कांग्रेस महाधिवेशन : ढाक के तीन पात, राहुल खड़गे प्रियंका?

कांग्रेस महाधिवेशन : ढाक के तीन पात, राहुल खड़गे प्रियंका?

Is Priyanka Gandhi getting any big responsibility?

कांग्रेस महाधिवेशन 2023 : किन सवालों के जवाब नहीं मिले? क्या मोदी का रास्ता रोकने में सक्षम है कांग्रेस ?

भारत जोड़ो यात्रा की छत्रछाया में कांग्रेस का 85 वां पूर्ण सत्र भी सम्पन्न हो गया। कांग्रेस ने हुंकार भी कर ली। प्रियंका गांधी का लाल गुलाबों से जबर्दस्त स्वागत भी हो गया। लेकिन दो सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी है। एक- क्या भारत जोड़ो यात्रा और कांग्रेस महाधिवेशन ने विपक्ष की एकता की कोशिशों को तेज किया और दूसरा यह कि क्या कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में किसी नए जोश उदय हुआ है?

इन दोनों सवालों के जवाब में ही 2024 का रोडमेप छुपा हुआ है। अगर सवालों का जवाब हां में है तो भाजपा के लिए चिन्ता की बात है। और अगर कांग्रेस इन सवालों के बारे में सोचती ही नहीं है या कोई जवाब नहीं है तो फिर मोदी का रास्ता रोकने वाला कोई नहीं है।

कांग्रेस के सबसे बड़े राजनीतिक अभियान पूरे हो गए। मगर इनके परिणाम इस पर निर्भर करेंगे अब कांग्रेस क्या करती है। कितना सक्रिय होती है। इस साल जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव होना हैं वहां कैसा लड़ती है।

क्या 2024 में सप्रेम हार जाने के लिए तैयार है कांग्रेस?

कांग्रेस के अधिकांश नेता यात्रा को ही साध्य समझ रहे हैं। ऐसे ही संगठन चला रहे लोग महाधिवेशन की सफलता को बड़ी बात मान रहे हैं। मगर यह सब निरर्थक हैं अगर आप 2014, 19 की तरह ही सप्रेम हार जाते हैं। 2024 की हार कांग्रेस को खत्म कर देगी। नाम बना रहेगा, संगठन बना रहेगा मगर वह कांग्रेस खत्म हो जाएगी जिसने 77 में हार के बाद 1980 में और फिर 2004 में वापसी की थी।

वर्ष 2004 और 2024 की परिस्थितियों में क्या अंतर है?

समस्या यह है कि कांग्रेस जरूरत से ज्यादा सिद्धांतवादी और अकादमिक हो रही है। सोनिया गांधी की गिनती हम पिछले 25 सालों के सबसे तेज बुद्धि की राजनीतिक नेताओं में करते हैं। 2004 में वाजपेयी जैसे दिग्गज को हराने वाली। उस समय का इतिहास लिखा जाना अभी शेष है। कोई सोनिया को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं था। विदेशी मूल को ऐसा मुद्दा बना दिया गया था कि लगता था कि यह सवाल कांग्रेस को ही खत्म कर देगा। शरद पवार, तारीक अनवर, संगमा ने इस सवाल पर कांग्रेस को छोड़ दिया था। सुषमा स्वराज ने सिर मुंड़ाने, सफेद वस्त्र धारण करने, भूमि शयन करने जैसी धमकियां दीं।

कांग्रेस के नेताओं को विश्वास ही नहीं था कि जिस सोनिया को वे केवल नरसिम्हा राव और केसरी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए लाए थे वे प्रमोद महाजन जैसे चतुर नेता को मात दे सकती हैं। राजनीति में पूरा व्यक्तित्व कई बार सामने नहीं आ पाता है। प्रमोद महाजन के साथ ऐसा ही हुआ। उनके बाद मोदी और अमित शाह जैसे प्रभावशाली लोगों के आ जाने के बाद लोग महाजन का कद कम करके आंकने लगे। मगर महाजन ने वाजपेयी के पांच साल जैसा कांग्रेस को घर बिठाकर रखा था, वैसा फिर नहीं हुआ।

राहुल गांधी का चरित्रहनन बहुत किया गया। सोनिया राहुल से कई-कई दिनों तक ईडी पूछताछ करती रही। मीडिया पूरी तरह गोदी मीडिया में बदल गया मगर राहुल लड़ते रहे। यह अलग बात है कि उनकी लड़ाई किसी ठोस परिणाम में नहीं बदल पाई मगर जैसा निराशा का वातावरण वाजपेयी शासनकाल में कांग्रेस में छा गया था वैसा पिछले 9 साल में नहीं हुआ।

और अब जैसा कि सोनिया ने अपने भाषण में जिक्र किया कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा की एक अच्छी पारी के साथ अपनी पारी खत्म करते हुए वे बहुत गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। यह सोनिया का बड़प्पन है। वे यात्रा और यात्रियों को श्रेय दे रही हैं।

इसी भाषण में सोनिया गांधी ने 2009 की जीत का श्रेय मनमोहन सिंह को दिया। ठीक है। नेता को ऐसा ही होना चाहिए। मगर तब जबकि पार्टी और उसके नेता इसे सही संदर्भों में समझें।

क्या महाधिवेशन में कांग्रेस ने अपनी कमजोरियों का विश्लेषण किया?

कांग्रेस 2004 की जीत से लेकर 2014 की हार और फिर 19 की हार का आज तक कोई सत्य विश्लेषण नहीं कर पाई है। वह समझती ही नहीं है कि जब तक वह अपनी कमजोरियों को नहीं ढूंढ पाएगी तब तक वह उन्हें दूर नहीं कर सकती। बड़ा बैट्समेन खुद जानता है नहीं तो उसका कोच उसे बताता है कि बल्ला सीधा क्यों नहीं आ रहा और फिर वह नेट पर उस कमी को दूर करता है। मगर 2004 की हार के बाद से आज तक कांग्रेस ने खुद पर पुनर्विचार नहीं किया। और इस महाधिवेशन में भी ऐसा कुछ दिखा नहीं।

सीडब्ल्यूसी की सीटें बढ़ाना, उसमें एससी, एसटी, पिछड़ों, महिला युवा को रिजर्वशन देना, बूथ कमेटी को सबसे प्रारंभिक इकाई मानना जैसे संगठन के काम ठीक हैं। मगर इन सबसे पार्टी में कोई जोश नहीं भरता है। जोश तो भरता है तब जब नेता उसे रोमांचित करने लगे। बैट्समेन मैच जिताने लगे। राहुल अच्छा खेल रहे हैं। मगर राहुल द्रविड़ की तरह शुद्ध कलात्मक खेल दर्शकों को रोमांचित नहीं करता। वह तो मैच पलटने वाले कोहली, धोनी, विव रिचर्डस, जयसूर्या जैसे बल्लेबाजों के पीछे पागल होते हैं।

नए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कार्यकर्ताओं को उत्साह से नहीं भर सकते। राहुल वह काम खुद ही करना नहीं चाहते। जब टीम को तेज गति से रनों की जरूरत है वे क्लासिक कवर ड्राइव दिखाने लगते हैं। दर्शक हाफ पिच पर जाकर बॉलर के सिर के ऊपर से उठाकर मारा गया सिक्सर चाहते हैं। जैसे बाक्सिंग में पाइंट्स के आधार पर नहीं नाक आउट करके जीता हुआ मुक्केबाज देखना चाहते हैं। विपक्ष भी यही चाहता है।

विपक्षी एकता पर नीतीश की सलाह पर कांग्रेस कन्फ्यूज क्यों है?

why is congress confused on nitishs advice on opposition unity
why is congress confused on nitishs advice on opposition unity?

अभी नीतीश जो हाथ बढ़ा रहे हैं उस पर कांग्रेस का कन्फ्यूजन (Why is Congress confused on Nitish's advice on opposition unity?) समझ से परे है। एक तरफ कांग्रेस कहती है कि तीसरा मोर्चा भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगा। दूसरी तरफ नीतीश पर सवाल उठाकर वह उन्हें तीसरे मोर्चे की तरफ ही धकेल रही है। तीसरा मोर्चा तो बना बनाया है। आम आदमी पार्टी, टीएमसी, सपा, केसीआर उसके चार मजबूत स्तंभ तो बन चुके हैं। शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे फैंस पर बैठे लोग उधर ही जाएंगे जो लंबा हाथ बढ़ाएगा।

इस अधिवेशन में कांग्रेस को क्या करना चाहिए था?

कांग्रेस को इसी अधिवेशन में एक छोटी सी मगर बड़े नेताओं वाली एकता समिति बनाकर ठोस मैसेज देना चाहिए था। सबको लगता कि कांग्रेस विपक्षी एकता के लिए गंभीर है। एकता समिति को रविवार को अधिवेशन खत्म होने के साथ काम दिखाना शुरू कर देना चाहिए था।

छोटी समिति। ज्यादा नहीं दो या तीन बड़े नेताओं की। जो विपक्ष से बात करते माहौल बनाते। राजनीति आजकल माहौल की चीज है। माहौल बनाकर ही मोदी और केजरीवाल ने क्रमश: केन्द्र और दिल्ली सरकार पर कब्जा किया था।

people have become dependent on media
people have become dependent on media

आज स्थिति क्या है? कहीं कोई मैसेज ही नहीं है। जनता मीडिया पर डिपेंड हो गई है। मगर चैनलों और अखबारों से अधिवेशन गायब है। और जो छोटे एवं मध्यम अख़बार एवं यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया उसे दिखा रहे हैं उन्हें कांग्रेस मानती नहीं है। जैसे अपने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं की तरफ कांग्रेस देखती नहीं है वैसे ही विपक्ष का दायित्व निभाने और जनता की आवाज उठाने को अपना पत्रकारिय दायित्व मानने वाले अख़बार,चैनलों को कांग्रेस कोई महत्व नहीं देती है।

खैर तो जनता में परिवर्तन की उम्मीद पैदा करने और कार्यकर्ताओं में जोश जगाने का इस अधिवेशन में एक ही मौका देखने को मिला। वह तब जब प्रियंका गांधी रायपुर आ रही थीं। उनके स्वागत में सड़क पर गुलाब बिछा दिए गए।

क्या प्रियंका गांधी को कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है?

क्या यह कोई संकेत है। राहुल के लिए सोनिया के लिए नहीं। नए अध्यक्ष जिनकी अध्यक्षता पर मुहर लगाने के लिए यह पूर्ण सत्र होता है उनके लिए नहीं। केवल प्रियंका के लिए! क्या उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल रही है। नई जिम्मेदारी मिलना तो तय है मगर क्या वह इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण होगी कि प्रियंका का गुलाब की पंखुड़ियां बिछाकर स्वागत किया जाए?

शकील अख्तर

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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