It is very important for laborers to file political counter-protest to save their lives
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आज फिर औरैया में फरीदाबाद से आ रहे मजदूरों की सड़क दुर्घटना में 26 मजदूरों की दर्दनाक मौत(26 workers killed in road accident of laborers coming from Faridabad in Auraiya) और 15 मजदूरों के जख्मी होने की विचलित कर देने वाली सूचना मिली। लॉकडाउन के चलते अब तक मजदूरों की मौतों का आंकड़ा(The death toll of workers due to lockdown so far) 400 (दी वायर के अनुसार 8 मई तक 350 से ज्यादा थी) पार कर गया है। मजदूरों लॉकडाउन के बाद से उनके हाल पर ही बेबस व लाचार छोड़ दिया गया था।
दरअसल संक्रमण रोकने के लिए घरों में कैद रहने के फरमान को जरूरी बता जिस तरह पलायन के लिए बाध्य किये गए मजदूरों ने जिस तरह असीम कष्टों को झेला, उनके साथ जैसी बर्बरता हुई और पूंजीवादी- सामंती राज्य का जैसा क्रूर चेहरा दिखा, वह बेमिसाल है।
बेशर्मी की हद तो यह है कि सरकारें व पूरा सिस्टम मजदूरों की समस्याओं को हल करने और उन्हें घरों को सुरक्षित भेजने की अपनी जवाबदेही को पूरा करने के बजाय इन हालातों के लिए उन्हें ही जिम्मेवार ठहराया जा रहा है।
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मजदूर जहां थे वहां रूकना संभव इसलिए नहीं है क्योंकि वहां अमानवीय हालात में रहने को विवश हैं और मजबूरन ही हजार हजार किमी पैदल चलने के लिए निकल पड़े हैं, ऐसे में इनके साथ मानवीय द्रष्टिकोण रखने, उन्हें सुरक्षित घरों तक पहुंचाने के बजाय इनके मददगारों पर ही कानूनी_कार्यवाही करना कहां तक वाजिब है !
राजेश सचान, युवा मंच
भविष्य में अगर महामारी का विस्तार गांवों में हुआ तो सरकारें इन मजदूरों को ही जिम्मेदार ठहरायेंगी। जबकि देश में केरल को छोड़ दिया जाये तो महामारी से निपटने का इनका पूरा मॉडल ही धवस्त हो गया है।
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यूनीसेफ ने आगाह किया है कि भारत में आने वाले 6 महीनों में भारत में कोविड-19 महामारी के इतर 5 साल से कम उम्र के 3 लाख बच्चों की मौंते हो सकती हैं। मेडिकल सेवाओं के प्रभावित होने से अन्य बीमारियों से बड़े पैमाने पर मौंते होंगी। इसका सर्वाधिक शिकार गरीब ही होंगे। इसलिए मजदूरों को अपनी जिंदगी बचाने हेतु राजनीतिक प्रतिवाद दर्ज कराना बेहद जरूरी है।
युवा मंच का मजदूरों की पहलकदमी और राजनीतिक प्रतिवाद संगठित करने की मुहिम में हरसंभव सहयोग होगा।