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Jawaharlal Nehru is the architect of modern India
आधुनिक भारत के निर्माण में पटेल और नेहरू की भूमिका
हमारे देश के कुछ संगठन, विशेषकर संघ परिवार के सदस्य, जब भी सरदार वल्लभभाई पटेल की चर्चा करते हैं तब उनके बारे में दो बातें अवश्य कहते हैं। पहली यह कि सरदार पटेल आज के भारत के निर्माता हैं और दूसरी यह कि यदि कश्मीर की समस्या सुलझाने का उत्तरदायित्व सरदार पटेल को दे दिया जाता तो आज पूरे कश्मीर पर भारत का कब्जा होता।
आजाद भारत में पंडित नेहरू और सरदार पटेल की क्या भूमिका है?
संघ परिवार का हमेशा यह प्रयास रहता है कि आजाद भारत के निर्माण में जवाहरलाल नेहरू की भूमिका (Role of Jawaharlal Nehru in the making of independent India) को कम करके पेश किया जाये और यह भी कि आज यदि पूरा कश्मीर हमारे कब्जे में नहीं है तो उसके लिये सिर्फ और सिर्फ नेहरू जिम्मेदार हैं। संघ परिवार इस बात को भूल जाता है कि आजाद भारत में पंडित नेहरू और सरदार पटेल की अपनी-अपनी भूमिकाएं थीं। जहां सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ से सभी राजे-रजवाड़ों का भारत में विलय करवाया और भारत को एक राष्ट्र का स्वरूप दिया वहीं नेहरू ने भारत को एक शक्तिशाली आर्थिक नींव देने के लिए आवश्यक योजनायें बनाईं और उनके क्रियान्वयन के लिये उपयुक्त वातावरण भी।
नेहरू जी का आधुनिक भारत के निर्माण में योगदान
नेहरू जी के योगदान को तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला, ऐसी शक्तिशाली संस्थाओं का निर्माण, जिनसे भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था स्थायी हो सके। इन संस्थाओं में संसद एवं विधानसभाएं व पूर्ण स्वतंत्र न्यायपालिका शामिल हैं।
दूसरा, प्रजातंत्र को जिंदा रखने के लिये निश्चित अवधि के बाद चुनावों की व्यवस्था और ऐसे संवैधानिक प्रावधान जिनसे भारतीय प्रजातंत्र धर्मनिरपेक्ष बना रहे।
तीसरा, मिश्रित अर्थव्यवस्था और उच्च शिक्षण संस्थानों की बड़े पैमाने पर स्थापना। वैसे नेहरू समाजवादी व्यवस्था के समर्थक नहीं थे परंतु वे भारत को पूंजीवादी देश भी नहीं बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने भारत में एक मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव रखी। इस व्यवस्था में उन्होंने जहां उद्योगों में निजी पूंजी की भूमिका बनाये रखी वहीं अधोसंरचनात्मक उद्योगों की स्थापना के लिये सार्वजनिक क्षेत्र का निर्माण किया। उन्होंने कुछ ऐसे उद्योग चुने जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में ही रखा गया। ये ऐसे उद्योग थे जिनके बिना निजी उद्योग पनप ही नहीं सकते थे। बिजली का उत्पादन पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र में रखा गया। इसी तरह इस्पात, बिजली के भारी उपकरणों के कारखाने, रक्षा उद्योग, एल्यूमिनियम एवं परमाणु ऊर्जा भी सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गए। देश में तेल की खोज की गई और पेट्रोलियम की रिफाईनिंग व एलपीजी की बाटलिंग का काम भी केवल सार्वजनिक क्षेत्र में रखे गये। औद्योगीकरण की सफलता के लिये तकनीकी ज्ञान में माहिर लोगों की आवश्यकता (For the success of industrialization, people who have expertise in technical knowledge are needed) होती है। उद्योगों के संचालन के लिये प्रशिक्षित प्रबंधक भी चाहिए होते हैं।
उच्च तकनीकी शिक्षा के लिये आईआईटी स्थापित किये गये। इसी तरह, प्रबंधन के गुर सिखाने के लिए आईआईएम खोले गए। इन उच्चकोटि के संस्थानों के साथ-साथ संपूर्ण देश के पचासों छोटे-बड़े शहरों में इंजीनियरिंग कालेज व देशवासियों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिये मेडिकल कॉलेज स्थापित किये गये।
चूँकि अंग्रेजों के शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था (country's economy) पूरी तरह चरमरा गई थी इसलिये उसे वापिस पटरी पर लाने के लिये अनेक बुनियादी कदम उठाये गये। उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण था देश का योजनाबद्ध विकास। इसके लिये योजना आयोग की स्थापना की गई। स्वयं नेहरू जी योजना आयोग के अध्यक्ष बने।
योजना आयोग ने देश के चहुंमुखी विकास के लिये पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं। उस समय पंचवर्षीय योजनाएं सोवियत संघ सहित अन्य समाजवादी देशों में लागू थीं परंतु पंचवर्षीय योजना का ढांचा एक ऐसे देश में लागू करना नेहरू जी के ही बूते का था जो पूरी तरह से समाजवादी नहीं था।
उस समय भारत के सामने एक और समस्या थी बुनियादी उद्योगों के लिये वित्तीय साधन उपलब्ध करवाना। पूँजीवादी देश इस तरह के उद्योगों के लिये पूँजी निवेश करने को तैयार नहीं थे। इन देशों का इरादा था कि भारत और भारत जैसे अन्य नव-स्वाधीन देशों की अर्थव्यवस्था कृषि-आधारित बनी रहे। चूँकि पूँजीवादी देश भारत के औद्योगिकरण में हाथ बंटाने को तैयार नहीं थे इसलिये नेहरू जी को सोवियत रूस समेत अन्य समाजवादी देशों से सहायता मांगनी पड़ी और समाजवादी देशों ने दिल खोलकर सहायता दी। समाजवादी देशों ने सहायता देते हुये यह स्पष्ट किया कि वे यह सहायता बिना किसी शर्त के दे रहे हैं। समाजवादी देशों की इसी नीति के अन्तर्गत हमें सार्वजनिक क्षेत्र के पहले इस्पात संयत्र के लिये सहायता मिली और यह प्लांट भिलाई में स्थापित हुआ।
जब पूंजीवादी देशों को यह महसूस हुआ कि यदि वे अपनी नीति पर चलते रहे तो वे समस्त नव-स्वाधीन देशों का समर्थन खो देंगे और उन्हें भारी नुकसान होगा तब उन्होंने भी भारी उद्योगों के लिये सहायता देना प्रारंभ किया।
इस तरह, धीरे-धीरे हमारा देश भारी उद्योगों के मामले में काफी प्रगति कर गया। आजादी के बाद जब हमें समाजवादी देशों से उदार सहायता मिलने लगी तो हमारे देश के प्रतिक्रियावादी राजनैतिक दलों और अन्य संगठनों ने यह आरोप लगाना प्रारंभ कर दिया कि हम सोवियत कैम्प की गोद में बैठ गये हैं।
द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व दो गुटो में विभाजित हो गया था। एक गुट का नेतृत्व अमरीका कर रहा था और दूसरे गुट का सोवियत संघ। भारत ने यह फैसला किया कि वह दोनों में से किसी गुट में शामिल नहीं होगा।
इसी निर्णय के अनुसार हमने अपनी विदेशी नीति का आधार गुटनिरपेक्षता को बनाया। भारत द्वारा की गई इस पहल को भारी समर्थन मिला और अनेक नव-स्वाधीन देशों ने गुटनिरपेक्षता को अपनाया। गुटनिरपेक्षता की नीति की अमेरिका द्वारा सख्त निंदा की गई। तत्कालीन अमरीकी विदेश मंत्री जॉन फास्टर डलेस ने कहा कि जो हमारे साथ नहीं है वह हमारे विरूद्ध है।
हमारे देश के अंदर भी जनसंघ ने भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति की आलोचना की और कहा कि हम समाजवादी देशों के पिछलग्गू बन गये हैं। परंतु हमारी गुटनिरपेक्षता की नीति के कारण सारी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी और जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष देशों के सर्वाधिक शक्तिशाली नेता बन गये। नेहरू जी के बाद इंदिरा गांधी भी इस नीति पर चलीं परंतु अब भारत ने इस नीति को पूरी तरह से भुला दिया है। आर्थिक और विदेश नीति के निर्धारण में मौलिक योगदान के साथ-साथ नेहरू ने हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें मजबूत कीं और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि नेहरू ने भारत को पूरी ताकत लगाकर एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाया। चूँकि हमने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया इसलिए हमारे देश में प्रजातंत्र की जड़ें गहरी होती गईं। जहां अनेक नव-स्वाधीन देशों में प्रजातंत्र समाप्त हो गया है और तानाशाही कायम हो गई है वहीं भारत में प्रजातंत्र का कोई बाल बांका तक नहीं कर सका।
इस तरह कहा जा सकता है कि जहां सरदार पटेल ने भारत को भौगोलिक दृष्टि से एक राष्ट्र बनाया वहीं नेहरू ने ऐसा राजनीतिक-आर्थिक एवं सामाजिक आधार निर्मित किया जिससे भारत की एकता, अखण्डता व प्रजातंत्र इतना सशक्त हुआ कि आज कोई ताकत खत्म नहीं कर सकती। इस तरह आधुनिक भारत के निर्माण में पटेल और नेहरू दोनों का महत्वपूर्ण योगदान है।
- एल. एस. हरदेनिया