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मई दिवस के अवसर पर दुनियां के मजदूरों एक हो

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hastakshep
01 May 2020
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मई दिवस के अवसर पर दुनियां के मजदूरों एक हो

आज 1 मई (1st May) तथा मई दिवस (may day) है हर साल दुनिया के कई हिस्सों की तरह भारत में भी  मई दिवस मनाया जाता है जिसमें बहुत सी फैक्ट्रीयों में आज के दिन छुट्टी घोषित की जाती थी, कई जगह बहुत से मजदूर यूनियनों के द्वारा रैलियां और जनसभा का आयोजन किया जाता था जिसमें वर्तमान समय में मजदूरों की स्थिति उनके अधिकार और उनसे जुड़े कानूनों के बारे में बात की जाती थी।

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मई दिवस का इतिहास (History of may day) 130 साल पुराना है अंतर्राश्टीªय मजदूर दिवस की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी जब अमेरिका में कई मजदूर यूनियनों ने काम का समय ज्यादा से ज्यादा आठ घंटे निर्धारित करने के लिए हड़ताल रखी की थी इस हड़ताल के दौरान से शिकागों की हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और सौ से ज्यादा घायल हो गए।

1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट में मारे गए मजदूरों की याद में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Labor Day) के रूप में मनाया जायेगा।

भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने एक मई 1930 को मद्रास में मई दिवस मनाने की शुरुआत की थी, और तब से लेकर आज तक मई दिवस को एक मजदूरों के बलिदान, और संघर्षों के प्रतीक के रुप में मनाया जाता रहा है।

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मजदूरों की दशा भारत हो या बाहर के देश एक जैसी है, 1991 मे वैश्वीकरण आने के बाद जहां एक ओर पूंजीपतियों ने अपने उद्योगों को देश-विदेश तक फैलाया वही मजदूरों का पलायन भी तेजी से बढ़ा यहीं कारण है कि बिहार, उत्तर-प्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड जैसे राज्यों से हर साल हजारों की संख्या में मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर जैसे राज्यों की ओर पलायन बढ़ता गया।

अपने घर परिवार से दूर मजदूर बेहतर जिन्दगी का सपना संजोये देश के अलग अलग कोने में पूंजीपतियों को अपनी सेवा प्रदान करते रहे जिससे की पूंजीपतियों को दोगुना चोगुना फायदा पहुंचने लगा लेकिन प्रवासी मजदूरों की जिन्दगी में कोई खास सुधार नहीं हो पाया, मजदूरों को अपने अधिकारों के प्रति हमेशा आवाज उठानी पड़ी है।

वर्तमान में कोरोना कोविड-19 ने दुनियां के अमीर यूरोपीयन देशों को ही पूरी दुनियां को प्रभावित किया ऐसे में साम्राज्यवादी पंूजीवादी देशों और पूंजीपतियों का कुरुप चेहरा स्पष्ट हो गया।

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लॉकडाउन की घोषणा होने के साथ प्रधानमंत्री से सभी लोगों से अपील की कि जो लोग फैक्टरी में काम कर रहे थे उनकी सेलेरी न रोकी जाय, इसके बावजूद भी सभी पूंजीपतियों ने अपने मजदूरों को एक दो हजार रुपये थमा कर शहर छोड़ने को मजबूर कर दिया। यही कारण है कि जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तब हजारों की संख्या में मजदूरों की भीड़ आनन्द विहार आ गई थी जो अपने घर जाना चाहते थे क्योकि यहां फैक्टरी से बड़ी संख्या में मजदूर निकाल दिये गए थे, बहुत से मजदूर जिनके पास कोई साधन नहीं था, वे अपने बीवी बच्चों के साथ पैदल ही हजारों की संख्या में अपने घर जाने को तैयार हो गए थे।

दूसरे लॉकडाउन के वक्त भी गुजरात और सूरत में ऐसा ही नजारा था जब मजदूरों का गुस्सा फूटा और वे स्टेशन पर एक साथ पहुंच गए। भारत सरकार हो या राज्य सरकार ने अपने शहरों में रुके मजदूरों के लिए भोजन कि व्यवस्था की है जिसमें उन्हे दोपहर के खाने को पाने के लिए सुबह से ही लाइन में लगना पड़ता है तब कहीं जाकर मुश्किल से खाना मिलता है लेकिन वह भी पूरे परिवार के लिए नही हो पाता है।

सालों से पूंजीपतियों को सेवा करने वाला मजदूर वर्ग आज भूखमरी की कगार पर है, राजधानी दिल्ली से लेकर झारखंड के सुदूर गांवो तक करोड़ो लोगो के सामने भुखमरी के हालात पैदा हो गए है करोड़ो परिवार  ऐसे है जिनके पास न तो राशन कार्ड  है और न ही कोई आधार कार्ड जिससे कि वो राशन मिलने वाली सरकारी सुविधाओं का लाभ ले सके, सरकार की तरफ से किए जा रहे तात्कालिक उपायों से इन लोगो तक खाना पहुंच तो रहा है लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए दो से चार घंटा का इंतजार लाइन मे लगकर करना पड़ता है।

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इस बार के मई दिवस को मजदूर किस तरह मनायेगा?

मजदूर यूनियनें किस तरह मई दिवस को देख रही है ये सोचने का विशय है क्योकि इस बार मजदूर के हालात इस हद तक हो गई कि वो भूख से तड़प कर आत्महत्या को मजबूर हो रहा है फिर भी विरोध की कोई आवाज नही उठ रही है। कोरोना के डर से पैदल अपने घर पहुंचे मजदूरों को भी अपने घर से अलग स्कूलों में रखा जा रहा है जहां उनके साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जा रहा है हाल ही में मेरठ में दिल दहला देने वाली घटना आई जिसमें मजदूरो को दूर से खाना पानी फेंक कर दिया जा रहा था।

इसी तरह एक मजदूर से अपनी आपबीती बताई कि ‘‘बहुत दिनों बाद उनके मालिक ने उन्हें फोन करके खिचड़ी खाने के लिए बुलाया’’।

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आज मजदूरों को उनके अधिकारों के साथ अपने स्वाभिमान के लिए भी आवाज उठाना होगा और ये आवाज केवल भारत में ही नहीं पूरे दुनियां के मजदूरों को एक आवाज बनकर उठाना होगा। कोरोना संकट के इस दौर में आज के मई दिवस पर हमें यह सबक लेना होगा कि अब पूरी दुनियां के साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ दुनियां को मजदूरों, किसानों, महिला और छात्रों को एकजुट होकर अपने अधिकारों को स्वाभिमान के लिए आवाज बुलन्द करनी होगी।

मई दिवस जिन्दाबाद

दुनियां के मजदूरों एक हो।

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अशोक कुमारी

 

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