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Internet and telephone services shut down on farmers protest sites, Justice Katju says Vinaash kaale vipreet buddhi
विनाश काले विपरीत बुद्धि
बताया गया है कि दिल्ली के गाज़ीपुर, टीकरी और सिंघू बॉर्डर पर इंटरनेट और टेलीफोन सेवाओं को अधिकारियों ने बंद कर दिया है। अधिकारी शायद समझते हैं कि ऐसा करने से वे किसानों के आंदोलन को दबा देंगे, लेकिन मेरी राय में यह केवल स्थिति को और भयावह बनाएगा और बिगाड़ेगा।
गोदी मीडिया का गोएबेल्सियन प्रचार
अधिकारीगण इंग्लैंड के किंग कैन्यूट (King Canute ) की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिन्होंने ज्वार की लहरों को चले जाने के लिए कहा था। उन्होंने अपने गोएबेल्सियन (Goebbelsian ) प्रचार द्वारा (जो बेशर्म ‘गोदी मीडिया के माध्यम से फैलाई गया) किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी, माओवादी, देशद्रोही आदि के रूप में चित्रित करने की कोशिश की, लेकिन इसका विश्वास किसी ने नहीं किया किया।
तब उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठे हुए किसानों पर हमला करने के लिए गुंडे भेजे, लेकिन किसानों ने उनका सामना कर उन्हें वहां से भगा दिया। पुलिसकर्मियों को उन्हें तितर-बितर करने के लिए भी भेजा गया, लेकिन मुझे एक युवा मित्र ने सूचित किया, जो नियमित रूप से किसानों के पास जाते हैं और उन्हें भोजन, पानी की बोतलें आदि की आपूर्ति करते हैं, की कई पुलिसकर्मियों ने किसानों को गले लगाया और रोए, हालांकि उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे इसका वीडियो न निकालें ताकि उन्हें पीड़ित न किया जाए।
आखिरकार, अधिकांश पुलिसकर्मी (और सेना के जवान) किसानों के बेटे हैं, और उनके दिल में उनके प्रति सहानुभूति होगी ही।
तीन दिनों की लड़ाई में पदहीन हो गया था फ्रांसीसी राजा चार्ल्स (Charles X )
यह घटना हमें 25 जुलाई 1830 में फ्रांसीसी राजा चार्ल्स (Charles X ) द्वारा जारी किये गए सेंट क्लाउड ऑर्डिनेंस (Saint Cloud Ordinance ) की याद दिलाती हैं। यह ऑर्डिनेंस प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए जारी किया गया था,जिसका परिणाम हुआ 1830 की जुलाई क्रांति, जिसने तीन दिनों की बैरिकेड लड़ाई के बाद राजा को पदहीन कर दिया।
फरवरी 1917 में रूसी सैनिकों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था, जिससे उनमें उल्टा प्रदर्शनकारियों के साथ अपनेपन का एहसास जगा, और परिणामस्वरूप फ़रवरी क्रान्ति (February Revolution ) हुई, जिससे ज़ारिस्ट (Czarist ) शासन का पतन हुआ।
कुंभकर्ण की नींद से जाग गए हैं किसान
भारत के किसान संख्या में लगभग 75 करोड़ (750 मिलियन) हैं, जो एक बहुत बड़ी ताकत है, और जो अब एक ज्वार की लहर के भाँति उठ खड़ी हो गयी है। नेपोलियन ने चीनी लोगों के बारे में कहा था कि "सोने वाले विशाल जीव को सोने दो, क्योंकि जब वह जागेगा तो दुनिया हिल जाएगी"। आज भारतीय किसानों के बारे में भी यही कहा जा सकता है, जो अब तक कुंभकर्ण की तरह सो रहे थे।
भारत अब तक प्रगति नहीं कर सका क्योंकि हम जाति और धर्म के आधार पर विभाजित थे, और आपस में लड़ रहे थे, और इस कमजोरी का उपयोग हमारे स्वार्थी राजनेताओं ने समाज के ध्रुवीकरण और जाति और सांप्रदायिक घृणा और हिंसा को उकसाकर अपने लिए वोट बैंक बनाने के लिए किया। वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ कर लोगों को एकजुट कर दिया है, जो एक महान ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके अलावा, इन्होंने राजनेताओं को इस मामले से दूरी बनाये रखने के लिए कहा है।
एक विशाल राजनैतिक और सामाजिक जनसंघर्ष में विकसित होगा यह किसान आंदोलन
यह आंदोलन, जो वर्तमान में केवल आर्थिक मांगों के लिए है, जैसे कृषि उपज के लिए उचित मूल्य आदि, बाद में भारतीय जनता के एक विशाल राजनैतिक और सामाजिक जनसंघर्ष में विकसित होगा, जो 10-15 वर्षों तक चल सकता है, लेकिन अंततोगत्वा इसका परिणाम होगा एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बनाना जिसके तहत भारत तेज़ी से औद्योगिकीकरण करेगा, और भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाएगा और भारतीय जनता को उच्च जीवन स्तर और सभ्य जीवन भी देगा।
भारतीय किसान दीर्घायु हों !
जस्टिस मार्कंडेय काटजू,
पूर्व न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया
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