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आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है | International Mother Language Day or Matribhasha Diwas
महात्मा गांधी के हिंदी प्रेम से गुजरते हुए
Mother tongue will not survive without writing in Unicode font.
गांधीजी के जेल अनुभवों में से एक अनुभव याद आ रहा है उन्होंने लिखा - महानिष्क्रिय - प्रतिरोध के कारण जब वे एक बार दक्षिण अफ्रीका के एक जेल में थे तब उन्हें उनकी धर्मपत्नी की बीमारी का सूचक तार मिला। यदि वे जुर्माना अदा कर देते तो उन्हें जेल से छुटकारा मिल जाता और वे अपने घर जाकर अपनी पत्नी के औषधोपचार आदि का प्रबन्ध कर सकते। पर ऐसा करना उन्होंने अपने सिद्धान्त के प्रतुकूल समझा। अतएव जेलर की आज्ञा प्राप्त करके अपनी पत्नी को उन्होंने गुजराती में पत्र लिखा। इस पत्र को देखकर जेलर चौंका, क्योंकि वो उसे पढ़ न सका। खैर, उस पत्र को उसने जाने दिया। पर हिदायत दी कि गांधीजी अपने अगले पत्र अँग्रेजी में लिखें।
गांधीजी ने कहा, मेरे हाथ के गुजराती पत्र, इस बीमारी की दशा में, मेरी पत्नी के लिए दवा का काम देंगे। इस कारण, आप मुझे गुजराती में ही लिखने की आज्ञा दीजिए। पर जेलर ने न माना। फल यह हुआ कि गांधीजी ने अँग्रेजी में लिखने से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा मेरी रोगाक्रान्त पत्नी और आसन्न-मरण पत्नी को मेरे पत्र मिलें चाहे न मिलें, पर मैं अँग्रेजी में पत्र नहीं लिखूंगा।
यह घटना 1915 की है सूरत जिले के संग्रामपुर के जैन विद्यार्थियों द्वारा स्थापित किए गए पुस्तकालय का उदघाटन करने गांधीजी पहुँचे वहां पर एक विद्यार्थी ने अंग्रेजी में भाषण दिया, दूसरे ने अंग्रेजी में निबन्ध पढ़ा। पर गांधीजी गुजराती में बोले। उन्होंने कहा -
"जो युवक यह कहते हैं कि हम अपने विचार मातृभाषा द्वारा प्रकट नहीं कर सकते उनसे मैं यही निवेदन करूँगा कि आप मातृभाषा के लिए भार रूप हैं। मातृभाषा की अपूर्णता दूर करने के बदले उसका अनादर करना- उससे हाथ ही धो बैठना - किसी सच्चे सपूत को शोभादायक नहीं है।...मैं आशा करता हूं कि यहाँ बैठे हुए समस्त विद्यार्थी यह प्रतिज्ञा करेंगे कि निरूपाय दशा के सिवा और कभी भी हम अपने घर पर अंग्रेजी न बोलेंगे।"
एक अन्य घटना का जिक्र करना समीचीन होगा।
यह घटना 1919 की है। मद्रास लेजिस्लेटिव कौंन्सिल के सदस्य नरसिंह अय्यर ने उन्होंने कौंसिल की बैठक में तमिल में भाषण देना आरंभ किया। इस पर आनरेबल मिस्टर राजगोपालाचार्य्य ने उनको टोका और एतराज किया। वे चाहते थे कि अय्यरजी अपना भाषण अंग्रेजी में दें,इस पर गवर्नर ने राजगोपालाचार्य का साथ दिया। अय्यरजी अपनी मातृभाषा तमिल में भाषण देना चाहते थे उन्होंने गवर्नर से अनुरोध किया कि उन्हें तमिल में भाषण देना दें, गवर्नर नहीं माने,अय्यर साहब ने अंग्रेजी में भाषण देने से इंकार किया और प्रतिवादस्वरूप चुपचाप बैठ गए। यहां मजेदार बात यह है कि राजगोपालाचारी ने अंग्रेजी में भाषण देने की अय्यर जी से मांग की और अय्यर ने अंग्रेजी जानते हुए भी तमिल में भाषण देने का आग्रह किया।
भारत के वायसराय ने एकबार एक मीटिंग में भाषण देने के लिए गांधीजी को आमंत्रित किया था गांधीजी ने वायसराय के सामने शर्त रखी कि वे हिन्दी में ही भाषण देंगे। वायसराय ने उनकी शर्त मान ली।
ध्यान देने योग्य बातें-
1. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कहा -"जिस जाति विशेष में साहित्य का अभाव या उसकी न्यूनता आपको देख पड़े, आप यह निःसन्देह निश्चित समझिए कि वह जाति असभ्य किंवा अपूर्ण सभ्य है।" क्या इस धारणा की रोशनी में हिन्दी की दशा पर विचार करने की जरूरत है ?
2. हिन्दी लेखक कम्प्यूटर में हिन्दी लिखें और हिन्दी को समृद्ध करें। अन्यभाषाभाषी भी यह काम करें जिससे भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर समृद्ध किया जा सके।
3. आज के दिन हम सब कम से कम अपनी मातृभाषा में फेसबुक पर जरूर कुछ न कुछ लिखें। खासकर वे लोग जो अपनी भाषा के फॉण्ट का इस्तेमाल नहीं करते और गूगल की मशीनी अनुवाद प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं उनको अपनी भाषा के फॉण्ट को डाउनलोड करना चाहिए और अपनी भाषा में सीधे कम्प्यूटर पर लिखना आरंभ करना चाहिए।
4. एक जमाने में मध्यवर्ग बंगाली मातृभाषा में बोलना-लिखना गौरव की बात समझता था,महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु और सत्येन्द्र बसु जैसे लोग बंगला में विज्ञान की नई खोजों पर लिखते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह भाषा के पतन की सूचना है !
5. भारत में अधिकांश प्रतिष्ठित समाजविज्ञानी बुद्धिजीवी अपनी भाषा में नहीं लिखते, यह स्थिति बदलनी चाहिए।
6. हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक-प्रोफेसर-पत्रकार-एम.ए, बी.ए. लोग अभी तक इंटरनेट पर यूनीकोड हिन्दी फॉण्ट में नहीं लिखते,कैसे आएगा परिवर्तन ? यह मातृभाषा की विदाई की सूचना तो नहीं है ?
हिन्दी भाषी अभी भी इंटरनेट पर देवनागरी में नहीं लिखते, अन्य लोग अपनी भाषा में नहीं लिखते, ऐसे में मातृभाषा दिवस का क्या होगा ? यूनिकोड फॉण्ट में लिखे बिना मातृभाषा नहीं बचेगी।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
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