स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में आपसी संवाद

Guest writer
15 Sep 2022
स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में आपसी संवाद

यात्रा वृत्तांत

13 और 14 सितंबर के दो दिनों के ब्यावरा (राजगढ़) और भोपाल प्रवास के बाद आज सुबह भोपाल एक्सप्रेस से दिल्ली वापस आ गया.

ब्यावरा में कभी मध्य प्रांत या कहें केंद्रीय भारत के सबसे प्रमुख हिंदी दैनिक रहे नवभारत के संस्थापक-संपादक प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. रामगोपाल माहेश्वरी की 23वीं पुण्य तिथि पर उनकी स्मृति में हर साल आयोजित होनेवाले विचार मंथन में मुख्य अतिथि-मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होना था.

ब्यावरा से रामगोपाल माहेश्वरी जी का कोई सीधा संबंध नहीं था.

रामगोपाल माहेश्वरी जी की जन्मभूमि तो राजस्थान में जयपुर के पास थी और कर्मभूमि नागपुर, भोपाल और रायपुर रही. वह कम उम्र में ही महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। नागपुर में ही वह पहली बार गिरफ्तार हुए थे और वहीं से उन्होंने पहली बार 1934 में हिंदी में नवभारत का प्रकाशन शुरू किया था। तो फिर ब्यावरा में उनकी स्मृति में विचार मंथन का आयोजन क्यों!

दरअसल, इस आयोजन के कर्ता धर्ता गोविंद बड़ोने बचपन से ही अपने परिवार के लोगों के साथ नवभारत अखबार के वितरण से लेकर संवाद लेखन में जुड़े रहे. आज वह इस अखबार के गुना-राजगढ़ संस्करण के रीजनल हेड हैं. बहुत ही व्यवहार कुशल, संगठनकर्ता गोविंद पिछले 23 वर्षों से बाबू जी के नाम से मशहूर रहे राम गोपाल माहेश्वरी जी की स्मृति में विचार मंथन का आयोजन करते आ रहे हैं. इसमें माहेश्वरी-नवभारत परिवार का सक्रिय सहयोग और समर्थन भी उन्हें मिलता है लेकिन आयोजन की मूल प्रेरणा गोविंद बड़ोने ही हैं. 

बहरहाल, हम भोपाल एक्सप्रेस से 13 सितंबर की सुबह ही भोपाल पहुंच गए थे। ब्यावरा में कार्यक्रम दिन में चार बजे शुरु हुआ. रात से ही रुक-रुक कर कभी तेज तो कभी कम रफ्तार से हो रही बरसात और अच्छी सड़क के साथ लगी हरियाली का आनंद लेते हुए हम लोग समय से पहले ही ब्यावरा पहुंच गए.

हमारे साथ दिल्ली से प्रज्ञा संस्थान से जुड़े पत्रकार राकेश सिंह, भोपाल से एबीपी न्यूज के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक ब्रजेश राजपूत, सचिन जैन और मनोज कुमार भी आ गए थे।

इस बार विचार मंथन का विषय था, 'स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में आपसी संवाद की जरूरत'.

विषय प्रवर्तन पत्रकार मनोज कुमार जी ने किया. वहीं पता चला कि वह हमारे पूर्व परिचित, अग्रज, वरिष्ठ पत्रकार गिरिजाशंकर जी के भाई भी हैं.

सभी वक्ताओं ने विषय पर अपनी अपनी बात रखी. हमने भी दी गई 35-40 मिनट की समय सीमा का ध्यान रखते हुए 38 मिनटों में अपनी बातें पूरी की.

कार्य दिवस होने के बावजूद पूरा सभागार शुरू से लेकर अंत तक खचाखच भरा रहा. कुछ लोग बाहर भी खड़े-बैठे थे. ऐसे सुधी श्रोता कम ही देखने को मिलते हैं.

मंच पर स्थानीय सांसद रोडमल नागर, स्थानीय विधायक रामचंद्र डांगी, राजगढ़ से निधायक बापू सिंह तंवर, जिला पंचायत के अध्यक्ष चंदर सिंह सौंधिया, जिला कांग्रेस और जिला भाजपा के अध्यक्ष प्रकाश पुरोहित और दिलवर यादव भी मौजूद थे।

जन प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम के अंत में अपनी बातें रखीं.

कह सकते हैं कि ब्यावरा में आकर अच्छा लगा. वहां पहुंचने से पहले पता चल गया था कि हमारे गांव कठघराशंकर के शहीद इंटर कालेज मधुबन, जनपद मऊ (उत्तर प्रदेश) में पढ़ाई के दिनों के एक साल सीनियर रहे पारिवारिक मित्र डॉ. अखिलेश मल्ल जी भी राजगढ़ में ही वरिष्ठ चिकित्सक (हड्डी रोग विशेषज्ञ) हैं. उनसे बात हो गई थी. वह भी मिलने आ गए थे। दशकों के बाद उनसे कम समय के लिए ही मिलना बहुत सुखकर लगा।

शाम को वहीं वल्लभा परिसर में भोजन और काव्य संध्या का आयोजन भी था. लेकिन राकेश जी को दिल्ली लौटना भी था, लिहाजा हम लोग भोपाल लौट आए.

अगले दिन 14 सितंबर को भोपाल में हमारा नए पुराने मित्रों-परिचितों से मेल मुलाकात का कार्यक्रम रहा. कुछ समय प्रकृति के आगोश में घने जंगल और उसके साथ लगे भदभदा, केरवा और कलिया सोत डैम (बांध) और उससे निकलती जलधारा के साथ विचरण करते हुए प्रकृति के नैसर्गिक आनंद लेने के साथ ही इन इलाकों में मध्यप्रदेश के नेता, नौकरशाहों और नव धनाढ्यों के पर्यावरण और उससे जुड़े नियम कानूनों को धता बताते या फिर उन्हें अपने हिसाब से मोड़ लेते राज प्रासादों, फार्म हाउसों, रेजार्ट्स आदि की बाहर से ही सही, हल्की झलक से भी रूबरू हुए.

14 सितंबर के भोपाल प्रवास के बारे में कल कुछ लिखने की कोशिश करूंगा.

जयशंकर गुप्त

लेखक देशबन्धु के कार्यकारी संपादक और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य हैं।

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