Advertisment

देसी नस्ल की गायों के ड्राफ्ट जीनोम का भारतीय वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

अब नई वैकल्पिक तकनीक से सस्ते में बनेगा धातु पाउडर

Advertisment

आईआईएसईआर भोपाल के शोधकर्ताओं ने देसी नस्ल की गायों के ड्राफ्ट जीनोम का किया खुलासा

Advertisment

नई दिल्ली, 30 जनवरी (इंडिया साइंस वायर): इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research आईआईएसईआर), भोपाल के शोधकर्ताओं ने भारतीय गाय की चार देसी नस्लों - कासरगोड बौना, कासरगोड कपिला, वेचुर और ओंगोल के आनुवंशिक गठन का सफलतापूर्वक खुलासा किया है।

Advertisment

गायों के प्रजनन और प्रबंधन में सुधार में हो सकता है नए शोध का उपयोग

Advertisment

IISER Bhopal के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन की सहायता से गायों के प्रजनन और प्रबंधन में सुधार के लिए जीनोम संरचना (Draft genome) का उपयोग किया जा सकता है, जिससे भारतीय मवेशी उद्योग में उत्पादकता और स्थिरता में वृद्धि हो सकती है।

Advertisment

देसी नस्ल की भारतीय गायों की विशेष क्षमताएं क्या हैं?

Advertisment

देसी भारतीय गायों (cow breeds) में विशेष क्षमताएं होती हैं, जो उन्हें कठिन परिस्थितियों से अनुकूलन स्थापित करने में मदद करती हैं, इनमें खराब गुणवत्ता वाले भोजन को पचाने की क्षमता और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी गुण शामिल हैं।

Advertisment

भारतीय गाय की देसी नस्लों के जीनोम को अनुक्रमित करने से उनके और अन्य नस्लों के बीच आनुवंशिक अंतर को समझने में मदद मिल सकती है, जो भविष्य के अध्ययनों और आनुवंशिक सुधार के लिए एक मूल्यवान संसाधन साबित हो सकता है।

पिछले अध्ययनों ने भारतीय गायों के कई लक्षणों को रेखांकित किया है, और पता लगाने का प्रयास किया है कि देसी गायें गर्म मौसम में अपने आकार और दूध की गुणवत्ता को कैसे बनाये रखती हैं।

इस अध्ययन में शामिल भारतीय गाय की नस्लों का पूरा जीनोम पहले ज्ञात नहीं था, इसलिए यह समझना मुश्किल था कि उनमें कौन-सी आनुवंशिक विशिष्टताएं होती हैं।

आईआईएसईआर, भोपाल के शोधकर्ताओं ने भारतीय देसी गाय नस्लों - कासरगोड बौना, कासरगोड कपिला, वेचुर और ओंगोल के जीनोम को पढ़ने और समझने के लिए उच्च-थ्रूपुट अनुक्रमण तकनीकों का उपयोग किया है। ऐसा करने का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना था कि ये गायें भारतीय जलवायु परिस्थितियों के साथ कैसे अनुकूलन स्थापित करती हैं। इस अध्ययन के लिए नमूने कासरगोड ड्वार्फ कंजर्वेशन सोसाइटी की मदद से केरल स्थित कपिला गौशाला से संग्रह किये गए हैं।

आईआईएसईआर, भोपाल के जैविक विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ विनीत के. शर्मा कहते हैं, “हमने भारतीय गाय की देसी नस्लों में जीन के एक विशिष्ट सेट की पहचान की है, जिनमें पश्चिमी मवेशी प्रजातियों के जीन्स की तुलना में अनुक्रमिक और संरचनात्मक भिन्नता देखी गई है। यह जानकारी इस बात की बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती है कि भारतीय नस्ल की गाय उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के साथ अनुकूलन कैसे स्थापित करती है।”

इसके अलावा, डॉ. विनीत शर्मा ने कहा है कि "जीनोम अनुक्रमण; इन देसी नस्लों की आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने में मदद कर सकता है, जो गायों की स्वस्थ और लचीली आबादी को बनाये रखने के लिए महत्वपूर्ण है।"

इस अध्ययन की एक और उल्लेखनीय उपलब्धि दुनिया की सबसे छोटी गाय की नस्ल वेचूर का ड्राफ्ट जीनोम असेंबली है। शोधकर्ताओं ने उन जीन्स की भी पहचान की है, जो बौने और गैर-बौने बोस इंडिकस (Bos indicus) मवेशियों की नस्लों में अनुक्रमिक भिन्नता के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। बोस इंडिकस एक घरेलू मवेशी प्रजाति है, जिसकी भारत में कई स्वदेशी नस्लें पायी जाती हैं। यह डेयरी, भारवहन और अन्य घरेलू गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन, इस प्रजाति की नस्लों के गठन में विशिष्ट अंतर पाये जाते हैं। इन गाय नस्लों के जीनोम अनुक्रम उपलब्ध नहीं थे। इसलिए, शोधकर्ताओं ने बोस इंडिकस नस्ल की इन चार गाय प्रजातियों के ड्राफ्ट जीनोम असेंबली के निर्माण के लिए पूरे जीनोम अनुक्रमण का खुलासा किया है।

जीनोम क्या होता है?

जीन नामक छोटी इकाइयों से बनी संरचना जीनोम कहलाती है, जिसमें जीवों के बढ़ने, उनके विकसित होने और ठीक से काम करने के लिए आवश्यक जानकारी दर्ज रहती है। जिस तरह एक इमारत के लिए एक ब्लूप्रिंट में यह जानकारी होती है कि इसे कैसे बनाया जाए, जीनोम में वह सभी जानकारी होती है, जो किसी जीव को जीवित रहने के लिए आवश्यक है। जीनोम को समझकर, वैज्ञानिक जीवों अथवा पौधों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यह जानकारियां बीमारियों से लड़ने और पौधों तथा मवेशियों की नस्लों में सुधार में भूमिका निभाती हैं।

यह अध्ययन प्रीप्रिंट सर्वर बायोआरएक्सआईवी में प्रकाशित किया गया है। अध्ययन के शोधकर्ताओं में डॉ विनीत के. शर्मा, अभिषेक चक्रवर्ती, मनोहर एस. बिष्ट, डॉ रितुजा सक्सेना, श्रुति महाजन और डॉ जॉबी पुलिकन शामिल हैं। आईआईएसईआर, भोपाल के वक्तव्य में दावा किया गया है कि यह पहली बार है कि इन चार भारतीय गायों के जीनोम को अनुक्रमित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

Indian scientists revealed the draft genome of indigenous cows

Advertisment
सदस्यता लें