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केजरीवाल ने चन्नी को बेईमान आदमी बताया था
20 जनवरी को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal) ने पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Punjab Chief Minister Charanjit Singh Channi) को बेईमान आदमी बताया। यह जोर देते हुए कि उन्हें आम आदमी न समझा जाए। यानि आम आदमी का पेटेंट अकेले उनके पास है, और इस नाते ईमानदारी का भी।
केजरीवाल ने चन्नी के भतीजे के घर पर ईडी के छापे की तुरत-फुरत प्रतिक्रिया में यह बयान दिया था। तब से दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल रहा है, जो चुनाव के अंतिम दिन तक जारी रह सकता है।
मैंने इंतजार किया कि कोई पत्रकार, विश्लेषक अथवा विद्वान केजरीवाल के इस बयान पर टिप्पणी करेगा। लेकिन अभी तक मेरे देखने में ऐसा नहीं आया है।
केजरीवाल के बाद आम आदमी पार्टी (आप) के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भगवंत सिंह मान का बयान आया कि वे खुद सुरक्षित सीट से उम्मीदवार नहीं हो सकते, इसलिए चन्नी को अपनी सुरक्षित सीट छोड़ कर उनकी असुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत दिखानी चाहिए।
भगवंत सिंह मान के बयान पर भी खबर के अलावा कोई टिप्पणी देखने को नहीं मिली है। लिहाजा, यह संक्षिप्त टिप्पणी।
यदि कांग्रेस की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह या मौजूदा उपमुख्यमंत्री सुखजिन्दर सिंह रंधावा सरीखा कोई नेता मुख्यमंत्री का चेहरा होता, तो केजरीवाल उन्हें सीधे बेईमान बताने से बचते। भले ही पूरी कांग्रेस को बेईमानी के कटघरे में खड़ा करते। अगर ईडी का ऐसा छापा शिरोमणि अकाली दल के नेता या नई बनी पंजाब लोक कांग्रेस के नेता के यहां पड़ा होता, तब भी केजरीवाल उसे सीधे बेईमान आदमी बताने से बचते। भगवंत सिंह मान भी चन्नी के अलावा कांग्रेस का कोई अन्य मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार होता, तो उसे धुरी से चुनाव लड़ने की चुनौती शायद नहीं देते।
मैंने यह टिप्पणी चन्नी के बचाव में नहीं लिखी है। मुझे केजरीवाल का बयान सुन कर इंडिया अगेंस्ट करप्शन (India Against Corruption आईएसी) के तत्वावधान में आयोजित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन (anti corruption movement) की, और भगवंत सिंह मान का बयान सुन कर उसके पहले के यूथ फॉर इक्वेलिटी अभियान (Youth for Equality campaign) की याद हो आई।
सभी जानते हैं भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के मंच से ‘बेईमान’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनकी सरकार और पार्टी पर हमला बोला जा रहा था, और ईमानदार विकास-पुरुष नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की जा रही थी। तभी कुछ ‘बेईमान’ तत्वों ने ‘ईमानदार’ केजरीवाल द्वारा अपनी नौकरी के दौरान नौ लाख रुपया दबा लेने का मामला उछाल दिया। पता चला कि वे सरकारी खर्चे पर विदेश गए थे; लौटने पर नियमत: उन्हें तीन साल नौकरी करनी थी; और वैसा नहीं करने पर नौ लाख रुपया विभाग में जमा करना था।
प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज के सौजन्य से उन दिनों केजरीवाल की ‘ईमानदारी’ का बाज़ार-भाव आसमान छू रहा था। उनके खिलाफ यह मामला रोशनी में लाने वालों पर नागरिक समाज शेर की तरह टूट पड़ा। (शेर के समर्थक भी शेर ही होते हैं!) उन्होंने कहा जरूर डूबी हुई बेईमान कांग्रेस ने यह मामला खोज कर निकाला है।
केजरीवाल ने पैंतरा लिया कि जिस नौकरी में वे थे, उसमें करोड़ों कमा सकते थे। यानि नौ लाख की मामूली रकम के लिए वे अपना ईमान भला क्यों बिगाड़ते!
उन्होंने जानबूझ कर दबाया हुआ नौ लाख रुपया संबद्ध विभाग में जमा न करके, सीधे ‘बेईमान’ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चेक से भेजा। इसी तरह कुछ ‘नाशुक्रे’ तत्वों ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और उस आंदोलन की राख से बनी आम आदमी पार्टी को देश और विदेशी स्रोतों से मिलने वाले धन पर कुछ कानूनी सवाल उठाए, तो नागरिक समाज ने उसे भी बेईमान कांग्रेस की करतूत बता कर खारिज कर दिया।
अलबत्ता, जब अन्ना हजारे ने कहा कि लोगों से मिले सार्वजनिक चंदे का हिसाब बताया जाना चाहिए, तो केजरीवाल ने सीधे नागरिक समाज को बताया कि उन्होंने जीवन में ईमानदारी के अलावा कुछ नहीं कमाया है। इतना सुनते ही नागरिक समाज केजरीवाल और अपनी ईमानदारी के नशे में झूमने लगा था। (केजरीवाल और नागरिक समाज के एक-दूसरे को सहलाने वाले ईमानदारी विमर्श पर विस्तृत ब्यौरे के लिए मेरी पुस्तक ‘भ्रष्टाचार विरोध : विभ्रम और यथार्थ’, वाणी प्रकाशन, दिल्ली, 2014 देखी जा सकती है।)
यूथ फॉर इकवेलिटी अभियान लोगों को याद होगा।
आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ चलाए गए उस अभियान के तहत दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ा प्रदर्शन किया गया था। उस प्रदर्शन में केजरीवाल और मनीष सिसोदिया शामिल हुए थे। दरअसल, मेरिट के पक्ष में चलाया गया वह अभियान इन्हीं दो महाशयों के द्वारा पोषित था।
तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है। यह अकारण नहीं है कि केजरीवाल चन्नी को सरेआम बेईमान आदमी कह सकते हैं; और भगवंत सिंह मान चुनावी जंग में खुलेआम चन्नी की मेरिट का मुद्दा उछाल सकते हैं। उन्हें ऐसा करने का अधिकार भारत के प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज ने दिया हुआ है।
मैं यह नहीं कहता कि चन्नी ईमानदार राजनेता हैं; और ईडी ने, जैसा कि चलन है, केंद्र के इशारे पर उनके भतीजे के घर पर छापा मारकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है। चन्नी भी देश के अन्य ज्यादातर लोगों और नेताओं की तरह बेईमानी और ईमानदारी का मिश्रण होंगे। उनके सगे-संबंधी भी उनकी हैसियत का बेजा फायदा उठाते होंगे। नेताओं के हाथ में देश का खजाना और समस्त सम्पत्तियां होती हैं। इसलिए उनकी बेईमानी भी बड़ी से बड़ी हो सकती है। आम आदमी को नौ लाख की साधारण रकम दबा कर संतोष करना पड़ सकता है।
कहना इतना भर है कि केजरीवाल प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष नागरिक समाज से मान्यता-प्राप्त ईमानदार हैं, जो कभी भी, किसी को भी, बेईमान बता सकते हैं। चन्नी भले ही लंबे समय से पंजाब की राजनीति में सक्रिय रहे हों, भले ही उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में भरसक ईमानदारी का निर्वाह करने की कोशिश की हो, उन्हें बेईमान आदमी कहा जा सकता है।
प्रेम सिंह
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और भारतीय अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फ़ेलो हैं)
Web title : Is Channi really dishonest and Kejriwal an honest man! Learn