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लेखक एच एल दुसाध बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इन्होंने आर्थिक और सामाजिक विषमताओं से जुड़ी गंभीर समस्याओं को संबोधित ‘ज्वलंत समस्याएं श्रृंखला’ की पुस्तकों का संपादन, लेखन और प्रकाशन किया है। सेज, आरक्षण पर संघर्ष, मुद्दाविहीन चुनाव, महिला सशक्तिकरण, मुस्लिम समुदाय की बदहाली, जाति जनगणना, नक्सलवाद, ब्राह्मणवाद, जाति उन्मूलन, दलित उत्पीड़न जैसे विषयों पर डेढ़ दर्जन किताबें प्रकाशित हुई हैं।
It is important to know for the democratic revolution in the country: Who are the Hindus!
Who is hindu - Ambedkarites often criticize Hindus.
अंबेडकरवादी अक्सर ही हिंदुओं की आलोचना करते रहते हैं। लेकिन ऐसे लोगों से जब कोई प्रतिप्रश्न करते हुये पूछता है कि हिन्दू कौन (Who is hindu in Hindi)? वे बगले झाँकने लगते हैं। जवाब भी देते हैं तो उनपर करुणा ही होती है। वास्तव में हिन्दू कौन, इसका सटीक उत्तर सामने आना जरूरी है। क्योंकि ' हिन्दू' शब्द की आड़ में ही भारत का अत्यंत अल्पजन जन्मजात शोषक वर्ग खुद को प्रोटेक्ट करने में सफल हो जाता है: हिन्दू की सही समझ न होने के कारण ही गैर-हिन्दू उन लोगों को भी टार्गेट कर लेते हैं, जो वास्तव मे हिन्दू नहीं हैं।
यह सही है कि इस्लाम विजेताओं ने भारत के हारे हुये लोगों को 'हिन्दू' कहना शुरू किया। हिन्दू कहने के पीछे उनका आशय पराधीन बनाए गए लोगों को 'गुलाम' के रूप मे एड्रेस करना ही रहा होगा। हो सकता है इन्हें 'काला', 'चोर' बताना भी मकसद रहा हो, किन्तु मुख्यतः 'गुलाम' के रूप एड्रेस करने के लिए उन्होंने 'हिन्दू' शब्द का ईज़ाद किया होगा, ऐसा मेरा मानना है।
आज इस्लाम विजेताओं का ईज़ाद किया हुआ शब्द ही भारत और भारत के मूलनिवासियों के लिए ‘आफत' बन गया है। क्योंकि इसी शब्द से विकसित 'हिन्दुत्व' की आड़ में भारत के प्राचीनतम साम्राज्यवादी (आर्यों) की वर्तमान पीढी देश के सम्पदा-संसाधनों -सत्ता पर एकाधिकार स्थापित करने मे समर्थ हुई है। बहरहाल हिन्दू कौन, इस पर विस्तार से कभी लिखुंगा। अभी सिर्फ संक्षेप में।
जिस हिन्दू धर्म से आज हिंदुओं की पहचान है, वह हिन्दू -धर्म, हिन्दू भगवान द्वारा सृष्ट वर्ण-धर्म है, जिसमें जीवन का चरम लक्ष्य मोक्ष अर्जित करने के लिए हिन्दू भगवान के विभिन्न पार्ट्स से जन्मे 4 किस्म के मानव समुदायों का कर्म (profession ) निर्दिष्ट किया गया है।
यदि विभिन्न वर्णों के प्रोफेशन पर गौर करें तो पाएंगे कि वर्ण-व्यवस्था के प्रवर्तकों ने शक्ति के समस्त स्रोत (आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक-धार्मिक ) चिरस्थाई तौर पर ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्यों के लिए आरक्षित करने के कुत्सित उद्देश्य से ही वर्ण व्यवस्था को जन्म दिया था। वहीं इसमें बड़े शातिरना अंदाज़ में मूलनिवासियों(दलित-आदिवासी-ओबीसी ) को शक्ति के समस्त स्रोतों से बहिष्कृत कर चिरकाल के लिए अशक्त व गुलाम ही बना दिया था।
इस सिद्धांत के आधार पर ब्राह्मण-क्षत्रिय- वैश्य ही असल हिन्दू हैं, जिन्हे sources of power के भोग का हजारों साल से दैविक-अधिकार (divine right) रहा है।
दूसरी ओर मूलनिवासी बहुजन sources of power से पूरी तरह exclude(बहिष्कृत) होने के कारण divine slaves (दैविक- गुलाम) की श्रेणी में आते हैं।
तो संक्षेप मे हिन्दू वह हैं जिन्हें शक्ति के स्रोतों के भोग का अधिकार हिन्दू-धर्म और हिन्दू भगवानों ने दिया है। वर्ण-व्यवस्था का अर्थशास्त्र चीख-2 कर बताता है, कि बहुजनों को दैविक अधिकारी वर्ग का गुलाम बनाए रखने के लिए ही, उन्हें उस वर्ण-व्यवस्था के प्रावधानों के तहत ऐसा जीवन जीने के लिए विवश किया गया, जिसमें वे निःशुल्क दास बनने के लिए अभिशप्त हुये।
हाँ, हजारों साल से वर्ण-व्यवस्था के प्रावधानों के तहत जीवन- यापन करते रहने के कारण हिन्दुत्ववादी यदि शूद्रातिशूद्रों को हिन्दू कहने का दावा करते हैं तो वह गलत भी नहीं है। किन्तु साथ में यह भी सत्य है कि वर्ण उर्फ हिन्दू धर्म में उनकी स्थिति विशुद्ध गुलामों की रही है। जिन बहुजनों को अपने दासत्व का इल्म हुआ वे वर्ण-धर्माधारित हिन्दू धर्म से नाता तोड़कर अन्य धर्मों का आश्रय ले लिए।
दैविक गुलाम (divine-slaves) अधिकांश बहुजन ही इस फर्क को न समझ पाने के कारण ही खुद को गर्व से हिन्दू कहते पाये जाते हैं। इनको इस बात का इल्म ही नहीं है कि वे जिन मानवीय अधिकारों का भोग कर रहे हैं, उसका सारा श्रेय आईपीसी के जनक लॉर्ड मैकाले और संविधान निर्माता डॉ आम्बेडकर को जाता है।
मैकाले ने जहां आईपीसी के जरिये ‘मनु लॉं’ के द्वारा गुलाम की श्रेणी मे पहुंचाए गए शूद्रातिशूद्रों को भी कानून की नज़रों मे एक बराबर किया, वहीं बाबा साहब ने उन्हें शक्ति के स्रोतों मे शेयर दिलाने का चमत्कार किया।
हिन्दू धर्म और 33 करोड़ हिन्दू देवी-देवता का उन्हे अधिकारसम्पन्न करने मे रत्ती भर भी योगदान नहीं, यह बात समस्त बहुजनों को ही समझाना चाहिये। वर्ण-व्यवस्था मे शूद्रातिशूद्रों की स्थिति को ठीक से नहीं समझ पाने के कारण ही गैर - हिन्दू धर्मावलम्बी भी बहुजनों को हिन्दू समझ कर रणनीतिक भूल करते रहते हैं। उनके ऐसा समझने और समझाने पर हिन्दू गुलाम भी हिन्दू शोषकों का ढाल बनकर सामने आ जाते हैं।
अतः हिन्दू कौन !, यह जानने के बाद ही हिन्दुत्व के नाम पर देश को नर्क बनाने वालों के खिलाफ़ सही रणनीति बनाई जा सकती है, जो इतिहास की बहुत बड़ी जरूरत है।
आज गर्व से ‘हिन्दुत्व’ का उद्घोष करने वाला अल्पजन सुविधाभोगी वर्ग ही भारत में शक्ति के समस्त स्रोतों - पुलिस- सेना - न्यायपालिका सहित सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरियों; सप्लाई, डीलरशिप, ठेकों-पार्किंग-परिवहन्, ज्ञान के केन्द्रों, फिल्म-मीडिया, मंत्री मंडलों- ब्यूरोक्रेसी- पौरोहित्य इत्यादि- पर एकाधिकार जमा कर देश को समस्यायो के दलदल फंसा दिया है। शक्ति के स्रोतों पर इसके अतिशय आधिपत्य के कारण आज अभागा भारत मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, ‘आर्थिक और सामाजिक गैर-बराबरी’ से सर्वाधिक आक्रांत देश बन गया है।
आज हिन्दुत्व के नाम पर मतवाला बनाए गए गुलाम बहुजनों के वोटों के ज़ोर से मिली सत्ता का लाभ उठाकर ही यह वर्ग शक्ति के चप्पे-चप्पे पर 100% कब्जा जमाने की दिशा में आगे बढ़ रहा हैं। वंचितों में बिखराव का लाभ उठा कर ही यह दलित-आदिवासी -पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को एक-एक कर निशाने पर ले रहा है। इनको सिर्फ वंचित हिन्दू गुलामों की तानाशाही सत्ता के ज़ोर से नियंत्रित किया जा सकता है, जैसे दक्षिण अफ्रीका के लोगों ने तानाशाही सत्ता के ज़ोर से कर दिखाया। आज वहाँ शक्ति के स्रोतों पर एकाधिकार जमाये गोरों को मूलनिवासी कालों ने तानाशाही सत्ता के ज़ोर एक लाचार समूह मे तब्दील कर दिया है। तानाशाही सत्ता के ज़ोर से ही उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में 80 -90 प्रतिशत कब्जा जमाये गोरों को 9-10 प्रतिशत अवसरों पर गुजर-बसर करने के लिए मजबूर कर दिया है ।
तानाशाही सत्ता के ज़ोर से ही मंडेला के लोगों ने दक्षिण अफ्रीका की भूमि पर 72 प्रतिशत भूमि पर कब्जा जमाये गोरों की सारी जमीन झटके से संसद मे प्रस्ताव पास कर ले लिया। दक्षिण अफ्रीका में काले तानाशाही सत्ता के ज़ोर से जिस तरह गोरों को नियंत्रित करते जा रहे हैं, उससे गोरे आज दक्षिण अफ्रीका छोडने के लिए मजबूर हो गए है।
आज जो लोग हिन्दुत्व और हिंदुओं से त्रस्त हैं, उन्हे दक्षिण अफ्रीका मूलनिवासियों से प्रेरणा लेकर सिर्फ और सिर्फ शक्ति के स्रोतों के संख्यानुपात मे बँटवारे के मुद्दे पर हिंदुत्ववादियों के खिलाफ देश के तमाम वंचितों को संगठित करना होगा। हिन्दुत्ववादी सत्ता ने देश के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग को जिस विवेकहीन तरीके से और शक्तिसंपन्न करने की नीतियाँ अख़्तियार की है, उससे वह सापेक्षिक वंचना (Relative deprivation) तुंग पर पहुँच गयी है, जिस कारण ही सारी दुनिया मे क्रांतियाँ होती रही हैं। इस सापेक्षिक वंचना के कारण आज वंचितों की तानाशाही सत्ता के लिए दक्षिण अफ्रीका से भी बेहतर हालात पैदा हो गए हैं। ऐसे हालात में हिन्दुत्ववादियों के खिलाफ रणनीति बनाते समय धर्मनिरपेक्षता जैसे व्यर्थ के मुद्दे से दूर रहना होगा। धर्मनिरपेक्षता उस देश मे प्रभावी हो सकती है, जहां के लोग सभ्य व विवेकवान हैं।
भारत अभी अर्द्ध-सभ्यावस्था में है, जहां धर्मनिरपेक्षता देश के प्रगतिशील तबकों का एक शगल मात्र है, जिसके कारण ही मण्डल उत्तरकाल मे हिन्दुत्ववादी सत्ता दृढ़ से दृढ़तर होती गयी है।
बहरहाल हिन्दुत्व-विरोधी ताक़तें यदि भारत को सुदर और संमतामूलक देश बनाने के लिए शक्ति के स्रोतों के वाजिब बँटवारे के मुद्दे पर हिन्दुत्ववादियों के खिलाफ लामबंद होने का मन बनाती हैं तो इसके लिए उन्हे हिन्दू कौन की सही जानकारी देने को सर्वोच्च स्थान पर रखना होगा । जिस दिन इस देश के वंचितों को ‘हिन्दू कौन ?’ की सही जानकारी हो जाएगी, उसी दिन देश मे लोकतान्त्रिक क्रान्ति की जमीन तैयार होने के साथ हिन्दुत्ववादियों की उल्टी गिनती भी शुरू हो जाएगी।
एच एल दुसाध