औद्योगिक विकास एक अभिशाप : दुनिया की आधी आबादी की तबाही के लिये जिम्मेदार है औद्योगीकरण

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hastakshep
07 Jan 2020
औद्योगिक विकास एक अभिशाप : दुनिया की आधी आबादी की तबाही के लिये जिम्मेदार है औद्योगीकरण

Industrial development is a curse: industrialization is responsible for the destruction of half the world's population

किसी वस्तु का तीव्र गति से अंधकारमय खाई की तरफ बढना या उसका पटरी से उतर जाना, दोनों स्थिति में जब विनाश निश्चित हो तब उस गतिशील वस्तु को पटरी पर लाने का प्रयास विनाश का दुर्घटना के बदले अंधकारमय खाई में नष्ट होने का चयन मात्र है। ठीक उसी तरह जब वर्तमान विकास नीतियों से दुनिया का विनाश निश्चित माना जा रहा है तब आज की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक विकास की रफ्तार (Speed of industrial development in economy) बनाये रखने के लिये वृद्धि दर में तेजी या मंदी दूर करने के उपाय विनाश के रास्ते का चयन मात्र है।

भारतीय दर्शन हमे बताता है कि मनुष्य जाति की नैतिक, आत्मिक उन्नति ही सच्ची उन्नति है। और अहिंसक, मानवतावादी समाज रचना से ही उसे प्राप्त करना संभव है। लेकिन इस रास्ते से भटकाकर औद्योगीकरण ने विकास की दिशा सामाजिक, आर्थिक विषमता का पोषण करने वाली और केवल शारीरिक सुख के लिये भौतिक सुविधाएं देने वाली शैतानी सभ्यता की तरफ मोड़ दी है। प्रेम, विश्वास, सहयोग के आधार पर समता मूलक समाज रचना की जगह स्पर्धा, ईर्ष्या, द्वेश और हिंसा को बढ़ावा देने वाली गुलामी की नई व्यवस्था स्थापित की है।

Industrialization is not a solution but a problem in itself

विकास यानी सकल घरेलू उत्पाद में सतत् वृद्धि ऐसा मानकर पूरी दुनिया में औद्योगीकरण और व्यापार को बढ़ावा दिया गया। कृषि और सेवा क्षेत्र को भी औद्योगीकरण में ही शामिल किया गया। जनता के लिये जरूरत के अनुसार उत्पादन की जगह अति उत्पादन करके बाजार को भर दिया गया। यह कहा गया था कि औद्योगीकरण में ही दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान है। लेकिन औद्योगीकरण के 350 साल के इतिहास ने यह सिद्ध किया कि औद्योगीकरण समाधान नहीं बल्कि खुद एक समस्या है

गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता जैसे आर्थिक सवालों का उसके पास कोई हल नहीं है बल्कि यह समस्याएं औद्योगीकरण के कारण ही पैदा हुई हैं।

Economic disparity increased during the period of industrialization

औद्योगीकरण के दौर में आर्थिक विषमता बढ़ी है और इस समय वह चरम पर पहुंची है। पर्याप्त उत्पादन के बावजूद भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ, शिक्षा आदि बुनियादी सुविधाएं और अन्य जीवनावश्यक वस्तुऐं दुनिया की आधी आबादी को उपलब्ध नहीं हैं।

औद्योगीकरण के लिये श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन किया जाना अपरिहार्य है। औद्योगिक उत्पादों से अधिकाधिक मुनाफा कमाने के लिये कारखानों में कामगारों का शोषण और उद्योगों को सस्ती कृषि उपज उपलब्ध कराने के लिये किसानों, मजदूरों का शोषण करने की नीति अपनाई जाती है, जो श्रमिकों के श्रम के शोषण का एक प्रमुख कारण है।

औद्योगीकरण के लिये जल, जमीन, जंगल, खनिज, कोयला, बिजली, पोलाद, सीमेंट, खनिज तेल, पेट्रोलियम, प्राकृतिक वायु, गौण खनिज, स्पेक्ट्रम, पर्यावरण आदि प्राकृतिक संसाधनों की जरूरत होती है और यह संसाधन उस पर निर्भर किसानों, आदिवासियों से छीनकर ही प्राप्त किये जा सकते हैं। औद्योगिक विकास की गति के साथ श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अनिवार्य रूप से उसी अनुपात में बढ़ता है।

औद्योगीकरण की प्रक्रिया में रोजगार उपलब्ध कराने के लिये कई गुना अधिक लोगों के रोजगार छीने जाते हैं। जीविका का आधार छीने जाने, मनुष्य के रूप में उपलब्ध जीवित ऊर्जा के बदले यंत्रों का इस्तेमाल बढ़ने से बेरोजगारी कम होने के बदले बढ़ती है। अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जेनेटिक अभियांत्रिकी के प्रवेश से रोबोट, क्लोन द्वारा सारे काम करने से बेरोजगारी का संकट और भी बढ़ेगा।

Industrialization has proved to be a curse for the world

ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन (Emission of greenhouse gases), जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तामपान वृद्धि के लिये कारण बने औद्योगीकरण ने पृथ्वी के अस्तित्व का संकट पैदा किया है। तापमान वृद्धि के कारण भारतीय कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड रहा है। जिससे खाद्य सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है। इन सभी दुष्प्रभावों से यह स्पष्ट रुपसे दिखाई दे रहा है कि औद्योगीकरण दुनियां के लिये अभिशाप साबित हुआ है।

साम्राज्यवादी देशों ने प्राकृतिक संसाधन संपन्न देशों को गुलाम बनाकर पूरी दुनिया की लूट की है। कृषि से प्राप्त कच्चा माल, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और दुनिया के बाजार में औद्योगिक उत्पादन, सेवाएं बेचकर साम्राज्यवादी देश अमीर बने। अब नई कारपोरेटी साम्राज्यवादी व्यवस्था में साम्राज्यवादी देशों की जगह कारपोरेट कंपनियों ने ली है। कारपोरेटी साम्राज्यवाद के दौर में दुनिया में हो रही लूट का लाभ अब किसी देश की नहीं बल्कि कारपोरेट्स की संपत्ति बढ़ा रहा है।

आर्थिक विषमता (Economic disparity) के संदर्भ में विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार मोटे तौर पर देश दुनिया में पैदा होने वाली संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा दस प्रतिशत लोगों के पास जा रहा है और 10 प्रतिशत से भी कम हिस्से में 80 प्रतिशत लोगों को जीवन निर्वाह करना पड़ता है।

भारत के दस प्रतिशत शीर्ष अमीरों के पास 77 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति है। एक प्रतिशत शीर्ष अमीरों के पास 58.4 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति है। भारत में अरबपतियों की संख्या केवल 119 है। दुनिया भर में केवल 2140 शिर्ष अरबपति ऐसे हैं जिनकी संपत्ति 1 बिलियन डॉलर से अधिक है। लेकिन दूसरी तरफ दुनिया की आधी आबादी गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी का शिकार है और जीने के लिये संघर्ष कर रही है।

नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद विकास को गति देने के लिये भारत में उद्योग, सेवा और कृषि क्षेत्र को देशी विदेशी कारपोरेट कंपनियों को सौपने का काम किया गया। कारपोरेट कंपनियों को प्रवेश, निवेश के लिये कानूनी संरक्षण, बैंको से कर्ज की सुविधाएं, कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली आयात निर्यात नीतियां, मुनाफा विदेशों में ले जाने के लिये छूट आदि नीतियां अपनाई गईं। सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोतरी के द्वारा आर्थिक विकास की वृद्धि दर बढ़ाने के लिये उद्योग, निर्माण, उर्जा उत्पादन, रियल इस्टेट, परिवहन, बुनियादी ढांचे का निर्माण, औद्योगिक गलियारों का जाल और कार, एसी और अन्य विलासिता के सामानों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है। और उत्पादित विलासिता वस्तुओं के ग्राहक पैदा करने के लिये जनता को लूटकर पैदा हुई संपत्ति केवल 20 प्रतिशत लोगों के पास पहुंचाई जाती है। सरकारी नौकरशाह और कारपोरेट कामगारों को उनकी योग्यता से अधिक वेतन केवल विशिष्ट उपभोक्ता वर्ग पैदा करने के लिये दिया जाता है। दुनिया की लूट करने के लिये औद्योगिक विकास के जरिए आर्थिक विषमता का पोषण करने की नीतियां कारपोरेट्स द्वारा बनाई जाती हैं।

बार-बार चेतावनी दे रही है मंदी कि औद्योगीकरण का कोई भविष्य नहीं

आखिर औद्योगिक उत्पादन और सेवाओं के खपत की मर्यादा है। उद्योगों के लिये यह संभव नहीं है कि दुनिया का बाजार सबके लिये उपलब्ध होगा, खासकर तब जब लोगों के लिये उत्पादन की जगह अति उत्पादन की नीति अपनाई जा रही हो। दुनिया के बाजार के आधार पर किसी भी देश का विकास दर हमेशा के लिये स्थिर नहीं रह सकता। इसका अपरिहार्य परिणाम मंदी है। मंदी बार-बार चेतावनी दे रही है कि औद्योगीकरण का कोई भविष्य नहीं है।

मंदी दूर करने के उपाय (Recession measures) भी कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये ही सुझाये जा रहे हैं। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये सभी क्षेत्रों में शत प्रतिशत विदेशी निवेश, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी कंपनियों को बेचना, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, कंपनियों को कर्ज, एनपीए द्वारा कर्ज माफी, कारपोरेट टैक्स घटाना, कंपनी टैक्स में छूट देना, कारपोरेट्स के निजी टैक्स कम करना, कंपनी उत्पादनों पर जीएसटी दर कम करना, विश्व व्यापार समझौते, आयात निर्यात नीतियों में बदलाव, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को सरल बनाना, कामगारों के अधिक शोषण के लिये श्रम कानून में सुधार आदि उपाय कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये ही सुझाये गये हैं।

समाज को वर्गों में बांटकर ग्राहकों को वर्गीकृत करना, विशिष्ट वर्ग की क्रयशक्ति बढ़ाने के लिये उनके पास धन पहुंचाना, राजकोषीय घाटा दूर करने के लिये बजट में जनकल्याण की योजनाओं के खर्च में कटौती करना आदि उपाय किये जा रहे हैं। कारपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत पर लाया गया है और अब उद्योगपतियों को व्यक्तिगत इन्कम टैक्स में छूट देने की योजना है।

विकास दर में तेजी लाने या मंदी को दूर करने के उपाय समाज के लिये समान रुपसे घातक और विनाशकारी है। यह उपाय गरीबों को लाभ पहुंचाने के लिये नहीं बल्कि उनका शोषण करके उसका लाभ अमीरों तक पहुंचाने के लिये किये जाते हैं। दोनों ही परिस्थितियों में श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों से लोगों के अधिकार छीने जाना तय है। बची हुई बचत बैंकों द्वारा लूट ली जाती है। अर्थ व्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था याने आज से दोगुनी बनाने का उद्दिष्ट प्राप्त करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी दोगुना बढ़ाना होगा।

आज के अधिकतम अर्थशास्त्री कारपोरेट्स की गुलामी करते हैं। उनके द्वारा विकास दर में मंदी दूर करने के उपाय श्रमिकों के श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से होने वाली लूट को दुनिया के अमीरों तक पहुंचाने में आयी रुकावट को दूर करने और लूट का अविरत धाराप्रवाह उनके पास पहुंचाने की चिंता से उपजे हैं।

विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थायें गरीबी और आर्थिक विषमता को दूर करने के नाम पर दुनिया में कारपोरेटी लूट की व्यवस्था को मजबूत बनाने का काम करती हैं। विकास दर बनाये रखने या मंदी दूर करने के संदर्भ में उनकी रिपोर्ट सरकारों पर दबाव बनाने या कारपोरेट परस्त सरकारों के अनुकूल जनमानस पैदा करने के लिये किया गया प्रयास है। सत्ता में बने रहने के लिये केंद्र सरकार देश को कारपोरेट्स को बेचने का काम कर रही है।

औद्योगीकरण पूंजीवादी व्यवस्था का वह हथियार है, जो चंद लोगों को सुख पाने के लिये दुनिया के अधिकांश लोगों के शोषण को सैद्धांतिक स्वीकृति देकर उसे प्रत्यक्ष में परिणित करने का काम करता है और समाज और प्रकृति का शोषण कर दुनिया में सबसे अमीर बनने की राक्षसी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिये उद्योगपतियों को प्रेरित करता है।

औद्योगीकरण दुनिया की आधी आबादी की तबाही के लिये जिम्मेदार है। विकास दर में तेजी लाने या मंदी दूर करने का रास्ता किसानों, मजदूरों, कामगारों के अधिकारों को छीनकर और उनकी लूट करके ही बनाया जाना है। इसलिये जनता के अधिकारों के लिये संघर्षशील नेताओं को तेजी, मंदी के खेल में शामिल हुए बिना औद्योगीकरण को नकारकर वैकल्पिक अर्थ व्यवस्था की तलाश करनी होगी।

विवेकानंद माथने

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। )

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