, गरीब व आम उपभोक्ताओं को बेतहाशा बिजली मूल्य वृद्धि की मार भी झेलने को मजबूर होना पड़ेगा।
जहां तक सब्सिडी की बात है यदि राज्य सरकार किसानों को डीबीटी के माध्यम से भुगतान कर भी दे तो भी किसानों को पहले बिजली बिल का भुगतान करना होगा अन्यथा की स्थिति में कनेक्शन काट दिया जायेगा जोकि पहले से ही आर्थिक रूप से पीड़ित किसानों के लिए किसी कहर से कम नहीं होगा क्योंकि फसल बुवाई से पकने तक किसानों को बीज, खाद, सिंचाई, कीटनाशक इत्यादि में काफी पैसा लगाना होता है।
दूसरी ओर एक्सपर्ट्स की रिपोर्ट के अनुसार क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से राज्यों पर भी एक लाख करोड़ प्रति वर्ष से अधिक का भार पड़ेगा जिसे पूरा करना राज्यों के लिये भी दुरूह कार्य हो जायेगा।
ऐसी स्थिति में केंद्रीय ऊर्जामंत्री श्री आर के सिंह जी के बयान का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है। आप अवगत ही हैं कि ऊर्जामंत्री जी पूर्व में पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम, जिसके अंतर्गत प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी व मुख्यमंत्री जी का विशेष कार्यक्षेत्र गोरखपुर आता है, के निजीकरण की घोषणा, चोरी छिपे दिल्ली से लखनऊ आकर बिना मीडिया को बताये रात के अंधेरे में, करके वापस चले गए थे।
सच्चाई यह है कि पूरी कवायद चहेते पूंजीपति मित्रों के अकूत लाभ के लिये की जा रही है जिसका किसानों व आम जनता पर असहनीय बोझ पड़ेगा। वर्कर्स फ्रण्ट का मानना है कि राष्ट्रहित में किसानों के आंदोलन के समर्थन में खड़े होना इस समय की महत्वपूर्ण मांग है।
(दुर्गा प्रसाद)
उपाध्यक्ष, वर्कर्स फ्रंट,
अधिशासी अभियंता (सेवानिवृत्त)
उ0प्र0 पावर कारपोरेशन लिमिटेड
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अधिशासी अभियंता (सेवानिवृत्त)
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