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क्या जलवायु संकट राजनीतिक मुद्दा है?
जलवायु संकट कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है और न कोई सामाजिक चेतना है। हाल यह है कि बरसात का मौसम सिरे से गायब है। खेती अब पेट्रोल डीजल बिजली पर निर्भर है। धान के मौसमी फसल इसी तरह तैयार खड़ी है।
अब पिछले साल की तरह फिर सितंबर में भारी वर्षा। पहाड़ों में अतिवृष्टि, भूस्खलन और बाढ़। बंदरों और सूअरों के साथ मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों की संख्या जरूर बढ़ रही है। अलग पर्वतीय राज्य की यही एकमात्र उपलब्धि है।
यह सिर्फ उत्तराखंड का मामला भी नहीं है। बंगाल से लेकर महाराष्ट्र, समूचे मध्य भारत, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड में अब बेमौसम बारिश है। किसानों की मेहनत, फसल और लागत पानी पानी है।
बारिश का जो हाल है, वह तो है ही विकास और दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भी पानी पानी है। जिस उधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून जिलों के विकास का ढोल पीटा जाता है, वहां सड़कों पर भव्य गेट तो बन गए हैं, सड़कें नहीं हैं।
औद्योगिक नगरी के रूप में मशहूर रुद्रपुर की आधी आबादी बारिश से विस्थापित हो जाती है। पानी निकासी का कोई इंतजाम नहीं है। अंधाधुंध बाजारीकरण में शहर क्या, कस्बा क्या और गांव क्या, कहीं भी न सड़कें हैं और न जल निकासी का इंतजाम। नदियों, नालों की हत्या कर दी गई है। पिछले साल भी बेमौसम बारिश से किसान तबाह हुए और इस साल भी तबाही का मौसम है। दो दिन की बारिश में सड़कों पर बाढ़, खेतों में नदियां और गांव, कस्बे बाकी देश से कटे अलग अलग द्वीप।
बसंतीपुर की सड़क कौन बनाएगा, इसे लेकर लम्बी राजनीति चल रही है। हरिदासपुर में भव्य गेट तैयार है और सड़क बहती हुई नदी है। पिछली बार दिनेशपुर थाने के सामने नदी बह रही थी।
दिनेशपुर में हाल यह हैं कि मेंढक के पेशाब से भी बाढ़ आ जाती है। खासकर थाने के सामने Dineshpur पुलिया तक। कल शाम से लगातार बारिश हो रही है। हालत फिर पिछले साल का जैसा। पत्रिका के कविता विशेषांक पर काम चल रहा है। दफ्तर जाना जरूरी है। आज विश्वकर्मा पूजा भी है। टेंपो टुकटुक शाम तक नहीं चलेंगे। साप्ताहिक हाट बंद है। तीन दिन मूसलाधार बारिश की चेतावनी के साथ डीएम के निर्देश से शिक्षा संस्थान बंद हैं। फिर भी हम 10 बजे रोज की तरह तैयार हो गए। लेकिन बारिश रुकी ही नहीं और सड़कें नदियां बन गई हैं। खेतों का नजारा बहुत बुरा है। हर साल यह तबाही का आलम है। न सरकार और प्रशासन को कोई परवाह है और न भुक्तभोगी किसानों, मजदूरों और आम जनता को।
कच्चा तेल का भाव 90 डॉलर तक गिर गया और इस देश में कीमतें नहीं गिर रही। थोक महंगाई पिछले 11 महीने से दहाई अंक में है। खाद्य वस्तुओं की थोक महंगाई 120 प्रतिशत पार है, और जरूरी वस्तुओं की थोक महंगाई 15 प्रतिशत। फिर भी पारिवारिक बचत और आय बढ़ने का शोर। मुकेश अंबानी तक की हालत पतली है। हां, अदानी जरूर दुनिया में दूसरे नंबर के अमीर बन गए। उनके आगे अब सिर्फ मस्क हैं। इस हिसाब से भारत को दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्था कहें कोई तो भी न मीडिया और न जनता की ओर से कोई सवाल उठाएगा।
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Is the climate crisis a political issue?