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गंगा बेसिन में बाढ़ की घटनाओं में हो रही वृद्धि

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hastakshep
16 Nov 2021
जानिए क्यों सूखती हैं बारहमासी नदियां?

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Increase in incidence of floods in Ganga basin

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50 करोड़ से अधिक भारतीयों की जीवनरेखा है गंगा नदी

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नई दिल्ली, 16 नवंबर, 2021: गंगा नदी आधे अरब से अधिक भारतीयों की जीवनरेखा है। लेकिन, विभिन्न मानव गतिविधियों के कारण गंगा के प्रवाह में परिवर्तन आया है। एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि हाल के वर्षों में गंगा बेसिन में विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ की घटनाओं की आवृत्ति (Frequency of catastrophic landslides and flood events in the Ganges basin) बढ़ी है।

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यह अध्ययन भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

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इस अध्ययन में, गंगा की दो प्रमुख सहायक नदियों - भागीरथी और अलकनंदा, जो उत्तराखंड के देवप्रयाग में परस्पर विलीन होकर गंगा के रूप में जानी जाती हैं, पर ध्यान केंद्रित करते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में मानव गतिविधियों के नदी पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण (Analysis of river impacts of human activities in mountainous regions) किया गया है।

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अध्ययन इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि जलवायु परिवर्तन और बाँध बनाने जैसी मानव गतिविधियाँ गंगा को कैसे प्रभावित करती हैं।

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शोधकर्ताओं ने वर्ष 1971-2010 के दौरान ऊपरी गंगा बेसिन (यूजीबी) में स्थित मौसम केंद्रों से वर्षा, नदी में पानी के बहाव और तलछट भार के आंकड़ों की पड़ताल की है। उन्होंने वर्ष 1995 से पहले और 1995 के बाद के कालखंड को दो भागों में बाँटकर आँकड़ों का अध्ययन किया है।

अध्ययन में, वर्ष 1995 के बाद दोनों नदी घाटियों में बाढ़ की घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि होने का पता चला है।

इस संबंध में, आईआईएससी द्वारा जारी वक्तव्य में कहा गया है कि भागीरथी के निम्न प्रवाह और मध्य-स्तर के प्रवाह में परिवर्तन के लिए तीन प्रमुख बाँध - मनेरी, टिहरी और कोटेश्वर जिम्मेदार हो सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने, वर्ष 1995 से 2005 तक 10 वर्षों की अवधि में जोशीमठ मौसम केंद्र पर अलकनंदा बेसिन में पानी का दोगुना प्रवाह दर्ज किया है।

इस अध्ययन से पानी के प्रवाह की दर में भी वृद्धि होने का पता चलता है, जिसे चरम प्रवाह कहा जाता है।

इंटरडिसिप्लिनरी सेंटर फॉर वॉटर रिसर्च (आईसीडब्ल्यूएआर), आईआईएससी में पोस्ट डॉक्टोरल फेलो और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता सोमिल स्वर्णकर कहते हैं, “अलकनंदा बेसिन में; भागीरथी बेसिन के विपरीत, उच्च, सांख्यिकीय रूप से बढ़ती वर्षा की प्रवृत्ति देखी गई है। इनमें से अधिकांश रुझान अलकनंदा के प्रवाह वाले क्षेत्र में देखे गए हैं। इसीलिए, इन क्षेत्रों में चरम प्रवाह की मात्रा में भी वृद्धि देखी गई है।”

शोधकर्ताओं ने, जलवायु परिवर्तन के अलावा, हाल के वर्षों में (2010 के बाद) अलकनंदा क्षेत्र में बांधों के निर्माण से भी जल गतिविधि में बदलाव की बात कही है।

उनका कहना है कि बाँधों और जलाशयों ने नदियों द्वारा ले जाने वाले तलछट को प्रभावित किया है। जल प्रवाह में अचानक परिवर्तन के कारण गंगा के ऊपरी हिस्से में तलछट के जमाव से नीचे की ओर तलछट संरचना में भी परिवर्तन होता है।

इस अध्ययन से पता चलता है कि टिहरी बाँध ऊपरी गंगा बेसिन क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक बड़ा जलाशय और प्रवाह नियंत्रण संरचना होने के कारण, यह बाँध ऊपरी प्रवाह क्षेत्र से तलछट के बहाव को बाधित करता है और नीचे की ओर बहने वाले पानी की मात्रा को नियंत्रित करता है।

यह अध्ययन बाँधों के निचले क्षेत्रों में बाढ़ के प्रकोप को कम करने में बाँधों की सकारात्मक भूमिका की ओर भी संकेत करता है।

वर्तमान में, भागीरथी बेसिन में 11 और अलकनंदा बेसिन में 26 नई बांध परियोजनाओं की योजना है।

आईसीडब्ल्यूएआर में प्रोफेसर, प्रदीप मजुमदार कहते हैं, “यह सही है कि ये बाँध जलविद्युत प्रदान कर सकते हैं, लेकिन ये संरचनाएं इन क्षेत्रों में जल प्रवाह और तलछट परिवहन प्रक्रिया को व्यापक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।”

इस अध्ययन में, भविष्य में चरम प्रवाह और गंगा बेसिन में बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि की आशंका व्यक्त की गई है। ऋषिकेश के पशुलोक बैराज, जिसने बाढ़ रोकने और निचले क्षेत्रों में चरम प्रवाह को कम करने में मदद की है, का हवाला देते हुए शोधकर्ताओं ने कहा है कि प्रौद्योगिकी और नयी एवं अत्याधुनिक हाइड्रोलिक संरचनाओं में प्रगति से फर्क पड़ सकता है।

उनका कहना है कि

कंप्यूटर मॉडल द्वारा संचालित योजना और निर्णय प्रक्रिया से भी इस चुनौती से लड़ने में मदद मिल सकती है।

प्रोफेसर मजुमदार बताते हैं,

"हमारे पास यह तो नियंत्रण नहीं होता है कि वातावरण में क्या घटित हो। लेकिन, धरातल पर कुछ विशिष्ट उपायों से हमारा नियंत्रण हो सकता है। जल विज्ञान मॉडल का उपयोग करके प्रवाह की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस ज्ञान के साथ, उच्च प्रवाह को कम करने के लिए संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक दोनों प्रतिक्रियाओं को विकसित कर सकते हैं।" 

यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

(इंडिया साइंस वायर)

Topics: Modified, hydrologic, regime, Ganga, basin, anthropogenic, stressors, Climate change, and river basin, hydrology, flood

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