आंदोलनजीविता : आंदोलन का प्रजातंत्र

hastakshep
13 Feb 2021
आंदोलनजीविता : आंदोलन का प्रजातंत्र

समाज में आंदोलन का महत्व | Importance of movement in society

आंदोलन समाज में सुधार के लिए प्रेरित करते हैं या नीतिगत निर्णयों के प्रति एक सशक्त असहमति व्यक्त करते हैं। मूल रूप से लोकतंत्र में आंदोलन का उद्गम इन्हीं कारणों पर आधारित होता है। समाज में हमेशा से आंदोलन होते रहे हैं। अगर हम इतिहास में देखें तो 7वीं शताब्दी से शुरू हुए धार्मिक आंदोलन 15 वीं शताब्दी तक चले। इस काल को भक्ति काल के रूप में जाना जाता है। भारत में विभिन्न काल में सामाजिक आंदोलन हुए जिसमें जीवन के मूल अधिकारों के लिए संघर्ष हुए। विश्व या भारत के समाज में आंदोलन का इतिहास (History of movement) हमेशा से रहा है कई प्रकार के आंदोलन घटित हुए हैं, जिन्होंने समाज को एक नई दिशा भी दी है। विचार निरंतर प्रगतिशील रहते हैं और यही प्रगतिशीलता आंदोलन के लिए एक प्रेरक तत्व बनती है।

विचार, असहमति और आंदोलन की सहजीविता | Consistency of thoughts, disagreements and agitation

A report from the Kisan Andolan Tikari Border 2

जिस समाज में विचार होगा, वहां असहमति भी होगी, आंदोलन भी होगा। विचार की प्रगतिशीलता को विराम देना एक तरह से समाज को एक विकृत अराजक राह पर जाने को बाध्य कर सकता है। इन परिस्थितियों में जो संघर्ष उत्पन्न होते हैं उन्होंने संस्कृति को विक्षिप्त ही किया है। आंदोलन एक सकारात्मक व सार्थक सामाजिक प्रयत्न है जिसको नकारा नहीं जा सकता। जो अवयव इस प्रकार के आंदोलनों के संयोजक या अग्रणी की भूमिका निभाते हुए एक वृहद लक्ष्य के लिए समाज को एकजुट करते हैं, उनको इतिहास में बड़े उद्देश्यों की सफलता के लिए याद रखा जाता है। समाज का अपना एक विवेक भी होता है, जो किसी भी घटना के पक्ष एवं विपक्ष का आकलन कर व्यक्ति को एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसके आधार पर व्यक्ति अपनी भागीदारी का सुनिश्चित करता है।

विश्व स्तर पर समाज अलग-अलग भूमि खंडों पर है, लेकिन समाज के कुछ बुनियादी कार्य समांतर रूप से हर समाज में व्याप्त हैं। किसी भी एक समाज में उठी हुई आवाज़ विश्व में अन्य समाजों को भी छूती है और कई बार इस प्रकार के विचारजनित आंदोलन विश्व के अन्य समाजों को भी प्रभावित करते हैं। प्रतिक्रिया स्वरूप उन समाजों से भी एक चेतना का उदय होता तो है और समर्थन की अभिव्यक्ति भी।

व्यापक आंदोलन में प्रारम्भिक प्रयत्न किसी क्षेत्र व वर्ग से होते हैं, जिन्हें समयानुरूप अन्य प्रभावित वर्ग भी स्वीकार कर आंदोलन में शामिल हो जाते हैं।

किसी भी आंदोलन को खारिज करने के लिए कई तरह के आक्षेप भी लगाए जाते रहे हैं। आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वालों की सैद्धांतिक विचारधारा, दृष्टिकोण व छवि को धूमिल किया जाता रहा है। लेकिन समय के साथ आंदोलन की वास्तविक उपलब्धि के बाद प्रतीक चिन्ह और यादगार प्रतिमाएं भी लगती रही हैं।

भारत भूमि आंदोलनों और बलिदानों की भूमि रही है...

पूरे विश्व में भारत की इस परंपरा को विलक्षण रूप से माना जाता है। भारत भूमि पर हुए स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन ने ही विश्व के एक बड़े लोकतंत्र की स्थापना की। 21वीं सदी में आते-आते संचार क्रांति एवं अन्य स्रोतों से उपलब्ध जानकारियों के कारण भारतीय समाज जो कि अपेक्षाकृत युवा समाज है, भी विश्व के अन्य विकसित देशों के समतुल्य अपने अधिकारों को प्रजातंत्र में आस्था लिए हुए राजनीतिक नेतृत्व से प्राप्त करना चाहता है।

Demonstrations in Germany protesting against restrictions imposed in COVID's name

वर्तमान राजनीतिक पद्धति ने नागरिकों की स्वतंत्रताओं के व्यवस्थित दमन, क्रोनी पूंजीवाद की अपार बढ़त, राज्य के संप्रदायीकरण, असहमति को अपराध बनाने की वृत्ति, संघवाद की अवहेलना और एकीकृत राष्ट्रीय संसाधनों और संस्थाओं को क्षीण करने की प्रक्रिया को एक तरह से अपना एकाधिकार बना लिया है, उसके परिणाम स्वरूप समाज में एक प्रकार की निराशा, अविश्वास व अधिकारों के हनन की आशंकाओं ने देश के एक बड़े वर्ग किसान, कामगार, मज़दूर, आदिवासी को प्रतिरोध की ओर धकेला है।

किसानों के आंदोलन अक्सर शोषण, पक्षपातपूर्ण नीतियों के कुचक्र के कारण ही उपजे हैं।

वर्तमान किसान आंदोलन किसी प्रकार की राजनीति से प्रेरित नहीं है, जैसा कि इसके बारे में प्रचारित किया जा रहा है। यह वस्तुत: किसान, कामगार, मज़दूर, आदिवासी वर्ग की मूलभूत समस्याओं और कठिनाइयों का कोई स्थाई समाधान न हो पाने कारण स्वयं स्फूर्त आंदोलन है जो शनैः-शनैः जन आंदोलन के रूप में उभर रहा है। इस आंदोलन में महिलाओं की विशेष भागीदारी भी बहुत संख्या में समानांतर स्पष्ट दिखाई दे रही है।

अगर तथ्यों पर गौर किया जाये तो भारत में किसानों के पास कृषि भूमि इकाई अत्यंत कम है। अधिकाश किसानों के पास 2 हेक्टेयर से भी कम कृषि भूमि है। किसानों का एक छोटा सा हिस्सा ही बड़े किसानों की श्रेणी में आता है।

किसानों का बड़ा वर्ग कृषि से पूरी लागत भी निकल पाने की स्थिति में नहीं है। जिसके कारण जीवन की जरूरी आवश्यक्ताओं को पूरा करने में असमर्थ है। वर्तमान नीतियों के चलते शोषित होने की उसकी आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं। वहीं सत्ता पक्ष कृषि में नए सुधारों को एक उज्ज्वल भविष्य के रूप में स्थापित करने के प्रयत्नों में अग्रसर है। कई प्रकार के प्रयत्नों और प्रचार से इस जन आंदोलन के रूप में उभरते हुए एकीकृत समाज की संगठित शक्ति को एक बार फिर विभाजन की ओर ले जाने के प्रयास भी समानांतर हो रहे हैं।

आन्दोलनों के इतिहास में किसानों, कामगारों, मज़दूर व आदिवासी वर्ग की भूमिका व योगदान रहा है। आधुनिक भारत में किसान आंदोलनों की पृष्ठभूमि स्वतंत्रता संग्राम से पहले की है। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में भी इन्हीं वर्गों की अहम भूमिका व बलिदानों को नकारा नहीं जा सकता।

आंदोलन क्यों किए जाते हैं ?

आंदोलन मूलतः बदलाव के लिए किए जाते हैं। धर्म मानव को नैतिकता की राह पर अग्रसर करता है। नैतिक बल समाज में व्याप्त विषमताओं को कम करने में अहम भूमिका निभाता है। धर्म के प्रेरक तत्व त्याग परोपकार दया सहयोग व प्रेम समाज को बांधने में सहायक होते हैं। लेकिन वर्तमान राजनीति ने सम्प्रदायीकरण को धर्म में परिभाषित कर दिया गया है। राजनीतिक धर्म को भूलने की चूक में लोकतंत्र ने हमेशा एक बड़ी कीमत चुकाई है।

RJD Bihar bandh in protest against CAA.

विभिन्न विचारधाराओं की असमानता के कारण इस आंदोलन को तिरस्कृत करने के लिए अलग-अलग उपमाओं के प्रयोग किए जा रहे हैं। लोकतंत्र जन भावनाओं के सम्मान को परिभाषित करता है, परंतु वर्तमान परिस्थितियां एक अलग तरीके से इस आंदोलन को परिभाषित करने में लगी हैं, जो कि प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत के विरुद्ध ही है।

नए सुधारों का उद्देश्य सत्ता द्वारा पूंजीपति व्यवस्था को पुनः स्थापित करने की ओर अग्रसर करता है। यह नई क्रूर पूंजीवादी व्यवस्था संविधान के नीति निर्देशक तत्वों को अप्रासंगिकता की ओर ले जा सकती है। मौलिक अधिकार भी बस एक अकादमिक बहस के रूप में प्रतीत होने की ओर अग्रसर हैं। यह साम्राज्यवाद और उपनिवेश का एक नया खतरा उत्पन्न होने जैसी स्थिति की ओर अग्रसर होना है जिसका सामना वैचारिक सुस्पष्टता से ही संभव है।

सारा मलिक  Sarah Malik

Sara Malik, सारा मलिक, लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
Sara Malik, सारा मलिक, लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।



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