Advertisment

पराली जलाने की समस्या के समाधान में लगेंगे 4-5 साल : पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

author-image
hastakshep
04 Oct 2022
पराली जलाने की समस्या के समाधान में लगेंगे 4-5 साल : पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

parali

Advertisment

पराली जलाने की समस्या : समाधान पर ठोस कार्रवाई की आस जगी

Advertisment

चंडीगढ़, 4 अक्टूबर. वर्ष का वह समय आ चुका है जब धान की कटाई और पराली जलाने का मौसम शुरू हो रहा है। और ऐसा होने के साथ ही दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में वायु प्रदूषण पर बहस फिर से जोर पकड़ रही है। मगर इस बार जो बात हमेशा से अलग है और जिसके चलते इन क्षेत्रों के प्रभावित नागरिकों को उम्मीद की किरण दिख रही है, वो यह है कि इस बार राज्य सरकारों में दोषी कौन पर बहस के बजाय कुछ असल कार्रवाई होने की आशा है। वजह है दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार का होना, जिसके चलते दोनों राज्यों की सरकारें यदि गंभीर हों तो इनकी जुगलबंदी इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए बेहतर समाधान और नतीजे पेश कर सकती है।

Advertisment

पराली जलाने की समस्या के समाधान विषय पर क्लाइमेट ट्रेंड्स, पंजाब विश्वविद्यालय, और पीजीआई चंडीगढ़ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित एक चर्चा में संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रतिनिधि, विशेषज्ञ, व्यवसायी और किसान जमीनी समाधानों पर विमर्ष करने के लिए एक साथ आए।

Advertisment

कचरे का प्रभावी संयोजन कैसे हो सकता है?

Advertisment

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव कुनेश गर्ग ने अपनी बात रखते हुए कहा, “फसल विविधीकरण दीर्घकालिक समाधान नहीं है, क्योंकि इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य फसलों द्वारा बायोमास का उत्पादन नहीं किया जाएगा। यह सिर्फ एक अन्य प्रकार का बायोमास कचरा होगा, जैसे राजस्थान से पंजाब में आने वाली कपास की छड़ें और सरसों के भूसे का कचरा। और इस ईंधन को जलाने का मामला हमेशा बना खबरों में रहेगा। इसलिए हमें समाधानों में विविधिकरण खोजने की जरूरत है, क्योंकि तब ही इस कचरे का संयोजन ही प्रभावी हो सकता है।”

Advertisment

उन्होंने आगे कहा, "ऐसा नहीं है कि समस्या का समाधान नहीं किया जा रहा है, हम इसे ब्लॉक और ग्राम स्तर पर मैप कर रहे हैं, लेकिन समस्या के उचित समाधान के लिए 4-5 साल लगेंगे।"

Advertisment

श्री गर्ग ने आगे कहा कि कि खेतों में आग लगने की घटनाओं की गिनती कर उसे पराली जलाने की घटनाओं से जोड़ कर देखना गलत होगा। उनके अनुसार, सही तरीका होगा उस ज़मीन की पैमाइश करना है, जिस पर आग लगाई जा रही है। इस वर्ष खरीफ सीजन में लगभग 31.13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान उगाया गया है, जो 2021 के 29.61 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसके परिणामस्वरूप इस वर्ष 19.76 मिलियन टन धान की पुआल का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले साल 18.74 था।

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ आदर्श पाल विग ने कहा, “ एक समय था जब बायोमास कचरे को जलाने की सिफारिश की जाती थी। पिछले कुछ दशकों में जैसे-जैसे हमने अधिक यंत्रीकृत किया है, समस्या बढ़ती गई है। समाधान अंततः किसानों को अपनाना होगा क्योंकि यह एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या है जहाँ किसानों के व्यवहार और दृष्टिकोण को भी संबोधित करने की आवश्यकता है। हमें उन किसानों की कहानियों को उजागर करना चाहिए जो पराली नहीं जलाने में सफल रहे हैं और सुनिश्चित करें कि वे अन्य किसानों को अपने अनुभव बता कर प्रोत्साहित और प्रेरित करें।

डॉ आदर्श पाल विग आगे कहते हैं, “परिवेशीय वायु प्रदूषण को आमतौर पर केवल शहरों में ही एक समस्या माना जाता है। मगर हम यह भूल जाते हैं कि खेती का कचरा गांवों में जलाया जा रहा हो। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और वायु गुणवत्ता सूचकांक सभी शहरों पर केंद्रित हैं। शहरीकरण और शहरों में जनसंख्या का विस्फोटक घनत्व हमारी क्षमता से परे है और हम एक विस्फोटक समस्या पैदा कर उसके मुहाने पर हैं। मतलब तमाम ऐसे कारक हैं जो समस्या को ऐसा स्वरूप दे रहे हैं , मगर पारली जलने कि घटना बस बारूद को चिंगारी देने का काम करती है।”

इस वर्ष, मानसून की कमजोर शुरुआत और उत्तर पश्चिमी भारत में देरी से प्रगति और कम प्री-मानसून बारिश ने मिट्टी की नमी को कम कर दिया और खरीफ फसल की बुवाई में देरी की। इसका मतलब पहले से ही देरी से होने वाली फसल थी जिसे सितंबर के अंत में उत्तर पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में व्यापक और लंबे समय तक बारिश के कारण स्थगित कर दिया गया था। इस देरी से मानसून की वापसी के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र गीले हो गए हैं और जगह-जगह जलभराव हो गया है, जिससे किसानों को फसल काटने और अगली फसल की बुवाई के बीच और भी कम समय मिल गया है।

एकीकृत खेती पर ध्यान देने पर बल

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक, डॉ नटराज सुभाष (Dr. Natraj Subhash, Principal Scientist, ICAR-Indian Agricultural Research Institute) ने कहा, “ हमें एकीकृत खेती पर ध्यान देना चाहिए जिसमें लगभग 3 से 4 फसलें और पशुधन शामिल हैं। हमारे पास 64 प्रोटोटाइप मॉडल हैं जिन्हें वर्तमान में कुछ किसानों के साथ आजमाया जा रहा है और सफल मॉडल सरकार को भेजे गए हैं। हम पूरे देश में इसकी वकालत कर रहे हैं। हम 10 साल की अवधि में खेती के पैटर्न पर शोध कर रहे हैं और इससे हमें देश के लिए सर्वोत्तम फसल प्रणाली तय करने में मदद मिलेगी। "

जहां एक ओर राज्य के अधिकारियों द्वारा समस्या स्थल पर ही कुछ समाधान विकसित किए जा रहे हैं – जैसे बिजली संयंत्रों के लिए ब्रिकेट, पराली को बायो-गैस में परिवर्तित करना, ईंट भट्टों को बिजली देना आदि – मगर इससे इतर समस्या के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित किया जाना बाकी है।

सत्र में मौजूद उद्योग जगत की आवाजों ने बताया कि कैसे संबंधित उद्योग को प्रदान करने के लिए खेतों से ठूंठ के कचरे की खरीद के लिए कोई आपूर्ति श्रृंखला बनी नहीं है। उद्यमियों के लिए लॉजिस्टिक्स स्थापित करके स्टार्टअप अर्थव्यवस्था बनाने की गुंजाइश है।

कचरा प्रबंधन में सक्रिय उद्योग चलाने की चुनौतियों पर बोलते हुए, जर्मन कंपनी, वर्बियो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के आशीष कुमार ने कहा, “ हम भारत में इस कचरे का कलेक्शन स्वयं ही करते हैं, क्योंकि उस तरह की आपूर्ति श्रृंखला भारत में मौजूद नहीं। प्रत्येक स्टबल वेस्ट बेल्स का वजन 400-450 किलोग्राम होता है जिसे केवल मैकेनाइज्ड सिस्टम द्वारा ही हैंडल किया जा सकता है। राजस्व सृजन के लिए गैस की खरीद, उत्पादन और अंतिम आपूर्ति की यह पूरी मूल्य श्रृंखला हमारे द्वारा स्वामित्व और संचालित है, इसलिए एक व्यवसाय के मालिक के लिए इसकी जटिलता की कल्पना करें। बायोमास कचरे को ईंधन में परिवर्तित करने का हमारा व्यवसाय मॉडल जिसका उपयोग ऑटोमोटिव या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, 3 राजस्व धाराओं - खाद , गैस और कार्बन क्रेडिट पर जीवित रह सकता है। अभी हम केवल गैस के लिए राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं, लेकिन अन्य दो भारत में स्थापित नहीं हैं और तब तक ये व्यवसाय बहुत व्यवहार्य नहीं होंगे।”

अंत में, पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल ने कहा, 'वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है हम स्थानीय साक्ष्य की प्रतीक्षा करते हुए कार्रवाई में देरी नहीं कर सकते। इसलिए, प्रदूषण नियंत्रण उपायों पर प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।"

It will take 4-5 years to solve the problem of stubble burning: Punjab Pollution Control Board

Advertisment
सदस्यता लें