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बिजली का निजीकरण - किसानों के लिए अभिशाप - पहुँच से बाहर होगी बिजली
बिजली के निजीकरण बिल के विरोध में - 01 जून को काला दिवस
किसान अर्थात देश की जीवन रेखा
1971 के बाद ग्रामीण विद्युतीकरण ने भारत के किसानों की तकदीर बदल दी। पहले भारत को खाद्यान्न के मामले में अमेरिका के आगे हाँथ पसारने को मजबूर होना पड़ता था। ग्रामीण विद्युतीकरण के जरिये बिजली बोर्डों ने गांव गांव तक घर घर तक बिजली पहुंचाई जिसके परिणामस्वरूप अब किसानों को सिंचाई के लिए आसमान की ओर नहीं निहारना पड़ता। गांव गांव तक बिजली पहुँचने से हम खाद्यान के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हो गए अपितु खाद्यान निर्यात भी कर रहे हैं। आज जब सारी दुनिया कोविड - 19 महामारी के संक्रमण से कराह रही है तब भारत के गोदामों में 50 मिलियन टन चावल और 27 मिलियन टन गेहूं भरा हुआ है। हमारे गोदाम लबालब भरे हैं और पूरे देश को खाना खिलाने में सक्षम हैं तो इसमें बिजली की बड़ी भूमिका है। केंद्र की सरकार इस संकट के दौर में भी जहाँ एक ओर बड़े कारपोरेट घरानों को मोटे कर्ज दे रही है वहीँ किसानों को उनके उत्पाद की लागत भी नहीं मिल पा रही है। बड़े कारपोरेट घरानों को दिए गए कर्ज एन पी ए के नाम पर माफ किये जा रहे हैं जबकि किसानों से पूरी वसूली की जाती है। बात बिजली की हो रही है तो बताते चले कि कारपोरेट के निजी क्षेत्र के बिजली घरों को बैंको द्वारा दिया गया छह लाख करोड़ रु डूब गया है जिसकी भरपाई के लिए आम उपभोक्ता की बिजली दरें बढाई जाती हैं।
निजीकरण के लिए इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट ) बिल 2020
केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट ) बिल 2020 का मसौदा इस महामारी के बीच 17 अप्रैल को जारी किया है और केंद्र सरकार इसे संसद के मानसून सत्र में जुलाई में पारित कराने पर तुली हुई है। यह बिल पारित हो जाने के बाद बिजली का नया क़ानून आ जायेगा जिसमे किसी भी उपभोक्ता यहां तक कि किसानों को भी बिजली न मुफ्त मिलेगी और न ही सस्ती मिलेगी। नए क़ानून के अनुसार बिजली दरों में मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी और किसानों सहित सभी घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी।
इसे ऐसे समझिये कि अभी किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है अथवा प्रति हार्स पावर के हिसाब से बहुत कम दरों पर बिजली मिलती है। देश में बिजली की औसत लागत रु 06 . 73 प्रति यूनिट है। बिजली के निजीकरण के बाद निजी कंपनी को एक्ट के अनुसार कम से कम 16 % मुनाफा लेने का अधिकार होगा , कंपनी चाहे तो और अधिक मुनाफा भी ले सकती है। बिजली की औसत लागत रु 06 . 73 प्रति यूनिट पर कम से कम 16 % मुनाफा जोड़ दें तो सब्सिडी समाप्त होने के बाद किसानों को रु 08 प्रति यूनिट से कम कीमत पर बिजली नहीं मिलेगी। एक किसान यदि साल भर में 8500 से 9000 यूनिट बिजली खर्च करता है तो उसे 72000 रु साल बिजली का बिल देना पडेगा जो 6000 रु प्रति माह आता है । बिजली की दरों में सब्सिडी समाप्त होने के बाद किसानों को बिजली का पूरा बिल देना होगा।
किसानो को झांसा देने के लिए सरकार यह कह रही है कि किसान पहले पूरा बिल भर दे फिर बाद में सरकार चाहे तो किसान के खाते में गैस सिलिण्डर की तरह बिजली की सब्सिडी की धनराशि उसके बैंक खाते में डाल सकती है।
यहाँ यह समझने की बात है कि पहले तो गरीब किसान को 6000 रु प्रति माह जमा करना होगा और यह बिल न जमा करने पर बिजली का निजीकरण होने के बाद निजी क्षेत्र की बिजली कंपनी आज की सरकारी कंपनी की तरह कोई रियायत नहीं देगी बल्कि उसकी बिजली तुरंत काट देगी। दूसरी बात यह कि सरकार किसान के बैंक खाते में सब्सिडी की धनराशि डालेगी भी तो उसमें कई महीने लग सकते है ऐसी स्थिति में किसान क्या कई महीने बिजली का बिल अदा किये बिना बिजली कट जाने पर अपनी फसल बचा पायेगा ?
निजीकरण से बेतहाशा बढ़ेंगी बिजली की दरें
देश में सबसे पहले 120 साल पहले मुम्बई में बिजली का निजीकरण हुआ था। मुम्बई में आज भी बिजली आपूर्ति निजी कंपनी अदानी और टाटा के पास है। मुम्बई में आम उपभोक्ता के लिए घरेलू बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट है। निजीकरण के बाद इन्हीं या इन जैसी निजी कम्पनियाँ को और शहरों और गांवों की बिजली आपूर्ति मिल जाएगी। अभी सरकारी कम्पनियाँ बड़े उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लागत से थोड़े अधिक दाम पर बिजली दे कर जो मुनाफा कमाती हैं उससे ही किसानों और घरेलू उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली दे रही हैं।
सरकारी कम्पनियाँ जहाँ जनकल्याण के लिए काम कर रही हैं वहीं निजी कम्पनियाँ मुनाफे के लिए काम करती हैं। अतः यह प्रचार भ्रामक है कि निजीकरण से बिजली सस्ती होगी। मुम्बई इसका ज्वलंत उदाहरण है।
बिजली उत्पादन के क्षेत्र में पहले ही कई निजी कम्पनियाँ काम कर रही हैं और मुनाफा लेकर सरकारी बिजली उत्पादन कंपनियों की तुलना में कहीं अधिक महंगी दरों पर बिजली बेंच रही हैं। नए बिल में यह प्राविधान भी किया जा रहा है कि निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादन कंपनियों को लागत के पूरे पैसे का भुगतान पहले सरकारी कंपनी करे तभी वह आम लोगों को देने के लिए बिजली ले पाएगी। यह भुगतान सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार एक नई अथॉरिटी बनाएगी।
इन सबके बाद फिर यह प्रचार करना कि निजीकरण के बाद बिजली सस्ती हो जाएगी पूरी तरह भ्रामक है और आम जनता से धोखा है।
बिजली का निजीकरण देश के लिए तो घातक है ही निजीकरण से सबसे बड़ी चोट किसानों पर पड़ने वाली है।
निजीकरण से बिजली की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होगी और बिजली किसान की पहुँच से दूर होती जाएगी।
यह किसानों के लिए बिजली के मौलिक अधिकार का हनन तो है ही साथ ही किसानों के आत्मसम्मान के साथ क्रूर मजाक भी है।
तो आइये अपने आर्थिक आधार और स्वाभिमान की इस लड़ाई में सहभागी बने - देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों के राष्ट्रव्यापी संघर्ष में साथ दें।
01 जून काला दिवस - देश के 15 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर निजीकरण के बिल के विरोध में पूरे दिन काली पट्टी बांधेंगे और विरोध सभा करेंगे। किसान भाइयों और आम उपभोक्ताओं से इस विरोध में सम्मिलित होकर सहभागिता करने की विनम्र अपील।
- विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र द्वारा जनहित में जारी विज्ञप्ति