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India must significantly increase clean energy subsidies to meet its 2030 targets: CEEW-IISD
IISD-CEEW has released its report- 'Mapping India’s Energy Policy 2022: Aligning Support and Revenues with a Net-Zero Future'.
भारत में अक्षय ऊर्जा पर सब्सिडी (Subsidy on Renewable Energy in India) 59 प्रतिशत गिरकर 6,767 करोड़ रुपये हो गई है, जो वित्त वर्ष 2017 में 16,312 करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी। वहीं जीवाश्म ईंधन को वित्त वर्ष 20-21 में मिल रही सब्सिडी (fossil fuel subsidy in india) अक्षय ऊर्जा को मिल रही सब्सिडी से नौ गुना रही।
अक्षय ऊर्जा को मिलने वाली सब्सिडी में इस गिरावट के लिए कोविड-19 महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान सोलर प्लांट स्थापित करने की धीमी रफ्तार और ग्रिड स्तर के सौर पीवी व पवन ऊर्जा की कीमत अन्य पारंपरिक स्रोतों से उत्पादित बिजली की कीमत के बराबर होने जैसे कारण जिम्मेदार हैं।
यह जानकारियां काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) और इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) की ओर से आज जारी एक संयुक्त स्वतंत्र अध्ययन में दी गई हैं।
2030 स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, सौर विनिर्माण, ग्रीन हाइड्रोजन और भरोसेमंद विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को विस्तार देने के लिए ज्यादा सब्सिडी सहायता देने की जरूरत होगी।
'मैपिंग इंडियाज़ एनर्जी पॉलिसी 2022: अलाइनिंग सपोर्ट एंड रेवेन्यू विद ए नेट-ज़ीरो फ्यूचर' रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2014 और 2021 के बीच सात साल की अवधि में कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के लिए भारत की कुल सब्सिडी 72% की भारी गिरावट के साथ 68,226 करोड़ रुपये हो गई है। लेकिन, वित्त वर्ष 20-21 में सब्सिडी अभी भी अक्षय ऊर्जा सब्सिडी (renewable energy subsidy) की तुलना में नौ गुना अधिक है। इसलिए, देश को 2030 तक 500 गीगावॉट गैर-जीवाश्म बिजली क्षमता और 2070 तक नेट ज़ीरो (शुद्ध शून्य) उत्सर्जन तक पहुंचने के लिए सब्सिडी सहायता को जीवाश्म ईंधन से घटाने व स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की तरफ और ज्यादा स्थानांतरित करने की आवश्यकता है।
कुल मिलाकर, भारत ने वित्त वर्ष 20-21 में ऊर्जा क्षेत्र की सहायता करने के लिए 540,000 करोड़ रुपये से अधिक प्रदान किए, जिसमें सब्सिडी के रूप में लगभग 218,000 करोड़ रुपये शामिल हैं। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि भारत ने मई 2022 में प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) (PMUY) योजना के लाभार्थियों के लिए 200 रुपये प्रति गैस सिलेंडर (12 सिलेंडर तक) की एलपीजी (LPG) सब्सिडी को दोबारा शुरू कर दिया।
एलपीजी सब्सिडी एक स्वागत योग्य कदम
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इस अध्ययन के सह-लेखक और सीईईडब्ल्यू (CEEW) में फेलो व रिसर्च कोऑर्डिनेशन के निदेशक कार्तिक गणेशन ने कहा, "एलपीजी सब्सिडी को दोबारा शुरू करना एक स्वागत योग्य कदम है। जैसे-जैसे राजकोषीय स्थिति में सुधार होता है, लक्षित एलपीजी (LPG) सब्सिडी को तेज़ी से बढ़ाना ही यह सुनिश्चित करने का एकमात्र उपाय है कि पीएमयूवाई (PMUY) योजना का लाभ लंबे समय तक बना रहे। इसके अलावा, कार्बन उत्सर्जन घटाने के भारत के घोषित लक्ष्यों के अनुरूप केंद्र और राज्यों को स्वच्छ ऊर्जा के लिए मध्यम और लंबी अवधि में पर्याप्त सहायता और वित्तपोषण के विकल्पों को सुनिश्चित करना चाहिए।"
अध्ययन में आगे कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021 में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) सब्सिडी, वित्त वर्ष 2017 की तुलना में तीन गुना से ज्यादा बढ़कर 849 करोड़ रुपये हो गई है। इस वर्ष के दौरान, भारत ने ईवी और कल-पुर्जों के घरेलू निर्माण में निवेश को आकर्षित करने के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन कार्यक्रम की भी घोषणा की।
रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि भारत की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) (NBFCs) अब सार्वजनिक वित्त को जीवाश्म ईंधन से दूर करने में एक प्रमुख भूमिका निभा रही हैं, लेकिन आज तक, किसी भी सार्वजनिक वित्त संस्थान (पीएफआई) (PFIs) ने जीवाश्म ईंधन के लिए वित्त को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए स्पष्ट योजना स्थापित नहीं की है।
रिपोर्ट के अनुसार, वास्तव में, वित्त वर्ष 2020-21 में सबसे बड़े पीएफआई की ओर से जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादकों को वार्षिक कर्ज वितरण अक्षय ऊर्जा उत्पादकों की तुलना में तीन गुना ज्यादा रहा। भले ही कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) (PSUs) ने नई स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी और लक्ष्यों की घोषणा की है, उन्हें व्यापार मॉडल को ऊर्जा संक्रमण और नेट ज़ीरो (शुद्ध-शून्य) लक्ष्यों के अनुरूप बनाने के लिए स्पष्ट रणनीतियां निर्धारित करने की आवश्यकता है।
रिपोर्ट की सह-लेखक और आईआईएसडी में पॉलिसी एडवाइजर स्वस्ति रायज़ादा ने कहा, "भारत के ऊर्जा संक्रमण की गति को तेज़ करने के लिए, सार्वजनिक वित्त संस्थानों को घोषित नीतिगत लक्ष्यों के अनुरूप स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र के लिए ऋण लक्ष्यों को बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन के लिए सार्वजनिक वित्त को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने व संभावित फंसी हुई संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए मध्यम से दीर्घकालिक रूपरेखा तैयार करने की जरूरत है।"
स्वस्ति रायज़ादा ने आगे कहा, "उन्हें (सार्वजनिक वित्त संस्थानों को) कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के लिए नए सार्वजनिक वित्त को तेज़ी से समाप्त करने की कोशिश करनी चाहिए, जिसके फंसी हुई संपत्ति में बदल जाने का जोखिम बहुत ज्यादा है।"
साल 2030 के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अधिक सहयोग की ज़रूरत होगी। इस सहयोग में सब्सिडी भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता और जिसकी मदद से अंततः सौर ऊर्जा क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि, हरित हाइड्रोजन, और विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिल पाएगा।