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It is meaningless to expect morality from the Modi government!
दैनिक भास्कर और भारत समाचार चैनल पर आयकर छापे (Income Tax raids on Dainik Bhaskar and Bharat News Channel) को लेकर विपक्ष समेत देश के बुद्धिजीवी ये जो हायतौबा कर रहे हैं, इसका मोदी सरकार पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। जिस सरकार ने लोकतंत्र के प्रहरी सभी तंत्रों को अपना बंधुआ बना रखा हो वह भला अपने खिलाफ किसी अखबार में खबरें प्रकाशित होने या फिर चैनल में दिखाने को कैसे बर्दाश्त कर सकती है ?
जब देश का सारा मीडिया मोदी सरकार का भोंपू बना हुआ है तो दैनिक भास्कर और भारत समाचार चैनल की जुर्रत कैसे हो गई मोदी सरकार की खामियां गिनाने लगे।
जब आज के मीडिया के पत्रकार भाजपा और आरएसएस के नेता हैं तो किसी अखबार या चैनल के कर्मचारी को पत्रकार बनना मोदी सरकार कैसे बर्दाश्त कर सकती है ?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना की पहली लहर में लोगों से थालियां और तालियां बजवाई, मीडिया मोदी सरकार का भोंपू बना रहा। प्रधानमंत्री ने देश को कोरोना से बचवाने में अपनी भूमिका का बखान करने को कहा तो 'मोदी ने देश को बचा लिया' कहकर मीडिया ने उन्हें भगवान की उपाधि दे दी। कोरोना की तीसरी लहर में जब संक्रमित मरीज दम तोड़ रहे थी, उनकी चिताएं जल रही थी तो प्रधानमंत्री बिना मास्क लगाए लाखों लोगों की रैली को संबोधित करते हुए प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मजाक उड़ाते हुए दीदी-दीदी चिल्ला रहे थे। मोदी के इस अभिनय में भी मीडिया उनका सहयोग कर रहा था।
मोदी सरकार ने लोगों की रोजी-रोटी खत्म कर दी पर मीडिया मोदी सरकार की इच्छानुसार हिन्दू-मुस्लिम, धर्मांतरण, पाकिस्तान-चीन मुद्दे पर डिबेट कराता रहा। कोरोना की पहली लहर तो तब्लीगी जमात की वजह से आ गई थी पर दूसरी लहर की वजह देश के मीडिया ने नहीं बताई। दूसरी लहर ने देश में लाखों लोग आक्सीजन की कमी से दम तोड़ गये पर मोदी सरकार की नजरों में एक भी संक्रमित मरीज आक्सीजन की कमी से नहीं मरा। ऐसे में यदि कोई अखबार या चैनल इस अराजक सरकार की पोल खोलेगा तो इसमें बैठे लोग कैसे बर्दाश्त करेंगे ?
मोदी सरकार तो अपनी हर ताकत का इस्तेमाल सत्ता के लिए करेगी। देखना हमें है कि किस तरह से इस अराजक सरकार से लड़ना है। जगजाहिर है कि ये लोग अंग्रेजों के पैरोकार रहे हैं। अंग्रेजी हुकूमत की तर्ज पर सरकार चला रहे हैं। क्या इन परिस्थितियों में मोदी सरकार से नैतिकता की उम्मीद की जा सकती है ?
विपक्ष समेत बुद्धिजीवी वर्ग नए पीएम आवास पर हो रही फिजूलखर्ची पर चिल्लाता रहा, क्या हुआ ? मोदी सरकार ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से भी अपने पक्ष में कहलवा दिया। प्रधानमंत्री तमाम विरोध के बावजूद अपने लिए दो विशेष विमान लाये न।
एक ओर देश भुखमरी के दौर से गुजर रहा है और दूसरी आरे मोदी सरकार नये संसद भवन पर हजारों करोड़ खर्च कर रही है। क्या इसका विरोध नहीं हुआ ?
सरकार तो दमनात्मक नीति अपनाएगी ही। देखना हमें है कि किस तरह से इस सरकार को मुंह तोड़ जवाब देना है।
हां देश के विपक्ष से भी ज्यादा उम्मीदें पालना बेवकूफी ही होगी। विपक्ष में बैठे नेता भी सत्ता के लिए ही राजनीति कर रहे हैं। इन लोगों ने भी सत्ता का दुरुपयोग कर अकूत संपत्ति अर्जित कर रखी है। इन्हें भी देश और समाज से कोई लेना देना नहीं है। यदि होता तो लोगों को इस तरह से मरने के लिए न छोड़ते।
क्या आजादी की लड़ाई ऐसे ही वातानुकूलित कमरों में बैठकर लड़ी गई थी ? क्या इमरजेंसी के खिलाफ ऐसे ही घर में बैठकर संघर्ष हुआ था ? बिल्ली के भाग से छींका टूटने वाली रणनीति का तो मोदी सरकार पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है। देश में किसान आंदोलन ही है जो मोदी सरकार पर दबाव बना रहा है। यह वजह है कि अब किसान भी चुनाव लडऩे की बात करने लगे हैं।
दरअसल देश के मीडिया का जन्म आजादी की लड़ाई की कोख से हुआ है। आजादी की लड़ाई में किस-किस तरह से अंग्रेजों के दमन के खिलाफ खबरें तैयार होती थी और किस तरह से छपती थी, किसी से छुपा हुआ है क्या ? लड़ने वाले तब भी लड़े थे और आज भी लड़ रहे हैं। गद्दार तब भी थे और आज भी हैं। हां उस समय देश में आजादी की लड़ाई का माहौल था। कुछ अंग्रेजों के पैरोकार को छोड़ दिया जाए तो पूरा देश देशभक्ति से ओतप्रोत था। आज की तारीख में लोग धर्म की अफीम चाटे घूम रहे हैं। धर्म और जाति में बंटे हुए हैं। पार्टियों में आस्था लगाए बैठे हैं। क्षेत्र में बंटे हुए हैं। जहां तक विपक्ष की बात है तो देश में विपक्ष बहुत कमजोर है।
उत्तर प्रदेश में तो विपक्ष नाम की कोई चीज है ही नहीं। पंचायत चुनाव में जनता द्वारा सपा को दी गई ताकत को भी वह न बचा सकी। बसपा ने तो बहुत समय पहले ही भाजपा के आत्मसर्मपण कर दिया है और सपा अपनी गर्दन बचाती प्रतीत हो रही है। आज का विपक्ष एक ओर पुलिस के डंडे से डर रहा है तो दूसरी जेल जान से। विपक्ष के भी अधिकतर नेता अपनी अकूत संपत्ति को बचाने के लिए बैकफुट पर हैं। देश में वंशवाद के बल पर टिका विपक्ष मोदी और योगी सरकार की अराजकता के खिलाफ टिक नहीं पा रहा है।
व्यक्तिगत स्तर पर काफी पत्रकार, सोशल एक्टिविस्ट, साहित्यकार और लेखक मोदी सरकार से टकरा रहे हैं पर विपक्ष के सहयोग के बिना ये लोग अकेले पड़ जा रहे हैं। जमीनी हकीकत तो यह देश में एकमात्र नेता लालू प्रसाद यादव हैं जो मोदी सरकार के दबाव में नहीं आये, नहीं तो विपक्ष के हर नेता ने किसी न किसी रूप में भाजपा और आरएसएस के सामने सिर झुकाया है। यही वजह है कि विपक्ष में एकमात्र नेता लालू प्रसाद यादव ही जेल गये और उनके परिवार पर मोदी सरकार ने पूरा शिकंजा कसने का प्रयास किया।
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने तो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही मोदी को चुनाव जीतने की अग्रिम बधाई दे दी थी। देश में एकमात्र किसान ही है जो मोदी सरकार की अराजक नीतियों से टकरा रहा है। ऐसे में यदि किसान चुनाव लडऩे की बात कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है ?
चरण सिंह राजपूत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।